एनटी न्यूज़ डेस्क /कन्नौज /अनुराग चौहान
यह बात कहना गलत नहीं होगा कि सरकार द्वारा चलाए जा रहे ‘सर्व शिक्षा अभियान’ का पूरा क्रेडिट प्राइवेट स्कूलों ने उठाया हैं. वहीं, प्राइवेट स्कूलों की चकाचौंध इमारत, अच्छे क्लास रूम बच्चों को अपनी ओर आकर्षित करती रही हैं. लेकिन ये प्राइवेट स्कूल अमीरी और गरीबी की लकीरें भी खींचते हैं. बड़ी-बड़ी इमारतों वाले स्कूलों में एक गरीब अपने बच्चों को नहीं पढ़ा सकता और अगर किसी तरह पढ़ाता भी हैं तो यह सरकार से सीधा प्रश्न करता हैं कि आखिर ऐसी किस चीज़ की कमी हैं, जो सरकारी स्कूलों उन्हें आराम से नहीं मिल रही है?
इस सवाल का जवाब हमें आखिरकार मिल ही गया. जब एक सरकारी स्कूल की तस्वीरें देख पता चला कि भारत विकासशील देश से विकसित देश कैसे बनेगा. इसके साथ ही कैसे सरकारी स्कूल और प्राइवेट स्कूल के बीच के बीच की खाईं पटेगी.
ये प्राइवेट नहीं सरकारी स्कूल हैं…
कहावत है, ‘नीयत साफ़ तो मंजिल आसान’. इस कहावत को चरितार्थ कर रहा है कन्नौज के तहसील छिबरामऊ का एक सरकारी प्राइमरी स्कूल. इस स्कूल के वातावरण को देख कर स्कूलों की मंडी के कई कान्वेंट स्कूल भी फीके नज़र आते हैं. दरअसल, स्कूल का कायाकल्प करने का श्रेय प्रधानाध्यापिका को जाता है.
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उन्होंने अभिभावकों का रुझान देखा कि वह टिपटाप स्कूलों में बच्चों को पढ़ाना चाहते हैं. लेकिन आज के सरकारी स्कूलों की हालत सब के सामने है ऐसे माहौल में बच्चों को स्कूल की तरफ आकर्षित कर पाना मुश्किल काम था.
लेकिन अब प्रधानाध्यापिका प्रयासों से छिबरामऊ ब्लाक के गांव कल्याणपुर का यह स्कूल कान्वेंट स्कूलों को मात दे रहा है.
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रोज स्कूल आते हैं बच्चे…
इस सरकारी स्कूल में बच्चे मन लगा कर पढ़ते हैं. रोज समय से अपनी कक्षा में मौजूद रहते हैं. इस स्कूल की ख़ास बात यह हैं कि कन्नौज के छिबरामऊ ब्लाक के गांव कल्याणपुर के बच्चों को शिक्षा देने के लिए बना प्राइमरी स्कूल अब शिक्षकों के लिए प्रेरणा की पाठशाला बन गया हैं.
गांव के इस स्कूल में कभी बच्चों का टोटा रहता था. आज इस स्कूल में पढ़ने के लिए आसपास गांव तक के बच्चे आ रहे हैं.
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ऐसे बदली तस्वीर…
पूरे गाँव में किसी से भी पूजा मैडम के बारे में पूछ लिया जाए तो आपको पता चल जाएगा कि कौन हैं वह और उन्होंने क्या किया है, जिसका उन्हें इतना सम्मान मिलता है.
उन्होंने अपने इस स्कूल का भागीरथी प्रयासों से कायाकल्प कर दिया. असल में पूजा मैडम ने जब यह देखा कि प्राइमरी स्कूल में बच्चे पढ़ने ही नहीं आते, जबकि कान्वेंट स्कूलों में एडमिशन की मारामारी रहती है.
सरकारें बेटियों को पढ़ाने और उन्हें आगे बढ़ाने के लिए लंबे अर्शे से अभियान चला रही है. जिसे पूरी कामियाबी नहीं मिल रही है और इसकी वजह क्या हैं.
उन्होंने अपने इस सरकारी स्कूल को भी कान्वेंट स्कूल में बदलने का बीड़ा उठाया. इसी लिए वह हर घर में प्रशंसा की पात्र बनी हुई हैं.
और ‘कान्वेंट’ को टक्कर देना लगा यह स्कूल
शुरुआत में जब पूजा पाण्डेय स्कूल आती थी तो बच्चे ठीक से अभिवादन भी करना नहीं जानते थे.
इससे उनका मन ऐसा व्यथित हुआ कि उन्होंने कुछ नया कर गुजरने की ठानी. शुरुआत उन्होंने स्कूल की कायाकल्प कर की, इसे कान्वेंट स्कूल का लुक दिया. परिसर में बगीचा अपने हाथों से तैयार किया. दीवारों पर आकर्षक पेंटिंग और स्लोगन बनवाये.
यह सब कुछ उन्होंने अपने वेतन से किया. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों के अभिवभकों को सफाई के प्रति जागरूक किया.
धीरे धीरे उनकी मुहिम रंग लाने लगी. गांव के लोगों का भी सहयोग मिलना शुरू हो गया.
आज इस स्कूल में बच्चे बेंच और कुर्सियों पर बैठते हैं. फर्स पर भी मैट बिछी है. बच्चों के लिए कम्प्यूटर भी लगे है.
अब कपड़े नहीं गंदे होते…
विद्यालय में पढ़ने वाला प्रत्येक बच्चा और उसके माता-पिता अब गर्व से कहतें है क़ि हमारा बच्चा प्राइमरी स्कूल कल्याणपुर का छात्र है.
अब यहाँ के बच्चे भी सरपट अंग्रेजी में बात करते हैं
स्कूल की पढ़ाई में भी अद्भुत परिवर्तन आया है. बच्चे अब अंग्रेजी पढ़ने से डरते नहीं है, बल्कि कभी-कभी अंग्रेजी में बात भी करते हैं. छात्र क्लास में अब खड़े होकर अभिवादन भी करना सीख गये हैं.
कुछ समय पूर्व यहाँ आई राज्य मंत्री अर्चना पाण्डेय ने भी इस विद्यालय और प्रधानाध्यापिका पूजा पाण्डेय की प्रशंसा की थी.
आज यह स्कूल रोल मॉडल बन चुका है. इलाके के कई और शिक्षक भी अब अपने स्कूल को इसी तरह बनाने की कवायद में लग गये हैं. इसी का प्रताप है कि शिक्षा विभाग को भी इस स्कूल पर गर्व है.
समाज सेविका का निवेदन…
कौन कहता हैं कि आसमान में छेद नहीं होता, एक पत्थर तबियत से उछाल कर तो देखो.