अविनाश त्रिपाठी
(पत्रकार – न्यूज़ टैंक्स)
कहते हैं दूध का जला, छाछ भी फूँक-फूँक कर पीता है। ठीक यही हुआ अन्ना के आंदोलन के साथ। 26 मार्च से अन्ना सत्याग्रह कर रहे हैं। लेकिन लोग लगभग नदारद हैं। हाल के आंदोलनों पर नजर डालें तों एक आंदोलन रामदेव बाबा ने भी किया था जिसके बाद से वो संपत्ति के मामले में देश के बड़े उद्योगपतियों तक को मात देने लगे।
तो वहीं दूसरे आंदोलन ने देश की राजनीतिक पार्टियों में एक और पार्टी का इजाफा कर दिया, लोगों ने पार्टी को हाथों-हाथ लिया उसे अपना मत देकर बहुमत से भी ज्यादा का मत दिया। सरकार बनी लेकिन उसके बाद भी वो केवल रोती-बिलखती और दूसरों पर आरोप लगाती रही।
दूसरों को कीचड़ साफ करने की सलाह और अपने घर में संदीप जैसे राशन कार्ड वाले विधायकों को आप के मुखिया पाले रहे। समय के साथ ही आम आदमी पार्टी और उसके मुखिया भी औरों के जैसे ही धन उगाही करने व्यस्त रहने लगे जिसके बहुत से आरोप भी समय-समय पर आन्दोलन से निकली आप पार्टी पर लगते रहे।
अन्ना आंदोलन को विफल कराने के लिए केजरीवाल सरकार ये क्या कर रही है ?
जेपी आन्दोलन से निकले लालू जी और अन्ना आंदोलन के अरविंद जी एक दूसरे का समर्थन करते भी नजर आए। हालांकि लालू जी अभी चारा घोटाला मामले में दोषी करार दिए गए और उन्हें जेल हो गई। अरविंद केजरीवाल भ्रष्टाचार के मुद्दे पर शुरू से ही केवल आक्रामक रहे और अभी भी उनकी जुबानी जमा पूंजी खत्म नहीं हुई है वो अब भी यदा-कदा इसके विरोध में सिर्फ बोलते रहते हैं।
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हाल की खबरों पर गौर करें तो अरविंद की ऑनलाइन सेना ने अन्ना के आंदोलन में भीड़ न आने का कारण अरविंद का न होना बताया है। मतलब की अरविंद की लोकप्रियता अन्ना से कहीं ज्यादा है। इसके बहुत से वाकये उन पर स्याही फेंक के भी जाहीर हो चुके हैं लोग कहते भी हैं कि जो ज्यादा प्रसिद्ध होता है उसे ही चप्पल, जूते, टमाटर आदि नसीब होते हैं तो बहुत से लोगों ने ये भी कहा कि अरविंद अपने आपको निरीह दर्शाने के लिए स्याही खुद ही फिंकवाते थे अब बातें हैं बातों का क्या।
अभी हाल ही में राज्यसभा के लिए भी आम आदमी पार्टी में घमासान चला उसमें भी लोगों ने अरविंद पर आरोप लगाया कि अरविंद यहाँ पर भी पैसों का खेल कर गए और कुमार विश्वास को पवेलियन में आराम करने के लिए भेज दिया।
उनकी पार्टी ने बहुत से वीडियो भी फैलाये जिसमें कार्यकर्ताओं से किसी पद का लालच न करने को कहा गया। वैसे भी मुख्यमंत्री का पद भले ही उनके पास है लेकिन वो कार्यकर्ता नहीं हैं इसलिए उन पर उंगली भी न उठाए। अगले चुनाव तक के लिए पार्टी ने भ्रष्टाचार के मुद्दे को भी सुरक्षित रख लिया है।
अन्ना के आंदोलन से अरविंद जैसे मुख्यमंत्री का निकलना लोगों के लिए किसी आघात से कम नहीं है। ऐसे में जब अन्ना दोबारा आंदोलन में बैठ रहें हैं तो लोगों को फिर ये डर सता रहा है कि कहीं छोटा अरविंद फिर न आंदोलन से निकल आए।
देश से एक अरविंद तो संभाला नहीं जाता ऐसे में दूसरा अरविंद! राम राम। अरविंद कांग्रेस से शुरू हुए थे और बीजेपी पर आकर अटक गए। लोगों ने अपना सिर तो तब पीट लिया जब महाशय सर्जिकल स्ट्राइक तक का विरोध करने लगे। वैसे अरविंद को विरोध कारने का मास्टर कहा जाता है। बतौर अरविंद चूंकि विरोध करना एक कला इसलिए भी लोग उनसे जलते हैं क्योंकि लोगों को विरोध करना और प्रश्न पूछना नहीं आता।
अन्ना भ्रष्टाचार से परेशान बार-बार आंदोलन करते हैं। जबकि उनके पास है कुछ नहीं। लेकिन देश कि चिंता बार-बार उन्हें आंदोलन करने पर विवश करती है। आंदोलन करना कोई आसान काम नहीं है इसमें भी काफी ऊर्जा और धन का व्यय होता है लेकिन ये दूसरी बात है कि आरोप लगाने वाले आरोप लगाते रहते है।
सच तो ये है कि आरोप है ही ऐसी चीज जो किसी पर भी लग जाती है। बात मुद्दे की करें तो यह बात साफ निकल कर सामने आती है कि अन्ना के आंदोलन को लेकर सभी के अंदर अरविंद का डर बैठ गया है जो लोगों को रामलीला मैदान आने से रोक रहा है।