जेईई-नीट परीक्षाओं को लेकर सरकार और छात्र के बीच अभी तक क्या कुछ?

न्यूज़ टैंक्स | लखनऊ

राष्ट्रीय परीक्षा एजेंसी (एनटीए) ने मंगलवार को कहा है कि जेईई मेन और एनईईटी की परीक्षाएं अपने तय समय पर होंगी.

इस बीच कई राजनेताओं और राज्य सरकारों के बाद अब चर्चित पर्यावरण कार्यकर्ता ग्रेटा थनबर्ग ने भी भारतीय छात्रों की एनईईटी और आईईटी जेईई परीक्षा को आगे बढ़ाने की माँग का समर्थन किया है.

थनबर्ग ने एक ट्वीट में कहा, “ये काफ़ी ग़लत है कि भारतीय छात्रों को कोविड के दौर में राष्ट्रीय स्तर की परीक्षाओं में बैठने के लिए कहा जा रहा है. और जब लाखों लोग बाढ़ से प्रभावित हैं, तब मैं इन छात्रों के इम्तिहानों को स्थगित करने की माँग का समर्थन करती हूँ.”

छात्रों ने इन दोनों राष्ट्रीय परीक्षाओं के आयोजन की तारीख़ को आगे बढ़ाने के लिए सुप्रीम कोर्ट में भी गुहार लगाई थी लेकिन सुप्रीम कोर्ट की ओर से उन्हें किसी तरह की राहत नहीं मिली.
ऐसे में केंद्र सरकार और छात्रों के बीच जारी गतिरोध ख़त्म होता नहीं दिख रहा है.

क्या है मामला

भारत में आईआईटी और मेडिकल क्षेत्र की पढ़ाई करने के लिए हर साल राष्ट्रीय स्तर की दो परीक्षाओं- आईआईटी जेईई और नीट का आयोजन किया जाता है.

इस साल भी आईआईटी जेईई की परीक्षा 1 से 6 सितंबर के बीच और नीट की परीक्षा 13 सितंबर को होनी है.

देशभर में आईआईटी के लिए 11 लाख छात्रों ने फ़ॉर्म भरे हैं और नीट के लिए 16 लाख छात्रों ने आवेदन किया है.

लेकिन ये परीक्षा एक ऐसे दौर में हो रही है जब भारत कोरोना वायरस संक्रमण के मामलों के लिहाज़ से दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच चुका है और अब तक 58 हज़ार से ज़्यादा लोगों की मौत इस वायरस की वजह से हो चुकी है.

सरकार ने कोरोना वायरस संक्रमण की रफ़्तार थामने के लिए कई जगहों पर यातायात साधनों पर प्रतिबंध लगाए हुए हैं.

इसके साथ ही ट्रेन सेवाएं अब तक सामान्य नहीं हुई हैं. ऐसे में सवाल ये है कि छात्र इन परीक्षाओं में बैठने के लिए परीक्षा केंद्रों तक कैसे पहुंचेंगे? ऐसा इसलिए, क्योंकि कई जगहों पर छात्रों को एग्ज़ाम सेंटर पहुंचने के लिए सौ-डेढ़ सौ किलोमीटर तक की दूरी तय करनी पड़ती है.

ऐसे में छात्रों की माँग ये है कि इस परीक्षा के आयोजन की तारीख़ को आगे बढ़ाया जाना चाहिए ताकि स्थितियां सामान्य होने पर वे ठीक से परीक्षा दे सकें. लेकिन सरकार का रुख ये है कि ऐसा करने से युवाओं का एक साल ख़राब हो जाएगा.

छात्रों का क्या कहना?

बीबीसी ने आईआईटी जेईई और नीट परीक्षा की तैयारी कर रहे कुछ छात्रों से बात करके इस विवाद पर उनका रुख जानने की कोशिश की है.

