पूरी तरह राजनीतिक रंग अख्तियार कर चुके एससी, एसटी एक्ट पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले के खिलाफ केंद्र सरकार ने सोमवार को पुनर्विचार याचिका दायर कर दी. साथ ही जल्द-से-जल्द और खुली अदालत में सुनवाई का आग्रह किया. सरकार का कहना है कि सुप्रीम कोर्ट का 20 मार्च का आदेश संविधान के अनुच्छेद 21 में अनुसूचित जाति, जनजाति को मिले अधिकारों का उल्लंघन करता है.
सुप्रीम कोर्ट ने एससी, एसटी एक्ट के तहत तत्काल गिरफ्तारी पर रोक लगा दी थी. समाज के एक हिस्से में इसका विरोध हुआ था. इस संवेदनशील मुद्दे पर सरकार के अंदर भी आवाज उठी थी. बाहर विपक्ष जितने सख्त शब्दों में सरकार को घेर रहा है, सरकार ने उसी दृढ़ता से हर पहलू पर कोर्ट के फैसले से असहमति जताई व पुराने कानून को जरुरी बताया. सरकार ने कोर्ट से मौखिक दलील का वक्त भी मांगा है.
पुनर्विचार याचिका के आधार
केंद्र को पक्षकार नहीं बनाया गया था.
कानून बनाना संसद-विधानसभाओं का काम.
एससी, एसटी अत्याचार रोकथाम कानून 1989 भी संसद ने बनाया था.
सुप्रीम कोर्ट यह नहीं कह सकता कि कानून का स्वरूप कैसा हो.
कानून सख्त या नरम बनाने का हक संसद को.
सिर्फ तीन तथ्यों पर रद हो सकता है कानून
अगर मौलिक अधिकार का हनन हो
यदि कानून गलत बनाया गया हो
संसद ने क्षेत्र से बाहर जा कानून बनाया हो
ऑर्गेनाइजेशन की याचिका पर तत्काल सुनवाई से इन्कार
ऑल इंडिया एससी, एसटी ऑर्गेनाइजेशन ने मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ में याचिका दायर कर इस मामले में तत्काल सुनवाई का आग्रह किया.
लेकिन, अदालत ने इससे इन्कार कर दिया. याचिका में हिंसा का हवाला देते हुए कहा गया था कि मसले पर मंगलवार को सुनवाई की जाए. कोर्ट ने इसे खारिज करते हुए कहा कि प्रक्रिया अनुरूप इस पर सुनवाई होगी.
…ये हैं कानून में प्रावधान
अनुसूचित जाति अनुसूचित जनजाति अत्याचार निरोधक कानून 1989 में पीड़ित पक्ष के शिकायत कराते ही कार्रवाई और गिरफ्तारी का प्रावधान है.
ऐसे मामलों में आरोपितों को अग्रिम जमानत भी नहीं दी जा सकती है. गिरफ्तारी के बाद कोर्ट में सुनवाई के बाद ही जमानत संभव थी.
इन राहतों पर मचा बवाल
अब शिकायत पर कार्रवाई से पहले छानबीन अनिवार्य. इसके बाद केस दर्ज होगा.
हर मामले में गिरफ्तारी अनिवार्य नहीं. अपवाद की दशा में अग्रिम जमानत दी जा सकती है.
सरकारी कर्मियों-अफसरों की गिरफ्तारी सक्षम अधिकारी की मंजूरी के बाद ही होगी.
आमजनों के मामले में एसएसपी स्तर के अफसर की अनुमति पर ही गिरफ्तारी हो.