एनटी न्यूज़डेस्क/प्रयागराज
प्रयागराज- पूरा विश्व कोविड-19 बीमारी की चपेट में है इसकी वजह से इस बीमारी को लेकर लोगों में डर और चिंता बढ़ने के कारण मानसिक स्वास्थ्य पर भी बहुत बुरा असर पड़ रहा है I चिकित्सकों की माने तो इसका सबसे ज्यादा खतरा अधिक उम्र और अन्य बीमारी से ग्रसित लोगों को है इसके बावजूद बहुत से लोग कोरोना से ठीक भी हो रहे है इसमें उनकी सकारात्मक सोच और मज़बूत इच्छाशक्ति को अत्यधिक कारगर माना जा रहा है I 65 वर्षीय प्रभात कुसुम गुप्ता एक जीता-जागता उदाहरण हैं जिन्होंने एक लाइलाज बीमारी से ग्रसित होने के बाद भी अपनी सकारात्मक सोच और मजबूत इच्छाशक्ति से कोरोना को हरा दिया I
जनपद के अल्लापुर क्षेत्र की रहने वाली 65 वर्षीय प्रभात कुसुम गुप्ता पिछले 14 साल से फेफड़े की लाइलाज बीमारी इंटरस्टीशियल लंग डिज़ीज़ (आई.एल.डी.) से लड़ रही हैं। इनके फेफड़े लगभग 80 प्रतिशत निष्क्रिय अवस्था में हैं जिसके इलाज के लिए वह 2006 में दिल्ली के एम्स भी गई, जाँच के बाद शुरुआती लक्षण टी.बी. के मिलने पर उपचार भी हुआ I कुछ समय बाद इंटरस्टीशियल लंग डिज़ीज़ (आई.एल.डी.) की पुष्टि होने पर इलाज संभव ना होने के कारण उन्हें छुट्टी दे दी गई । तब से वह घर पर रह कर ही अपना उपचार करवा रही हैं I
अनजाने में कोरोना से हुई संक्रमित
कुसुम के बड़े बेटे नितिन को 27 अगस्त की रात तेज बुखार आया। वह तुरंत होम क्वारंटाइन हो गए। सुबह के.पी. ग्राउंड जांच केंद्र में अपनी कोरोना जांच करायी। रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद भी वह क्वारंटाइन ही रहे। 1 सितंबर को ‘नारायण स्वरूप अस्पताल’ में उन्होने दोबारा अपनी कोरोना जांच करायी। 2 को नितिन की रिपोर्ट दोबारा से निगेटिव आयी। उसी रात कुसुम को तेज बुखार हुआ और वह तुरंत क्वारंटाइन हो गयीं। 3 सितंबर को नीतिव व कुसुम स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल गए जहाँ दोनों ने अपनी कोरोना जांच करायी। 4 सितंबर को नितिन व कुसुम दोनों की रिपोर्ट पॉज़िटिव आयी।
फेफड़ा 80 प्रतिशत निष्क्रिय था-
कुसुम की बीमारी (आई.एल.डी.) का इलाज कर रहे चिकित्सक डॉ. आशीष टंडन ने बताया कि कुसुम 2006 से इंटरस्टीशियल लंग डिज़ीज़ (आई.एल.डी.) से पीड़ित हैं, आई.एल.डी. की पुष्टि होने पर मरीज़ बस 5-6 साल तक ही जीवित रह पता है I यह फेफड़े से जुड़ी कई बीमारियों का समूह है और लम्बे समय तक रहती है I इसमें फेफड़ो के बीच की कोशिकाएं मोटी होने के कारण फेफड़ा सिंकुड जाता है और फेफड़ा बहुत कमज़ोर हो जाता है इसकी वजह से खून में ऑक्सीजन ठीक से नही पहुँचती है I कुसुम को संक्रमण के चलते फेफड़े में सैकड़ो छाले हो गए जिनके गहरे घावों से 80 प्रतिशत फेफड़े का हिस्सा हमेशा के लिए निष्क्रिय हो चुका है। कुसुम को अक्सर ऑक्सीजन की कमी होती है इसलिए उनको ऑक्सीजन, दवा और चिकित्सालय में भर्ती भी होना पड़ता है I इस बीमारी का सफल इलाज दुनिया में कहीं भी नहीं है, इसे बस दवाओं के नियंत्रित या कम किया जा सकता है I उन्होंने बताया कि यह चमत्कार ही है कि कुसुम आई.एल.डी. से पीड़ित होने के बाद भी 14 साल से लड़ रही हैं और इससे भी बड़ा चमत्कार है की वह कोरोना से लड़ कर ठीक हो गई क्यों कि जब कुसुम कोरोना पॉजिटिव हुई तो यह आशंका थी की शायद वह अब कभी ठीक न हो पायें, पर कोरोना प्रोटोकॉल के तहत उनका उपचार हुआ और आज वह कोरोना को हरा कर वापस पहले जैसा जीवन जी रही हैं I
सकारात्मक विचार और चिकित्सा परामर्श से जीती जिंदगी की जंग –
कोरोना पॉज़िटिव होने के बाद स्वास्थ विभाग की टीम ने कुसुम को अस्पताल में भर्ती होने का सुझाव दिया पर उम्र और पहले की बीमारी को देखते हुए कुसुम ने घर पर ही इलाज की इच्छा जताई I इसके बाद स्वास्थ विभाग और चिकित्सकों के दिशा-निर्देशों का पूर्णतः पालन करते हुए होम आइसोलेशन में रहते हुए कुसुम का इलाज हुआ । इस बीच आई.एल.डी. की दवाएं बंद कर दी गयी। दिनचर्या में खानपान नियमित रखा, सुबह उठना, रोज़ अनुलोम-विलोम करना व स्नान के बाद दो घंटे ध्यान व पूजा करना, शहद, हल्दी, सोंठ, लौंग, दालचीनी, काली मिर्च के मिश्रण का प्रतिदिन सेवन करना, रोजाना गर्म पानी पीना, भाप लेना व बिना तेल मसाले का सादा भोजन करना, सकारात्मक संगीत व भजन सुनना व गुनगुनाना उनकी जीवनशैली का प्रमुख हिस्सा रहा है I कुसुम के पति अवधेष और पूरे परिवार ने दिन-रात उनकी सेवा और देखरेख की I इसके बाद 21 सितम्बर को पुनः जाँच करवाई गई जिसमें कुसुम कोरोना निगेटिव आई
उनके बेटे नितिन ने बताया की होम आइसोलेशन के दौरान एक-दो बार रात में माँ का ऑक्सीजन स्तर 82-83 प्रतिशत तक गिर गया इसके बाद माँ ने प्रत्येक घंटे नियमित 15 मिनट तक भाप लेने की प्रक्रिया शुरू कर दी इससे करीब तीन घंटे बाद उनका ऑक्सीजन लेवल स्वतः बढ़कर 94-95% आ गया। उन्होने भाप लेने की प्रक्रिया को अभी भी जारी रखा है। स्वास्थ विभाग द्वारा सुझायी गयी दवाओं का सेवन व दिशानिर्देशों का सख्ती से पालन किया। इन्हीं प्रक्रियाओं व अहतियात से माँ ने कोरोना पर विजय प्राप्त कर ली। अपने जीवन को लेकर माँ हमेशा सकारात्मक रही हैं। हर हालात में खुद को संभालना व खुश रहना उनके जीवन का मूलमंत्र रहा है।