न्यूज़ टैंक्स / लखनऊ
लखनऊ : नवरात्र की अष्टमी व नवमी तिथि के पावन पर्व पर माता की भक्ति से लबरेज भक्तों के जयकारों की गूंज देश के हर दुर्गा पंडाल में देखी जा सकती है। हर ओर इस अद्भुत क्षण पर भक्त कन्या भोज व उनका पूजन कर तृप्त हो रहे हैं। वहीं लखनऊ के राजकीय कन्या अनाथालय, राजकीय शिशु गृह व राजकीय महिला शरणालय में कन्या पूजन व कन्या भोज का मनोरम आयोजन किया गया।
कार्यक्रम के आयोजन के दौरान शारीरिक दूरी का पालन करते हुए कन्या भोज व कन्या पूजन के आयोजन में 11-18 वर्ष की 97 बालिकाएं व 5-10 वर्ष की 24 बालिकाएं एवं 5 वर्ष से कम आयु के 42 शिशु व 31 महिलाओं को शामिल किया गया। भोज से पूर्व शक्ति का प्रतीक माने जानी वाली मां दुर्गा की पूजा-अर्चना की गई व गायत्री मंत्र का जाप किया गया।
पौलोमी पाविनी शुक्ला के साथ लखनऊ के शोभित अग्रवाल व बरेली से आए रोहित ने देवी स्वरूप बच्चियों व बच्चों को अपने हाथों से मिठाई खिलाई व बच्चों के लिए उनकी डिमांड पर खास तौर पर पिज़्ज़ा मंगाकर उन्हें भेंट किया।
राम नवमी के इस पावन पर्व पर पौलोमी पाविनी शुक्ला समाज के संपन्न व्यक्तियों को अनाथ बच्चों की शिक्षा के लिए अनुदान व उनके दैनिक जीवन की उपयोगी वस्तु को दान करने के लिए हमेशा प्रेरित करती रही हैं। पौलोमी का मानना है कि कोई भी पर्व तभी सार्थक होगा जब समाज के निःशक्त वर्ग की मौजूदगी व भूमिका हमारे समाज में बराबर हो और यह तभी मुमकिन है जब हर संपन्न व्यक्ति अपने सामर्थ के अनुसार इनके लिए आर्थिक मदद व सामाजिक अधिकार व रोजगार देने व दिलाने के प्रति समर्पित होगा। इनके जीवन में सकारात्मक बदलाव तभी आ सकेगा।
पौलोमी पाविनी शुक्ला पेशे से उच्चतम न्यायलय में अधिवक्ता हैं। वह करीब 5 वर्षों से अनाथ बच्चों को समाज में समान अधिकार दिलाने हेतु कार्यरत हैं। इसी उद्देश्य से संबंधित मुद्दे को पौलोमी ने सर्वोच्च न्यायालय में जनहित याचिका भी दायर की है जो कि अभी विचाराधीन है।अपने इसी मुहिम से जुड़े अनुभव को इन्होंने स्वलिखित पुस्तक ‘पृथ्वी के सर्वाधिक निःशक्त – भारत के अनाथ’ (Weakest on Earth – Orphans of India) में साझा किया है। यह पुस्तक प्रसिद्ध प्रकाशन संस्था Bloomsbury द्वारा प्रकाशित की गई है।
पौलोमी पाविनी शुक्ला बीते कई सालों से हर त्योहार व शुभ कार्यक्रम सपरिवार अनाथालय आकर मनाती हैं। पौलोमी कहती हैं कि ‘इस अनाथालय में मौजूद हर एक बच्चे से मेरा अद्भुद नाता है मैं अपना पूरा जीवन इनके उत्थान के प्रति समर्पित करना चाहती हूं। जब तक सांसों में सांस है मैं इनके हर अधिकारों के लिए लड़ती रहूंगी।’