‘लाल निशान’ ख़त्म करते-करते भाजपा लाल टोपी के ‘मायाजाल’ में फंसी

एनटी न्यूज़ डेस्क/ राजनीति

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने विधानसभा में छह मार्च को कहा था ‘त्रिपुरा में हमने लाल झंडे को डुबो दिया और अब उप्र में लाल टोपी डुबो देंगे.’ लेकिन, बुधवार को गोरखपुर और फूलपुर संसदीय क्षेत्र के उपचुनाव के नतीजों ने लाल टोपी को आसमान पर लहरा दिया.

ऐसा सपा-बसपा समझौते की वजह से हो सका. निसंदेह इन नतीजों से उत्तर प्रदेश की सियासी तस्वीर बदलेगी. भाजपा को जहां नए सिरे से आत्ममंथन करने की जरूरत आ गई है वहीं अब सपा-बसपा गठबंधन की अपार संभावना दिखने लगी है.

यह हो सकती है खतरे की घंटी

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ और उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य के इस्तीफे से रिक्त हुई गोरखपुर और फूलपुर संसदीय सीट पर विपक्ष की जीत 2019 के लोकसभा चुनाव के लिए खतरे की घंटी है.

भाजपा 2019 में प्रदेश की 80 सीटों पर केसरिया फहराने का सपना देख रही है, लेकिन इस परिणाम ने उसकी हवा निकाल दी है.

प्रदेश की 73 सीटें जीतने वाली भाजपा की राह रोकने के लिए सपा-बसपा समेत कुछ छोटे दल मजबूती से एक साथ गठबंधन कर सकते हैं.

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कांग्रेस को है इस जीत से उत्साह

कांग्रेस ने भी इस जीत पर जो उत्साह दिखाया है वह उसके नए इरादे का संकेत है. उपचुनाव में राष्ट्रीय लोकदल, पीस पार्टी, निषाद और प्रगतिशील मानव समाज पार्टी जैसे कई दल एक साथ जुट आए थे.

भाजपा ने 2014 में केवल अपना दल से समझौता किया था पर, 2017 में वह सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी को भी साथ लाई. अमूमन बदलाव के दौर में पाला बदलने की राजनीति भी तेज होती है.

नहीं चलेगा हिंदुत्व कार्ड

गोरखपुर और फूलपुर के नतीजों ने यह साबित कर दिया कि भाजपा हिंदुत्व कार्ड खेलने में सफल नहीं हुई है.

फूलपुर में मुसलमानों के बड़े नेता माने जाने वाले अतीक अहमद हों या गोरखपुर में कांग्रेस की डॉ. सुरहीता करीम, दोनों के मत सिमट गए.

पिछड़ों-अति पिछड़ों, दलितों, मुसलमानों और सरकार विरोधी सवर्णो ने सपा उम्मीदवार के साथ गोलबंदी दिखाई.

कैराना और नूरपुर पर भी विपक्ष की निगाह

गोरखपुर और फूलपुर उप चुनाव में सपा-बसपा की जीत ने कैराना लोकसभा और नूरपुर विधानसभा में होने वाले उप चुनाव पर विपक्ष की निगाह टिका दी है.

भाजपा सांसद हुकुम सिंह के निधन से कैराना और विधायक लोकेंद्र सिंह के निधन से नूरपुर क्षेत्र रिक्त है.

चुनाव आयोग ने अभी इन क्षेत्रों में चुनाव कार्यक्रम नहीं दिए हैं, लेकिन इन दोनों क्षेत्रों में भी विपक्ष भाजपा की राह रोकने के लिए ताकत लगाएगा.

ताकि 2019 के लोकसभा चुनाव तक उसका माहौल बना रहे. संभव है कि संपूर्ण विपक्ष एक साथ खड़ा हो.