माकपा : त्रिपुरा में हुई ‘हजामत’ से नहीं चेते तो हाथ से ‘केरल’ भी फिसल जायेगा

एनटी न्यूज़ डेस्क/सम्पादकीय विशेष

के विक्रम राव 
(वरिष्ठ पत्रकार)

माकपा का मरसिया यदि मार्क्सवादी कॉम्युनिस्ट बंगाल की खाड़ी (त्रिपुरा) पर हुई हजामत के पश्चात भी नहीं चेते, तो उन के हाथों अरब सागर (केरल) भी फिसल जायेगा। इसका मुहूर्त सीताराम येचूरी (Sitaram Yechury) पर निर्भर है। येचुरी कांग्रेस के डार्लिंग है, निजी संस्कारों से बुर्जवा है, तेलगु भाषी विप्र है।

पुरोधा गांधीवादी सादगी के मिशाल…

सरदार हरकिशन सिंह सुरजीत के लाड़ले रहे है। तभी से सोनिया (कांग्रेस) से याराना है। अमूमन चुनावी हार के बाद पार्टी मुखिया पद तज देता है। मगर ऐसा करना नैतिकता होगी, जो क्रांतिकारी धर्मिता नहीं होती है। कमज़ोरी होती है। यहाँ नई पीढ़ी को बता दूँ की भारतीय राजनीति के दलदल में माकपा एकमात्र ऐसी पार्टी थी जो निख़ालिस सैद्धान्तिक थी। उसके पुरोधा गांधी वादी सादगी के मिसाल थे। इनमे एक आज भी बचे हुए है, नब्बे साल के वीएस अछूतानंदन।

मगर दोनों प्रकाश करात तथा सीताराम येचुरी मुख्यमंत्री विजयन को तरजीह देते हैं क्योंकि सर्वहाराओं की पार्टी को उन्होंने मालामाल बना दिया है। भारी भरकम बैंक बैलेंस, बड़े होटल और मनोरंजन रिसार्ट, कई विशाल भूखण्ड तथा बहुमंजलीय इमारतें, दो टीवी नेटवर्क, बहुसंस्करणीय दैनिक, आलीशन निजी आवासीय बंग्ले आदि के अरबों की सम्पति की स्वामिनी केरल माकपा (Communist Party of India (Marxist)) है।

जनसाधारण की ज्वलन्त समस्याओं पर गहन मंथन माकपा सागरतटीय पंचसितारा होटलों में आयोजित करती है। संयोजक विजयन होते हैं। मगर ऐसी सम्पन्नता ने माकपा को विपन्न बना दिया लोकसभा चुनाव में | क्योंकि सोलह सीटें हार गई। मात्र चार बमुश्किल जीत पाई। अतः फिर भी अन्य पार्टी के मुख्यमंत्री के सामने माकपायी नीक लगते है| विस्मय होना स्वाभाविक है कि माकपा का आज ऐसा कायाकल्प हो कैसे गया? केरल के खास परिवेश में यह क्षोभदायी भी है क्योंकि अन्य राज्यों की तुलना में यह सुदूर दक्षिणवर्ती राज्य कई मायनों में जुदा और भिन्न है।

सिर्फ केरल…

कम्युनिज्म का पर्याय रहा है केरल। यहाँ नेहरू युग (1957) में ही विश्व की प्रथम चुनी गई कम्युनिस्ट सरकार मतदान द्वारा बनी थी। बंगाल में ज्योति बसु 1977 में मुख्यमंत्री बने थे, मगर दो दशक पूर्व ईएमएस नम्बूद्रिपाद केरल में सरकार बना चुके थे। केरल में इस्लाम का भी उदार चेहरा तथा प्रवृत्ति है क्योंकि यहां मजहबी प्रचारक लोग जलपोत में सवार होकर व्यापारियों के साथ आये थे।

उत्तर भारत में तो शमशीरे इस्लाम लेकर मोहम्मद बिन कासिम ने सिन्ध पर हमला कर भारत में इस्लाम का प्रचार किया था। इन्हीं कारणों से केरल का कम्युनिज्म तथा इस्लाम भारत राष्ट्र की मुख्यधारा के हिस्से बने हैं। इन परम्पराओं का प्रभाव उन दोनों मार्क्सवादी मुख्यमंत्रियों की राजशैली में प्रतिबिम्बित हुआ जो आज के माकपाई मुख्यमंत्री पिनरायी विजयन में भी झलकता है।

