एनटी न्यूज़ डेस्क/ डाटा लीक
प्रधानमंत्री का व्यक्तिगत तौर पर सिर्फ एक एप है. इसे भाजपा ने बनाया है. लेकिन गूगल प्ले स्टोर पर एक दर्जन से ज्यादा एप हैं जो नरेन्द्र मोदी या इससे मिलते-जुलते नाम से चल रहे हैं. नकली एप से यदि डाटा साझा होने पर कोई नुकसान होता है तो आप उसकी भरपाई नहीं कर पाएंगे. इसका कारण है कि हमारे देश में डाटा से संबंधित कोई कानून नहीं है. हालांकि आईटी मंत्रालय ने डाटा प्रोटेक्शन एक्ट को लेकर कुछ समय पहले व्हाइट पेपर जारी किया था लेकिन इसे कानून बनने में नौ माह तक लग सकते हैं.
कई देश लागू कर रहे हैं नया नियम
फ्रांस में जीडीपीआर (जनरल डेटा प्रोटेक्शन रेगुलेशन) कानून के तहत डाटा प्रोटेक्ट किया जाता है. इसकी तर्ज पर भारत में भी कानून बनाने की कवायद चल रही है. साइबर लॉयर प्रशांत माली के अनुसार, इस मामले में यूरोप पहले ही कदम उठा चुका है.
यूरोपियन यूनियन (ईयू) में जीडीपीआर कानून 25 मई से प्रभावी होने जा रहा है. यह कानून 1995 के डेटा प्रोटेक्शन डायरेक्टिव की जगह लेगा. जीडीपीआर 27 अप्रैल, 2016 को तैयार किया गया था.
इसके तहत कोई भी आईटी कंपनी किसी प्रोडक्ट के इस्तेमाल के लिए यूजर को डेटा शेयर करने पर बाध्य नहीं कर सकती. इसके लिए यूजर की मंजूरी जरूरी है.
इस नियम के मुताबिक यह भी कहा गया है कि अगर किसी थर्ड पार्टी को डाटा देना भी है तो थर्ड पार्टी का नाम पॉलिसी में पहले से होना चाहिए. साथ ही अलग से इसके लिए स्वीकृति यूजर से लेनी चाहिए.
पहले ही डाटा लीक का खतरा
तकरीबन 4 माह पहले इलेक्ट्रॉनिकी और सूचना प्रौद्योगिकी मंत्रालय की सलाह पर आईबी ने सेना को क्लीन मास्टर, यूसी ब्राउजर, शेयर-इट, ट्रूकॉलर, 360° सिक्योरिटी जैसे 42 चाइनीज एप को हटाने का निर्देश दिया था. आईबी को आशंका थी कि इनके माध्यम से डाटा लीक हो रहा है.
हालांकि इस पर अभी जांच चल ही रही है. मंत्रालय का यह भी कहना था कि इनके मिलते-जुलते नाम वाले एप से आम लोगों को दूरी बनाकर रखनी चाहिए. उधर, कुछ समय पहले भी गूगल प्ले स्टोर पर वाट्सएप के मिलते-जुलते नाम से वाट्सएप अपडेट एप मौजूद था.
क्या है विशेषज्ञों का कहना…?
विशेषज्ञों का कहना है कि जीमेल, फेसबुक जैसे कई एप पर हमारी निर्भरता हो गई है. इसलिए न चाहते हुए भी इनसे डाटा साझा करना पड़ता है वरना यूजर इन एप का पूरा फायदा नहीं उठा सकता है. अभी डाटा शेयर से संबंधित हमारे देश में कोई कानून नहीं है.
वह आगे कहते हैं कि अगर डाटा प्रोटेक्शन एक्ट जैसा कानून बन भी जाए तो हमें डाटा लेने के लिए अमेरिका पर निर्भर रहना पड़ता है क्योंकि हमारे पास खुद का रूट सर्वर नहीं है.
वह कहते हैं कि हम लोग अमेरिका के सर्वर पर निर्भर रहते हैं. अगर हमारे पास खुद का सर्वर होता तो कंपनियों को काफी हद तक डाटा से संबंधित नियम मानने पर निर्भर कर सकते हैं.
ऐसे पहचान करें कौन सा है सही एप
डेवलपर का नाम : वॉलेट एप के नीचे उसे बनाने वाले का नाम लिखा होता है.
रेटिंग: असली वॉलेट एप के डाउनलोड ज्यादा होंगे. इसी हिसाब से उसकी रेटिंग भी 4 या इससे ज्यादा होगी.
वेबसाइट: एप की साइट भी साथ में दी होती है. इस पर जाकर पहचान कर सकते हैं.
इन पर ध्यान देना होगा
यूरोप में मई से लागू होगा डाटा लीक पर कानून
फ्रांस में जीडीपीआर कानून के तहत प्रोटेक्ट किया जाता है डाटा
भारत में चल रही कानून बनाने की कवायद
सरकार ने चाइनीज एप से अलर्ट किया था
अपने जोखिम पर करें डाटा शेयर, भरपाई के लिए कानून नहीं
डाटा प्रोटेक्शन : देश का सर्वर होगा तो कम होगी निर्भरता
डाटा प्रोटेक्शन : ऑथेंटिक एप या लुक ए लाइक एप से करते हैं डाटा शेयर
डाटा प्रोटेक्शन : दोनों ही परिस्थितियों में डाटा लीक की संभावना