एनटी न्यूज / स्वास्थ्य डेस्क / कानपुर
- माता समझ मरीज को घर में ही न डालें रखें, जरूर कराएं ईलाज
मौसम बदल रहा है और इसी के साथ मौसम सम्बन्धी बिमारियों का खतरा भी बढ़ रहा है. बढ़ती हुई गर्मी के साथ कई प्रकार के संक्रमण और बिमारियों ने लोगों को घेर लिया है. इनकी चपेट में बड़ों के साथ बल्कि बच्चे भी आ रहे हैं.
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जिला प्रतिरक्षण अधिकारी, डॉ ए के कनौजिया बताते हैं कि चिकन पॉक्स गर्मियों में होने वाली आम बिमारियों में से एक है जिसे आम भाषा में बड़ी माता भी कहा जाता है. इसकी शुरुआत शरीर पर लाल चकत्ते पड़ने से होती है जो धीरे –धीरे पानी से भरे फफोले बन जाते हैं. साथ ही पीड़ित व्यक्ति को हल्का बुखार भी आता है. यह संक्रमण शारीर में सामान्यतः दो हफ्ते तक रहता है जिसके बाद व्यक्ति ठीक हो जाता है. फफोले पपड़ी बनकर सूख जाते हैं और शरीर पर निशान छोड़ जाते हैं. चिकन-पॉक्स के कुल मरीजों में से 90% छोटे बच्चे होते हैं. 2 वर्ष से कम आयु के बच्चों को इस संक्रमण का सबसे अधिक खतरा होता है.
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वेरिसला – ज़ोस्टर नाम के वायरस से फैलता है यह संक्रामक इन्फेक्शन
जिला महामारी वैज्ञानिक, डॉ. देव सिंह ने बताया कि चिकन पॉक्स के नाम को लेकर कई भ्रांतियां हैं पर असल में यह बुखार वेरीसेला – ज़ोस्टर नाम के वायरस से होने वाला संक्रमण है. इसका चिकन या मुर्गे से कोई सम्बन्ध नहीं है. चिकन पॉक्स नाम संभवतः चिकन-पी या मटर के सामान दिखने वाले फफोलों की वजह से दिया गया है. यह संक्रमण प्राय: खांसने व छींकने से फैलता है.
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मुफ़्त दवाएं भी हैं उपलब्ध
मुख्य चिकित्सा कार्यालय के अधीन एकीकृत रोग निगरानी कार्यक्रम के आंकड़ों के अनुसार पिछले 4-5 साल से ज़िले में चिकन पॉक्स का एक भी मरीज़ चिन्हित नहीं हुआ है. जिला महामारी वैज्ञानिक, डॉ. देव सिंह ने बताया कि इस साल भी अभी तक चिकन-पॉक्स का कोई मरीज़ चिन्हित नहीं हुआ है. यदि ऐसा हुआ तो फ़ौरन उक्त स्थान पर रैपिड रिलीफ टीम को भेजकर इलाज मुहैया करवाया जाएगा. उन्होंने जानकारी दी कि यूं तो चिकन पॉक्स की कोई विशेष दवाई नहीं है पर यदि कोई मरीज़ पाया जाए तो उसे एक हफ्ते के लिए पैरासिटामोल, सिट्रीजेन, कॉट्रीमेक्साज़ोल व शुद्ध पेय जल के लिए क्लोरीन का भी मुफ़्त वितरण किया जाता है.
यह संक्रामक बीमारी होने के कारण साफ़-सफाई और खान-पान से जुड़ा विशेष परामर्श भी दिया जाता है. इनमें अन्य लोगों विशेषकर बच्चों से दूर रहना, ठण्डे व तले हुए खाद्य पदार्थों का सेवन न करना, संक्रमित व्यक्ति के कपड़े व बिस्तर की साफ़-सफाई से जुड़े परामर्श शामिल हैं.
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एक बार चिकन पॉक्स ठीक हो जाने के बाद आमतौर पर दूसरी बार व्यक्ति में यह संक्रमण होने की संभावना नहीं रहती.
टोल फ्री नंबर पर करें संपर्क
डॉ. देव सिंह ने बताया की यदि कोई मरीज़ परामर्श या इससे सम्बंधित जानकारी लेना चाहता है तो मुख्य चिकित्सा कार्यालय के संक्रामक रोग कण्ट्रोल रूम के 0512-2333810 पर संपर्क कर सकता है. 24 घंटे ये सेवा उपलब्ध है.
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भ्रांतियों को छोड़ सही इलाज और साफ़-सफाई ज़रूरी
चिकन पॉक्स को लेकर समाज में अब भी कई भ्रांतियां व्याप्त हैं. लोग प्रकृति का प्रकोप समझकर इसका इलाज नहीं करवाते बल्कि झाड़-फूंक का सहारा लेते हैं, जो गलत है.
वहीं डॉ. सिद्दीकी ने बताया कि इस बीमारी का इलाज भी बहुत महत्वपूर्ण है, यदि संक्रमण अधिक हो जाये तो निमोनिया और डबल निमोनिया हो सकता है, जिससे पीड़ित व्यक्ति की मौत भी हो सकती है.
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कुछ मिथ और हकीकत
मिथ: गहरे रंग की चीजें खाने से गहरे दाग पड़ते हैं.
सच: गहरे दाग से बचना चाहते हैं तो केवल एक सूत्र याद रखें कि दागों पर बार-बार नाखून न लगाएं.
मिथ: चिकन पॉक्स ठीक होने के चार या पांच महीने तक नॉनवेज नहीं खाना चाहिए, वरना शरीर में खुजली हो जाती है.
सच: मेडिकल साइंस नॉनवेज खाने से कतई नहीं रोकती. यहां तक कि अगर आप सीफूड खाएं तो भी कोई नुकसान नहीं होता.
मिथ: चिकन पॉक्स के दौरान बाल नहीं धुलने चाहिए और नहाना भी नहीं चाहिए वरना शरीर में हवा घुल जाती है और बुढ़ापे में कई समस्याओं का सामना पड़ता है.
सच: आप प्रतिदिन नहा सकते हैं. बाल भी धुल सकते हैं. केवल इतना ध्यान रखिए कि दाग वाले स्थान पर गीले तौलिए से न पोछें, वरना संक्रमण हो सकता है.