माँ बनना प्रकृति का सबसे बड़ा वरदान माना जाता है, क्योंकि मातृत्व से बड़ा कोई सुख नहीं है। जब बाल गोपाल घर के आंगन में रासलीला करते है, तब माता अपने सारे दुखों को भूल जाती हैं। स्त्री की परिपूर्णता मातृत्व से ही होती है।
माँ बनना वाकई में एक ईश्वरीय अनुभव है। किंतु सब दम्पति इस शौभाग्य को प्राकृतिक रूप से प्राप्त नहीं कर पाते। यह आज की आधुनिक दुनिया का एक दुखद सत्य है कि सभी औरतें प्राकृतिक रूप से गर्भ धारण नहीं कर पाती। इसके अनेक कारण हो सकते है जैसे त्रुटिपूर्ण जीवनशैली, कुछ एंडोक्राईन बीमारिया, गर्भास्य की बीमारिया आदि।
कुछ महिलाओं में तो निस्संतानता प्राकृतिक रूप से भी होती है। ‘द डिप्लोमैट’ में छपी 2018 की एक रिपोर्ट के अनुसार, भारत में करीब 2.5 से 3 करोड़ गर्भ धारण करने की कोशिश करने वाले शादीशुदा जोड़े किसी न किसी रूप में बांझपन से पीड़ित हैं। ऐसे युगलों के लिए जीवन एक सुनी राह के जैसी लगने लगती है।
हालाँकि, चिकित्सा विज्ञान की उन्नति ने ये सुनिश्चित किया है कि किसी भी माँ की गोद सुनी ना रहे। कृत्रिम गर्भाधान द्वारा ऐसे युग्लों को वात्सल्य सुख प्रदान किया जा सकता है। डॉ गौतम नंद अलाहबादिया, जो पिछले 3 दशकों में कृत्रिम गर्भाधान के माध्यम से हजारों दम्पतियों को संतान सुख का तोहफा दे चुके हैं, का कहना है कि आज की तारीख में आईवीएफ और सहायक प्रजनन तकनीक (असिस्टेड रिप्रोडक्शन) भारत में तेजी से लोकप्रिय हो रहा है।
कृत्रिम गर्भाधान तकनीक की जड़ों को भारतीय उपमहाद्वीप में मज़बूती से स्थापित करने वाले शीर्ष चिकित्सकों की पहली पंक्ति में खड़े, डाक्टर गौतम नंद अलाहबादिया ने आईवीएफ की मूलभूत समझ को बदलने में भी अहम् भूमिका निभाई है। भारत में इनकी बेहतरीन पहल का ही नतीजा है कि आईवीएफ धर्म और जाती की सीमाओं को तोड़ लाखों भारतीय दम्पतियों के जीवन में खुशिया ला रहा है। पिछले एक दशक के दौरान इन-विट्रो फर्टिलाइज़ेशन के जरिये प्रजनन करने वाले जोड़ों में जबरदस्त वृद्धि हुई है।
दुबई स्थित मिलेनियम मेडिकल सेंटर-आईवीएफ (MMC) में टेस्ट ट्यूब बेबी, कृत्रिम गर्भाधान, तथा प्रजनन संबंधी एंडोक्रिनोलॉजी के विशेषज्ञ, डॉ गौतम नंद अलाहबादिया के ही मार्गदर्शन में हिंदुस्तान का पहला ऐसा आईवीएफ सेंटर निर्मित हुआ था जो गरीब दम्पत्तिओं को संतान सुख दे सके – डेक्कन आईवीएफ, जिसे बाद में रोटुंडा – द सेंटर फॉर ह्यूमन रिप्रोडक्शन के नाम से जाना जाने लगा। करीब तीस साल पहले स्थापित हुआ मुंबई का ये आईवीएफ केंद्र आज भी भारतीय दंपत्तियों के लिए वरदान है।
अपनी माता जी की अंतिम इच्छा को पूरा करते हुए डॉ अलाहबादिया ने अपने करियर के दौरान हजारों दीन दंपत्तियों की संतान प्राप्ति की चाहत को साकार किया है। डाक्टर गौतम नंद अलाहबादिया को उन चेहरे पर आई मुस्कुराहटों से असीम सुख का अनुभव होता है और यही उनके जीवन का प्रमुख दर्शन भी है।
भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के विभिन्न हिस्सों में अपनी सफलता का परचम लहराने वाले डॉ अलाहबादिया का नाम अल्ट्रासाउंड निर्देशित भ्रूण स्थानांतरण के क्षेत्र में बड़े सम्मान से लिया जाता है। उनका नाम भारत और दक्षिण-पूर्व एशिया के कई देशों में मिनिमल स्टिमुलेशन आईवीएफ (आईवीएफ-लाइट) को प्रचलित करने वालों चुनिंदा विशेषज्ञों में अग्रणी हैं।
जर्नल ऑफ़ ऑब्सटेट्रिक्स एंड गायनेकोलॉजी ऑफ़ इंडिया एंड आईवीएफ लाइट (जर्नल ऑफ़ मिनिमल स्टिमुलेशन IVF) के प्रतिष्ठित संपादक ने अपने शानदार करियर के दौरान 150 से अधिक वैज्ञानिक शोध पत्र, 134 पुस्तकों के अध्याय और 27 पाठ्यपुस्तकों की रचना की है। साथ ही इनका नाम कई अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं के संपादकीय बोर्ड में मुद्रित हैं।
वर्ष 1996 में डॉ गौतम अलाहबादिया को जर्मनी के प्रतिष्ठित जर्मन अकादमिक एक्सचेंज सेवा (Deutscher Akademischer Austauschdienst) फेलोशिप से सम्मानित किया गया था। उन्होंने अपना IVF/ICSI का प्रशिक्षण गोएटिंगेन विश्वविद्यालय, बेवलेफ़ेल्ड आईवीएफ केंद्र और यूनिवर्सिटी ऑफ़ म्यूनिख में पूरा किया है।
साथ ही वर्ष 1998 में उन्हें एशिया-ओशिनिया प्रसूति और स्त्री रोग फेडरेशन (AOFOG) के द्वारा यंग गायनोकोलॉजिस्ट पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया था। मई 2004 में इटली की राजधानी रोम में आयोजित WARM के दूसरे सम्मलेन में वैज्ञानिक अध्यक्ष रह चुके, डॉ अलाहबादिया को 2004 में वर्ल्ड एसोसिएशन ऑफ रिप्रोडक्टिव मेडिसिन (WARM) का उपाध्यक्ष चुना गया था।
डॉ अलाहबादिया का हमेशा से एक सपना रहा है – भारत में आईवीएफ की सर्वोत्तम तकनीक को सबके लिए सुलभ एवं किफायती बनाना। इसी सपने को पूरा करने हेतु वो सेवानिवृत्ति के बाद का जीवन अपने देश भारत के नाम करना चाहते हैं। हमेशा से ही प्रकृति प्रेमी और पर्वतों के प्रति उत्साही रहने वाले डॉ अलाहबादिया देवभूमि उत्तराखंड को एक विश्वस्तरीय आईवीएफ अस्पताल समर्पित करना चाहते हैं। उनका मानना है की भारत के किसी भी दम्पति को, उनकी आर्थिक स्थिति से इतर, उनके जीवन में एक बच्चे से वंचित ना रहना पड़े।
(यह डॉक्टर गौतम अलाहबादिया के निजी विचार हैं)