न्यूज़ टैंक्स | मथुरा
रिपोर्ट- बादल शर्मा
- बैंक नहीं लेते कटे फटे और चिंदी लगे नोटों को
- कोरोना संकट में भारी पड रही है बैंकों की यह पाॅलिशी …
बैंक अपने ही अकाउंट होल्डर और उपभोक्ता के कटे फटे अथवा चिंदी लगे नोट को लेने से साफ इनकार कर देता है। जब बैंक इन नोटों को नहीं ले रहे हैं तो फिर व्यक्ति इनका क्या करेगा। क्या जरा सा कट जाने या चिंदी लग जाने पर कोई व्यक्ति अपने दो हजार के नोट को फैंक देगा। कभी आपने सोचा है कि जिस कटे नोट को बैंक किसी भी कीमत पर लेने को तैयार नहीं उसे कम कीमत पर कुछ लोग लेने के लिए हमेशां तैयार रहते हैं, ये लोग इन नोटों का क्या करते हैं?
यह भी – चीन से चार राउंड की वार्ता नाकाम, सेना को हाई अलर्ट पर रहने के निर्देश
सुनील शर्मा का कहना है कि यह बडा खेल है कि 2000 के कटे नोट के अगर बैंक कर्मचारी आपको 200 अथवा 300 रूपये कम में चलाने को कहे तो आप मानेंगे नहीं लेकिन फडवाले को आप इसे 400 रूपये कम में भी दे सकते हैं। यही कमीशन का खेल है जिसके चलते इस तरह के आपके नोट बैंक में नहीं चलते हैं।
जन सहयोग समूह के संयोजक अजय अग्रवाल ने प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और आरबीआई गर्वनर को पत्र लिखा है, जिसमें 2009 की बैंक नियमावली का हवाले देते हुए यह भी खोला है कि प्रत्येक बैंक शाखा में एक काउंटर होगा जिस पर लोगों के कटे फटे नोटों को बदला जाएगा। बैंक की नियमावली के अनुसार सभी बैंक की ब्रांच में इस तरह के काउंटर खोले जाने चाहिए।
व्यापारी नेता सुनील सहानी कहते हैं होलीगेट के नीचे कटे फटे नोटों को बदलने के लिए कुछ लोग बैठे हैं। कम कीमत पर वह आपके इस तरह के नोटों को लेंगे। जबकि बैंक पूरी कीमत पर इन नोटों को इन लोगों के माध्यम से लेगा। जिसमें दोनों का कमीशन है। बैंक कर्मचारी आम उपभोक्ता के साथ जानबूझ कर रूखा व्यवहार करते हैं जिससे कि वह दलाल के माध्यम से काम कराने को मजबूर हो जाये।
जितेंद्र शर्मा कहते हैं कि कोरोना संकट में भी बैंकों की मानसिकता नहीं बदली है। इस समय कमजोर और मजदूर वर्ग के लिए दस रूपये की भी बडी कीमत है। ऐसे में अगर किसी के पास दो हजार अथवा पांच सौ रूपये का कोई ऐसा नोट आ जाता है और बैंक उसे नहीं लेती है तो यह गरीब व्यक्ति पर बडी मार है। बैंक अलग से काउंटर नहीं खोल सकते हैं तो कम से कम सप्ताह में एक या दो दिन तो इस तरह की व्यवस्था कर ही सकते हैं।