12वीं में 95 फीसदी अंक लाने वालीं मृणालिका कहती हैं, “भारत इस समय कोविड संक्रमण के लिहाज़ से दुनिया में तीसरे नंबर पर पहुंच चुका है. ये तो तय है कि टेस्ट सेंटर पर भीड़ इकट्ठी होगी. हमें नहीं पता है कि कौन सा बच्चा कोविड संक्रमित है. इस बात की पूरी संभावनाएं हैं कि हमारे घर में वायरस फैल जाए. मेरा एक छोटा भाई है, मेरे पापा हैं जो कि पहले ही एक बार बीमार पड़ चुके हैं. ऐसे में मैं अगर एक बार ठीक हो भी गई लेकिन मेरे से उनमें संक्रमण फैल सकता है. और मेरी न्युक्लियर फैमिली है. लेकिन कई बच्चे ज्वॉइंट फैमिली में रहते हैं. वहां उनके साथ दादा दादी भी रहते हैं जो कि इस तरह संक्रमित हो सकते हैं.”

ट्रेन यातायात सामान्य नहीं होने की वजह से उत्तर प्रदेश और बिहार जैसी जगहों पर बाढ़ के बीच युवाओं का टेस्ट सेंटर तक पहुंचने में भारी दिक्कतें आ सकती हैं.

बिहार की रहने वालीं आर्या शांडिल्य बताती हैं, “हमारे प्रदेश में 38 ज़िले हैं लेकिन पटना और गया में कुल दो सेंटर हैं. और बिहार में छह सितंबर तक लॉकडाउन लगा है. ये सूचना अभी तक की है. आगे क्या होगा किसी को नहीं पता है. ऐसे में सवाल ये है कि स्टूडेंट अपने बाढ़ प्रभावित ज़िले से बाहर निकलकर टेस्ट सेंटर तक कैसे पहुंचेंगे. अगर हमें टेस्ट सेंटर तक ले जाने वाले हमारे माता पिता, दादी-बाबा को कुछ हो जाता है तो क्या आप अस्पताल का खर्च उठाएंगे? अगर हम अपनों को खो देते हैं तो क्या आप उसकी भरपाई कर पाएंगे? नहीं, आप ऐसा नहीं करेंगे.”

वहीं, बिहार से एक अन्य छात्र उज्जवल कहते हैं कि उनके घर से टेस्ट सेंटर तीन सौ किलोमीटर दूर है.

वे बताते हैं, “मेरे घर से टेस्ट सेंटर के बीच की दूरी तीन सौ किलोमीटर की है. बसें नहीं चल रही हैं. परिवहन के साधन नहीं हैं. ऐसे में हमें बताया जाए कि हम टेस्ट सेंटर तक कैसे पहुंचें. और अगर हम पहुंच भी जाते हैं तो वहां की स्थितियों में हम भीड़ के बीच सोशल डिस्टेंसिंग के नियमों का पालन कैसे कर पाएंगे?”

पश्चिम बंगाल में रहने वाले सायंतन बिश्वास टेस्ट सेंटर पर पहुंचने के बाद वहां रहने रुकने को लेकर होने वाली दिक्कतों को समझने का आग्रह कर रहे हैं.

बिश्वास कहते हैं, “मान लीजिए कि हम टेस्ट सेंटर तक पहुँच भी गए तो अगला सवाल ये है कि घर से सौ-दो सौ किलोमीटर दूर जाकर हम वहां रहने-रुकने का बंदोबस्त कैसे करेंगे?”

“और फिर सब लोग जाएंगे कैसे? क्योंकि सब लोग तो किराए पर गाड़ी करके टेस्ट सेंटर नहीं पहुँच पाएंगे. क्योंकि लॉकडाउन में कई लोगों की नौकरियां गई हैं. उन पर आर्थिक संकट आया है. असम, पश्चिम बंगाल और बिहार में तमाम जगहों पर बाढ़ की वजह से रास्ते ही नहीं हैं. ऐसे में वे लोग सौ-दो सौ किलोमीटर की यात्रा करके कैसे पहुंचेंगे टेस्ट सेंटर तक?”

