भारत का यह गाँव एक दिन के लिए हो जाता है वीरान, जो रुकता है उसका काम तमाम

एनटी न्यूज़ डेस्क / गोरखपुर / सुनील पाण्डेय

गोरखपुर,यूपी में एक गांव ऐसा भी है, जो परंपरा के नाम पर एक दिन के लिए पूरी तरह खाली हो जाता है। दिन ढलने के बाद नियमपूर्वक पूजा-पाठ के बाद ही गांव के लोग घरों में लौटते हैं। यह परंपरा सैंकड़ों साल से चली आ रही है। हिंदू हो या मुसलमान या हो किसी भी धर्म के, सभी एक साथ मिलकर इस परंपरा को कायम किए हुए हैं।

यह है वो गाँव…

बात महाराजगंज जिले के बेलवा चौधरी गांव की हो रही है। यहां बुद्ध पूर्णिमा के दिन ‘परावन’ पर्व मनाया जाता है, जो अपने आप में अनूठा है। ग्रामीण हर तीसरे साल इसे पूरी आस्था के साथ मनाते हैं। एक दिन के लिए जानवरों को भी साथ ले जाते हैं लोग…

यूपी का गाँव

  • जानकारी के मुताबिक, गांव में बुद्ध पूर्णिमा के दिन अल सुबह लोग अपने-अपने घरों से पशु-पक्षियों के साथ गांव के बाहर चले जाते हैं।
  • फिर पूरा दिन गांव से बाहर ही बिताते हैं। इस दौरान लगभग 4,000 की आबादी वाले इस गांव में चारों ओर केवल सन्नाटा पसरा रहता है।
  • लोगों के घरों में सिर्फ और सिर्फ ताले लटके रहते हैं।

रुकने पर हो चुकी है मौत

  • ऐसी मान्यता है कि जो भी इस दिन गांव में रुका, उसकी मौत हो जाती है। गांव वालों के मुताबिक, एक बार गलती से परावन के दिन एक जानवर घर पर ही छूट गया था। उसकी मौत हो गई थी।
  • इसके बाद से सभी घरों में ताले लगाकर पशुओं के साथ ही गांव के बाहर आकर रहते है।
  • दिन ढलने के बाद गांव की महिलाएं अपने आराध्य की पूजा करने के बाद ही गांव में जाती हैं।

साधु का है श्राप…

गांव की एक महिला पूनम का कहना है कि 200 साल पहले बुद्ध पूर्णिमा के दिन यहां पर साधु महात्मा आने वाले थे। जिसकी सूचना ग्रामीणों को नहीं थी। इस कारण गांव वाले उनका स्वागत नहीं कर पाए। इससे नाराज होकर साधु महात्मा ने गांव को श्राप दे दिया। यही वजह है कि गांव वालों को इस दिन घर से बाहर निकलना पड़ता है। फिर शाम को पूजा-पाठ कर घर में प्रवेश करते हैं।

हर धर्म के लोग मनाते हैं परावन पर्व

बता दें कि इस गांव में बसे हिंदू के साथ मुस्लिम समुदाय के लोग भी परावन पर्व को पूरे आस्था के साथ मानते हैं।

  • वो भी घरों में ताले लगा कर गांव के बाहर ही रहते हैं और पूजा-पाठ करते है। आस्था कहें या डर, जो भी हो चाहे लेकिन गांववाले इस दिन को नहीं भूलते हैं।
  • गांव के निवासी कमरूदीन का कहना है कि इस परंपरा पर कोई भेदभाव नहीं करता है। इसे सभी धर्म के लोग मानते हैं। यह परंपरा सदियों से चली आ रही है।
  • बता दें कि पूर्णिमा के दिन भगवान बुद्ध का जन्म हुआ था। मान्यता है कि इस दिन सुबह उठकर स्नान, दान और पूजा-पाठ करने से सारे कष्ट दूर हो जाते हैं।
  • जीवन में सुख-शांति का संचार होता है। इस वैशाख पूर्णिमा के दिन जो भी गंगा स्नान करते हैं, उनके कई जन्मों के पाप धुल जाते हैं।

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