मै क्या सोंचता हूँ, ‘भारत में मनुस्मृति को जलाने का चलन हैं’

अमीर ब्राह्मण जमींदार कुटुम्ब के वारिस नम्बूद्रिपाद ने सब तज़कर पार्टी कार्यालय के एक कमरे में ही आधी बाहों वाली कमीज़ और लुंगी पहनकर पूरा जीवन बिता दिया। इतने नीतिपरस्त थे कि शिक्षण संस्थाओं का सामाजीकरण किया ताकि धर्म का अनावश्यक दबदबा न रहे। वे उच्च कोटि के पुजारी परिवार में जन्में घोर अनीश्वरवादी थे। मगर जब ईसाई और हिन्दु नायर शिक्षा माफियाओं ने जनता को मज़हब की ओट में उकसाया तो एक प्रायोजित “जनान्दोलन” चला।

प्रगतिवादी, नास्तिक प्रधान मंत्री जवाहरलाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) ने नम्बूद्रिपाद की सरकार को इन प्रछन्न धार्मिक शिक्षा व्यापरियों के दबाव के कारण बर्खास्त कर दिया। विधानसभा में बहुमत के बावजूद कम्युनिस्ट सरकार अपदस्थ हो गई। नम्बूदिपाद की नीतिपरक कम्युनिस्ट परिपाटी का ही सिलासिला आज नब्बे वर्षीया वी एस अछूतानन्दन निभा रहे हैं।

इन दोनों के दरम्यान एक और माकपाई मुख्यमंत्री हुए श्री ई. के. नयनार जो अपने किस्म के अनूठे थे। उनकी वित्तीय ईमानदारी और मुंहफटपना लाजवाब था। एक बार की घटना है। हम श्रमजीवी पत्रकार लोग राजधानी तिरूअनन्तपुरम में मुख्य मंत्री निवास गये। उन्हें हमारे सम्मेलन में आमंत्रित करना था। वहीँ एक युवक भी पास खड़ा था जिसे नयनार डांट रहे थे। इतनी जोर से डांट रहे थे कि हर देखनेवाले को बुरा लगा। जब दुबारा डांटा तो हमने हल्के से प्रतिवाद किया। पूछा कि माजरा क्या है?

मुख्यमंत्री बोलेः “मुझसे रूपये मांग रहा है। मैंने कहा कि पहली तारीख को आना दे दूंगा। उस दिन मुझे मेरा वेतन मिलेगा। नहीं मान रहा। आज ही लेने की जिद्द कर रहा है। ये मेरा बेटा है और जेब खर्च लेता है”। हमलोग विस्फुरित हुए। भारत में तीन दर्जन मुख्यमंत्री है। उनमें से कोई भी अपनी सन्तान को पहली तारीख (वेतन दिवस) तक खर्चे के लिये प्रतीक्षा नहीं कराता।

उनमें से कइयों के पुत्ररत्न तो पापा का नाम रौशन कर चुके हैं। लेकिन केरल के माकपा मुख्यमंत्री नयनार एक उदाहरण थे। अछूतानन्दन भी उसी नम्बूद्रिपाद और नयनार के मूल्यो और आचार संहिता के जीवन्त नमूना हैं।

कुछ विशिष्टतायें है उनमें जो कई माकपाइयों में नज़र नहीं आतीं। एक समय जब पश्चिम बंगाल के माकपाई मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य सिंगूर और नन्दीग्राम की उपजाऊ जमीन से किसानों को बेदखल कर उद्योपतियों को दे रहे थे तो अछूतानन्दन ने केरल के मुन्नार क्षेत्र से टाटा टी कम्पनी का कब्जा हटवाया।

यह कृषिभूमि बहुराष्ट्रीय कम्पनियां कब्जियाकर रिजार्ट और होटल बनवा रही थी। दो समकालीन माकपाई मुख्यमंत्रियों की जनपक्षधर सोच में कितना ध्रुवीय फर्क दिखा।

 

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