मोहम्मद उस्मान जिसके साँसों में बसता था हिंदुस्तान

एनटी न्यूज़ डेस्क/लखनऊ/श्रवण शर्मा

नौशेरा का शेर कहिये या भारत का लाल आज़ाद भारत में अगर देशभक्ति का सबसे बड़ा उदाहरण दिया जायेगा तो उसमें सबसे आगे होंगे ब्रिगेडियर उस्मान। मोहम्मद उस्मान वो नाम है जिससे पाकिस्तानी भी खौफ खाते थे। जिसने देश की सीमा की रक्षा के लिए अपने प्राण न्योछावर कर दिए।

मोहम्मद उस्मान

जन्म 

ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को आज़मगढ़ में हुआ, आज़ादी के बाद मिलिट्री के अफ़सरों को ये चुनने की आज़ादी दी गयी कि वो हिन्दुस्तान में रहें या पाकिस्तान चले जाएँ। ब्रिगेडियर उस्मान ने हिन्दुस्तान ही में रहना पसंद किया और आज़ादी के फ़ौरन बाद हुई जंग में पाकिस्तान से लोहा लेते हुए वो मुल्क पे क़ुर्बान हो गए।

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प्रशिक्षण-तैनाती 

वह भारतीय सैन्य अधिकारियों के उस शुरुआती बैच में शामिल थे, जिनका प्रशिक्षण ब्रिटेन में हुआ। उस्मान साहब के पिता खान बहादुर मोहम्मद फारुख, जो पुलिस अधिकारी थे और बनारस के कोतवाल भी रहे। उस्मान तीन बहनों पर एक भाई थे। बनारस के हरिश्चंद्र भाई स्कूल से पढाई की। साहसी इतने कि 12 साल की उम्र में अपने एक मित्र को बचाने के लिए कुएं में कूद गए और उसे बचा लिया। पिता चाहते थे, बेटा पुलिस की नौकरी करे लेकिन उस्मान सेना में जाना चाहते थे। और बस सेना में जाने का मन बनाया और ब्रिटेन की रायल मिलिटरी एकेडमी, सैंडहस्ट में चुन लिए गए। भारत से चुने गये 10 कैडेटों में से वे एक थे। ब्रिटेन से पढ़ कर आए मोहम्मद उस्मान उस समय 19 साल के थे जिन्हें तब बलूच रेजीमेंट में नौकरी मिली।

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पाक ने रखा था 5000 रुपए ईनाम 


1947 को जब आजादी मिली तो देश मजहब के आधार पर बंट चुका था। विभाजन के समय ब्रेगेडियर उस्मान सैन्य अधिकारी थे और उस समय सैन्य अधिकारियों को छूट थी कि वह पाकिस्तानी सेना में जाना चाहते हैं या फिर हिन्दुस्तान के साथ रहना चाहते हैं। पाकिस्तान जहां तमाम सैन्य अधिकारियों को बड़े ओहदे का लालच दिखाकर अपनी सेना में शामिल कर रहा था। वहीं, ब्रेगेडियर उस्मान ने अपने वतन को छोड़कर पाकिस्तान जाने से इंकार कर दिया।, जिससे गुस्साएं जिन्ना ने उन्हें काफिर कहते हुए इनका सर काट कर लाने वाले को 50000 का इनाम घोषित कर दिया। पर इस शेर ने हार नहीं मानी और पाकिस्तान को नौशेरा से खदेड़ दिया। इसी वजह से इनको नौशेरा का शेर भी कहा जाता है।

उस्मान पर जिन्ना ने रखा था इनाम

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पाक को दिया था मुंहतोड़ जवाब

1947 में भारत की आजादी के बाद 1948 में पाकिस्तान ने फिर भारत से युद्ध करने का दुस्साहस किया और तकरीबन डेढ़ लाख की तादात में कबायली रूप धरे पाक सैनिक नियंत्रण रेखा संगड को पार करते हुए नौशेरा पहाडी तक आ पहूंचे। उस समय नौशेरा पहाड़ी का सुरक्षा जिम्मा राजपूत रेजिमेन्ट का था, लेकिन अतिसंवेदनशीलता देखते हुए पैराब्रिगेड के सैनिको ने ब्रिगेडियर उस्मान के नेतृत्व में राजपूत रेजिमेंट के सहयोग से अपने अदम्य साहस का परिचय देते हुए पाक सैनिकों को नौशेरा पहाडी से खदेड दिया।

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अंतिम समय का संघर्ष

भारतीय सेना ने झंगड व नौशेरा पर कब्जा तो कर लिया, परंतु पाकिस्तानी सेना द्वारा बिछाई गई बारुदी सुरंगों में बिस्फोट व गोलाबारी में वीर सेनानायक ब्रेगेडियर उस्मान वीरगति को प्राप्त हुए। तीन जुलाई 1948 को नौशेरा में पाकिस्तानी फौज से लोहा लेते हुए वह शहीद हुए। तभी से उन्हें नौशेरा का शेर कहा जाता है।

 

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श्रद्धांजली- मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया

भारत-पाक युद्ध में शहीद होने वाले पहले उच्च सैन्य अधिकारी थे। उन्हें पुरे राजकीय सम्मान के साथ जामिया मिलिया इस्लामिया की कब्रगाह, नयी दिल्ली में दफनाया गया। अंतिम यात्रा में गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला भी थे।

जामिया मिलिया इस्लामिया मेबनी है कब्रगाह,

मरणोपरांत उन्हें महावीर चक्र से सम्मानित किया गया। उस्मान अलग ही मिट्टी के बने थे। वह 12 दिन और जिए होते तो अपना 36वां जन्मदिन मनाते। उन्होंने शादी नहीं की थी। अपने वेतन का हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। नौशेरा में 158 अनाथ बच्चे पाए गए थे, उस्मान उनकी देखभाल करते थे, उनको पढ़ाते-लिखाते थे।

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उनके अंतिम शब्द थे

“हम तो जा रहे हैं पर मात्रभूमि के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाए”।