क्या कहते हैं राजनीतिक दल

जहां एक ओर छात्रों को सत्ता पक्ष से लेकर विपक्ष की ओर से समर्थन मिलता दिख रहा है, वहीं, अब राज्य सरकारों ने आधिकारिक रूप से इस परीक्षा की तारीख़ को आगे बढ़ाने की प्रक्रिया को शुरू कर दिया है.

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखकर सुप्रीम कोर्ट में एक रिव्यू पेटिशन दायर करने का आग्रह किया है.

दिल्ली के शिक्षा मंत्री मनीष सिसौदिया पहले ही केंद्र सरकार से ये परीक्षा रद्द करने की अपील कर चुके हैं.

ओडिशा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक भी केंद्रीय शिक्षा मंत्री को पत्र लिखकर इन परीक्षाओं को स्थगित करने की बात कर चुके हैं.

अपने पत्र में उन्होंने लिखा है, “कोविड 19 के दौर में जेईई मेन्स और नीट टेस्ट के लिए छात्रों का टेस्ट सेंटर जाना काफ़ी असुरक्षित है. ऐसे में ये निवेदन है कि परीक्षाओं की आयोजन तिथि सितंबर से आगे बढ़ाई जाए.”

डीएमके अध्यक्ष एम के स्टालिन ने केंद्रीय शिक्षा मंत्री रमेश पोखरियाल से बात करके इन दोनों परीक्षाओं को तब तक के लिए आगे बढ़ाने का आग्रह किया है जब तक स्थितियां सामान्य न हो जाएं.

इस मुद्दे पर छात्रों के साथ अंतरराष्ट्रीय हस्तियां भी खड़ी होती दिख रही हैं. जैसे कि पर्यावरण से जुड़े मुद्दे उठाने वालीं ग्रेटा थनबर्ग ने भी अपने आधिकारिक अकाउंट से ट्वीट करके इस मुद्दे पर छात्रों की माँग का समर्थन किया.

सरकार के दावे में कितना दम

नेशनल टेस्टिंग एजेंसी ने बीते 21 अगस्त को एक प्रेस रिलीज़ के ज़रिए परीक्षा के लिए किए जा रहे इंतज़ामों के बारे में बताया था.

एजेंसी ने बताया है कि उसने परीक्षा के पहले और बाद परीक्षा केंद्रों की साफ़-सफ़ाई के लिए बेहतर इंतज़ाम किए हुए हैं और नए हैंड ग्लव्स एवं मास्क आदि देने की व्यवस्था भी की है. इसके साथ ही परीक्षा केंद्र के रखरखाव के लिए एक विस्तृत दिशा निर्देश जारी किए हैं.

इसी प्रेस रिलीज़ में सुप्रीम कोर्ट के उस आदेश का भी ज़िक्र किया गया है जिसमें कोर्ट ने परीक्षा को आगे बढ़ाने के लिए दाख़िल की गई याचिका को ख़ारिज कर दिया था.

लेकिन तमाम छात्र अभी भी करियर के लिए जान जोख़िम में डालने को तैयार नज़र नहीं आ रहे हैं.

इसी उम्र के बच्चों की करियर काउंसलिंग करने वाले अनिल सेठी मानते हैं कि बच्चों के लिए इस स्थिति में इम्तिहान देना बहुत बड़ी समस्या है.

वे कहते हैं, “कई जगहों पर पानी भरा हुआ है, कहीं से कहीं तक जाने के लिए परिवहन के साधन उपलब्ध नहीं हैं. लॉकडाउन भी चल रहा है, कई जगहों पर. और जब बच्चे ये परीक्षा दे रहे होंगे तो उन्हें ये मास्क पहनकर रखना होगा. और मान लीजिए कि कहीं वे संक्रमित हो गए तब क्या होगा? ऐसे में बच्चों के लिए ये सही नहीं है.”

“मेरा ख्याल ये है कि टेस्ट की तारीख़ों को आगे बढ़ाना ही चाहिए. कोर्ट ने भले ही मना कर दिया हो लेकिन सरकार चाहे तो इसे पोस्टपोन कर सकती है. क्योंकि इसका बच्चों पर काफ़ी नकारात्मक असर होने वाला है.”

Source: bbc.com/hindi

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