अब सुप्रीम कोर्ट करेगा दहेज निरोधक कानून में सजा की वैधानिकता की जाँच

सुप्रीम कोर्ट दहेज निरोधक कानून में सजा के प्रावधान की वैधानिकता परखेगा. शीर्ष अदालत ने दहेज लेने और देने के जुर्म में सजा का प्रावधान करने वाली धारा 3 की वैधानिकता को चुनौती देने वाली याचिका पर विचार का मन बनाते हुए केंद्र सरकार को नोटिस जारी किया है. धारा 3 में न्यूनतम 5 साल जेल और जुर्माने की सजा का प्रावधान है, लेकिन अधिकतम सजा कितनी होगी? यह तय नहीं है. इसी आधार पर धारा 3 को रद करने की मांग की है.

पीठ ने केंद्र सरकार से जवाब

न्यायमूर्ति रंजन गोगोई व आर. भानुमती की पीठ ने बहस सुनने के बाद रीपक कंसल की याचिका पर नोटिस जारी कर केंद्र सरकार से जवाब मांगा है.

इससे पहले वकील आरएस सूरी ने दहेज निरोधक कानून की धारा 3 को रद करने की मांग करते हुए कहा, यह धारा अधूरी है और मौजूदा स्वरूप में बने रहने लायक नहीं है.

यह धारा राज्य की दंड नीति के बारे में अनिश्चित व्यवस्था देती है. अभियुक्त के मौलिक अधिकारों का हनन करती है. यह संविधान के अनुच्छेद 14, 19, 20 और 21 के खिलाफ है.

अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा के नहीं है अनुकूल

याचिका के मुताबिक,कानून का नियम है कि दंड विधान में अस्पष्टता या भ्रम नहीं होना चाहिए, जबकि धारा 3 में यह साफ नहीं है कि किसी व्यक्ति को अधिकतम कितनी सजा हो सकती है.

यह अपराध प्रक्रिया संहिता की धारा 436ए के अनुकूल भी नहीं है, जो कहती है कि किसी भी विचाराधीन कैदी को आरोपित अपराध में दी जा सकने वाली अधिकतम सजा की आधी अवधि से ज्यादा जेल में नहीं रखा जा सकता, लेकिन धारा 3 में अधिकतम सजा का प्रावधान न होने से अभियुक्त को अनिश्चित काल के लिए जेल में बंद रखा जा सकता है.

इससे अभियुक्त के समानता और स्वतंत्रता के मौलिक अधिकार का उल्लंघन होता है.