एनटी न्यूज़ डेस्क / लखनऊ / शिवम् बाजपेई
उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ में जेठ माह का प्रत्येक मंगलवार ‘बड़ा मंगल’ के रूप में मनाया जाता है. जो सांप्रदायिक सौहार्द का प्रतीक है. इस पूरे माह हिन्दू ही नहीं राजधानी के सभी धर्मों के लोग बड़ा मंगल धूम धाम से मनाते है. आस्था से भरे बड़े मंगल में किये जा रहे आयोजन में हिन्दू, मुस्लिम, सिख व ईसाई भण्डारे एवं प्रसाद का वितरण करते है.
आखिर क्यों मनाया जाता है ‘बड़ा मंगल’…
राजधानी लखनऊ आये दो वर्ष हो चुके है. पत्रकारिता की पढ़ाई करने जब लखनऊ आया तब अप्रैल-मई की धूप में बड़े बड़े पोस्टरों में बड़े मंगल की शुभाकामनाएं दिखाई दी. इसमें पूरे लखनऊ में भिन्न-भिन्न पोस्टरों में सभी धर्मों के लोग शुभकामनाएं देते हुए नजर आए.
कई जगह भण्डारा चल रहा था. प्रसाद चखा जय श्री राम बोला आगे चल दिया. तभी हर रोज की तरह माँ का फोन आया, मेरी चिंता करती माँ ने हर रोज की तरह पूछा खाना खाया ?
मैंने उन्हें बताया कि आज बड़ा मंगल है जगह जगह भंडारे का आयोजन है. बस प्रसाद चख लिया है.
‘बड़ा मंगल’ यह क्या है ? माँ ने पूछा, सो मेरी भी उत्सुकता जाग गयी.
फिर जब अपने सहपाठी मित्रों जो यहाँ के स्थानीय थे उनसे पता लगाया तो जानकारी हुई कि जेठ माह के प्रत्येक मंगलवार को इस दिन के रूप में मनाया जाता है.
हर पर्व और त्यौहार के पीछे कोई ना कोई कहानी होती है तो इसे मनाए जाने के पीछे भी कोई कहानी होगी सवाल जब लेकर कॉलेज पहुंचा तो मेरे शिक्षक श्री आलोक पाण्डेय ने बताया हां इसके पीछे दो कहानियां है. जो रोचक, आस्था से भरी और चमत्कारी है. जो इस प्रकार है…
ऐसे शुरू हुई परम्परा…
नवाबों के शहर लखनऊ में मनाए जाने वाले ‘बड़ा मंगल’ की परम्परा लगभग 400 साल पहले शुरू हुई. इस परम्परा की शुरुआत मुग़लशासक ने की थी. नवाब मोहमद अली शाह का बेटा एक बार गंभीर रूप से बीमार हो गया. नवाब साहब और उनकी बेगम रुबिया बेटे का इलाज के लिए कई जगह गयी. लेकिन बेटे की बढ़ती बीमारी ठीक होने का नाम ना ले रही थी.
हर जगह से निराशा पा बेगम रुबिया लखनऊ के अलीगंज स्थित पुराने हनुमान मंदिर आयी. यहाँ रोते बिलखते वह अपने बेटे की सलामती की मन्नत मांगने लगी.
तभी मंदिर के पुजारी ने बेटे को मंदिर में ही छोड़ देने के लिए कहा. बेगम रूबिया रात में बेटे को मंदिर में ही छोड़ गयीं.
अगले दिन जब बेगम रुबिया मंदिर पहुंची तब उन्होंने पाया कि उनका बेटा पूरी तरह स्वस्थ है. तुरंत रुबिया ने इस पुराने हनुमान मंदिर का जीर्णोद्धार करवाया. उन्होंने इस मंदिर के गुम्बद पर चांद तारा चिन्ह लगवाया जो आज भी मंदिर के गुंबद पर चमक रहा है.
गुड धनिया का प्रसाद वितरित किया और…
बेटे की सलामती के बाद मंदिर के जीर्णोद्धार के साथ ही मुगल शासक ने उस समय जेठ माह में पडऩे वाले मंगल को पूरे नगर में गुडधनिया (भुने हुए गेहूं में गुड मिलाकर बनाया जाने वाला प्रसाद) बंटवाया और प्याऊ लगवाये.
बस तभी से इस बडे मंगल की परम्परा की शुरुआत हो गयी.
दूसरी कहानी…
अलीगंज से जुड़ी इस कहानी ने बड़े मंगल की ठोस नींव रख दी. जब नवाब सुजा-उद-दौला की दूसरी पत्नी जनाब-ए-आलिया को स्वप्न आया कि उन्हें हनुमान मंदिर का निर्माण कराना है.
स्वप्न को हकीकत में बदलने या यूँ कहे कि सपने में मिले आदेश को पूरा करने के लिये आलिया ने हनुमान जी की मूर्ति मंगवाई.
यह हनुमान जी की मूर्ति हाथी पर लाई जा रही थी. मूर्ति को लेकर आता हुआ हाथी अलीगंज के एक स्थान पर बैठ गया. लाख कोशिशों के बाद भी हाथी उस स्थान से टस से मस नहीं हुआ. इसके बाद आलिया ने उसी स्थान पर मंदिर बनवाना शुरू कर दिया इस मंदिर का निर्माण जेठ माह में पूरा हुआ.
मंदिर निर्माण के बाद मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा करायी गयी और बड़ा भंडारा हुआ. तभी से जेठ महीने का हर मंगलवार बड़ा मंगल के रूप में मनाने की परम्परा चल पड़ी. आपको बता दें कि बाद में बना यह मंदिर लखनऊ के अलीगंज में ‘नया हनुमान जी के मंदिर’ के रूप में जाना जाता है.
इस तरह बड़ा मंगल धीरे-धीरे वृहद होता गया. इसके बाद अब यह पूरे लखनऊ के आलावा इसके आसपास के इलाके में भी मनाया जाने लगा है.
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