होली से पहले की शाम को क्यों किया जाता है होलिका दहन, जानें कारण और मुहूर्त

एनटी न्यूज़ डेस्क/ रंगों का पर्व

एकता, सद्भाव और मित्रता के जरिये सभी को प्यार के रंगों में रंगने वाला होली का त्यौहार पारंपरिक रूप से दो दिनों तक मनाया जाता है. पहले दिन होलिका दहन जबकि दूसरे दिन होली खेली जाती है यानी हुडदंग खेला जाता है. इन दिनों प्रकृति भी अपने सबसे अद्भुत रंग बिखेरती है. पतझड़ के बाद पेड़ों पर नई पत्तियां खिलती हैं, जो जीवन में नए उत्साह का संचार करती है.

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आज यानी एक मार्च को होलिका दहन का उत्सव मनाया जाता है. देश में होलिका दहन से जुड़ी कई सारी कथाएं काफी विख्यात हैं. पौराणिक कथा, धार्मिक कथा या फिर सामाजिक कथा हर कथा के साथ एक नया संदेश जुड़ा है.

आज शाम 7 बजे के बाद होगा होलिका दहन

इस बार होलिका दहन शाम को 7.40 के बाद किया जाएगा, क्योंकि पूर्णिमा का समय गुरुवार की सुबह 7.53 मिनट से शुरू होकर शुक्रवार को सुबह 6 बजे तक रहेगा.

जबकि भद्रा का गुरुवार शाम 6.58 मिनट तक रहेगी. इसलिए शाम 7 बजे के बाद ही होलिका दहन का शुभ मुहूर्त है. होलिका दहन के साथ ही देश की तमाम जगहों पर होली की शुरुआत हो जाएगी.

सूर्यास्त के बाद ऐसे करें होलिका का पूजन

पौराणिक मान्यता के अनुसार होलिका पूजन में डुंडिका देवी की अराधना की जाती है. कहा जाता है कि डुंडिका देवी की अराधना हमेशा सूर्यास्त के बाद ही करनी चाहिए. उनकी पूजा अबीर-गुलाल मिश्रित जल से करनी चाहिए.

होलिका दहन के बाद सुबह गन्ने को भूनने के साथ ही होलिका में मिठाई अपर्ति की जानी चाहिए. छोटी होली के दिन नवान्नेष्टी यानि की नए अनाज की पूजा की जाती है.

पौराणिक पद्धति के अनुसार होलिका को गुलाल, उड़द की दाल, काले तिल, जौं, गुजिया आदि अपर्ण करने चाहिए. ऐसा कहा जाता है कि होलिका में काले तिल, काली उड़द की दाल अर्पित करने से ग्रहों की पीड़ा समाप्त हो जाती है.

क्या है होलिका दहन का पौराणिक महत्व

होली का त्यौहार बुराई पर अच्छाई की जीत और एकता का प्रतीक है. होलिका दहन पर किसी भी बुराई को अग्नि में जलाकर खाक कर सकते हैं.

माना जाता है कि पृथ्वी पर एक अत्याचारी राजा हिरण्यकश्यप राज करता था. उसने अपनी प्रजा को ईश्वर की जगह सिर्फ अपनी पूजा करने को कहा था, लेकिन प्रहलाद नाम का उसका पुत्र भगवान विष्णु का परम भक्त था.

उसने अपने पिता के आदेश के बावजूद भक्ति जारी रखी, जिसके लिये पिता ने प्रहलाद को सजा देने की ठान ली और प्रहलाद को अपनी बहन होलिका की गोद में बिठाकर दोनों को आग के हवाले कर दिया.

दरअसल, होलिका को ईश्वर से यह वरदान मिला था कि उसे अग्नि कभी नहीं जला पाएगी. लेकिन दुराचारी का साथ देने के कारण होलिका भस्म हो गई और प्रह्लाद सुरक्षित रहे.

उसी समय से समाज की बुराइयों को जलाने के लिए होलिकादहन मनाया जाता है.

राधा-कृष्ण की मान्यता से भी जुड़ा है होली का त्योहार

होली का त्योहार राधा और कृष्ण की प्रेम कहानी से भी जुड़ा हुआ है. वसंत के इस मोहक मौसम में एक दूसरे पर रंग डालना उनकी लीला का एक अंग माना गया है.

होली के दिन वृन्दावन राधा और कृष्ण के इसी रंग में डूबा हुआ होता है. इसके अलावा होली को प्राचीन हिंदू त्योहारों में से एक माना जाता है.

ऐसे प्रमाण मिले हैं कि ईसा मसीह के जन्म से कई सदियों पहले से होली का त्योहार मनाया जा रहा है. होली का वर्णन जैमिनि के पूर्वमीमांसा सूत्र और कथक ग्रहय सूत्र में भी है.

प्राचीन भारत के मंदिरों की दीवारों पर भी होली की मूर्तियां मिली हैं.

विजयनगर की राजधानी हंपी में 16वीं सदी का एक मंदिर है. इस मंदिर में होली के कई दृश्य हैं जिसमें राजकुमार, राजकुमारी अपने दासों सहित एक दूसरे को रंग लगा रहे हैं.