एनटी न्यूज़ डेस्क / राजनीति
सुनील कुमार पाण्डेय (पत्रकार )
गोरखपुर
गोरखपुर, लोकसभा उपचुनाव हारने के बाद प्रतिदिन बीजेपी के लिये कुछ न कुछ खराब समाचार आने की मानो शरुआत हो गई हो.
तेदेपा ने साथ छोड़ा
शिव सेना ने भी आँखे तरेरी
अकाली दल भी है दुःखी
अपमान और उपेक्षा से परेशान बुजुर्ग सांसदों ने भी कमर कसी
बागियों को भी हैं मौके का इंतजार
अपना और बसपा भी नाराज
वर्ष 2014 को सत्ता में आई भाजपा सरकार ने अच्छे दिन का वादा किया था. इन अच्छे दिनों के बीच आखिर सत्तारूढ़ दल के बुरे दिन शुरू हो गये और अब तक हुए उपचुनावों में भाजपा को 95% सीट पर हार का मुहं देखना पड़ा.
इस दौरान जहाँ एनडीए के घटक दल उसके विरोध में आने लगे वही उसके खुद के भी कई सांसद सरकार के खिलाफ खड़े नज़र आये. इसी बीच वाईएसआर कांग्रेस और टीडीपीद्वारा आज संयुक्त रूप से एनडीए से अलग होने के बाद अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी है.
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उपरी तौर पर देखने में संख्या बल के आधार पर तो भाजपा का पलड़ा भारी नज़र आ रहा है जिसमे दिखाई देता है कि सरकार को अपने घटक दलों का साथ भी नहीं चाहिये बल्कि 269 का जादुई आंकड़ा भाजपा केवल अपने बल पर ही छू लेगी.
मगर भीतर खाने की खबरों पर नज़र दौड़ाये तो कहानी कुछ और ही नज़र आती है. भाजपा के अन्दर चल रहा गृह युद्ध किसी से छुपा भी नहीं है. शत्रुधन सिन्हा से लेकर कीर्ति आजाद और वरुण गाँधी से लेकर श्यामा प्रसाद तक की बात करे तो ये एक गुट सरकार में रहते हुए सरकार के खिलाफ बयानबाजी से कभी बाज़ नहीं आया.
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अगर इन मतों को सिर्फ अलग करे तो भाजपा के खाते में 264 सीट नज़र आ रही है. ये सिर्फ उन सीट को किनारे करने की बात है उनके अन्य समर्थक अगर पार्टी से बगावत करते है तो संख्या और नीचे नज़र आयेगी.
इधर दूसरी तरफ पूरा विपक्ष एकजुट होता नज़र आ रहा है और विभिन्न मुद्दे पर सरकार को घेरते हुए एक साथ एक प्लेटफार्म पर खड़ा दिखाई दे रहा है.
इस विपक्ष की एकता का जीता जागता उदहारण सपा और बसपा की नजदीकिया है, जब बसपा ने फूलपुर और गोरखपुर उपचुनावों में सपा को समर्थन देकर सत्तारूढ़ दल को अचंभित कर दिया था और उसका निष्कर्ष निकला कि सत्तारूढ़ दल दोनों सीट हार गया.
सब मिलाकर ये निष्कर्ष निकलता है कि भाजपा सरकार बचाने के लिये कही न कही से घटक दलों पर निर्भर हो गई है और उसको अब अपने घटक दलों से मदद की आस है.
यह पहली बार होगा कि घटक दलों के समर्थन से सरकार बचेगी और यदि ऐसा होता है तो सरकार पर घटक दल हावी होंगे. अब देखना है कि अविश्वास प्रस्ताव जिसके आज पेश होने की संभावना है सदन में कितना टिक पाता है और सरकार के खिलाफ उसकी पार्टी के ही सांसद क्या बगावत करते है. जो भी हो मुद्दा रोचक तो है…….