सरकारी बैंकों के निजीकरण के खिलाफ बैंककर्मियों की दो दिन की राष्ट्रव्यापी हड़ताल सोमवार से शुरू हो गई। नौ यूनियनों के सम्मिलित संगठन यूनाइटेड फोरम ऑफ बैंकिंग यूनियन द्वारा ऐलान किए गए इस हड़ताल में करीब दस लाख बैंक कर्मी और अधिकारी शामिल हुए।
प्रमुख यूनियनों के नेताओं ने इस हड़ताल के पूरी तरह सफल रहने का दावा किया है। उनका कहना है कि 16,500 करोड़ रुपये मूल्य के दो करोड़ चेक/ इंस्ट्रुमेंट्स का क्लीयरेंस प्रभावित हुआ है। ऑल इंडिया बैंक इम्पलॉइज एसोसिएशन के महासचिव सी. एच. वेंकटाचालम ने कहा, करीब 16,500 करोड़ रुपये मूल्य के औसतन दो करोड़ चेक का क्लियरेंस रूक गया है। सरकारी ट्रेजरी से जुड़ा कामकाज और सामान्य बैंकिंग लेनदेन भी प्रभावित हुआ है।
दरअसल बैंक यूनियनों और केंद्रीय वित्त मंत्रालय के बीच 4, 9 और 10 मार्च को हुई सुलह बैठक के विफल होने के बाद इस हड़ताल का आह्वान किया गया था। बैंक यूनियनों ने सरकार से सरकारी बैंकों के निजीकरण के अपने फैसले पर पुनर्विचार करने को कहा है, जिसमें कई लोगों की नौकरी चली जाएगी।
पिछले महीने पेश किए गए केंद्रीय बजट में वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण ने अपनी विनिवेश योजना के हिस्से के रूप में दो सार्वजनिक क्षेत्र के बैंकों के निजीकरण की घोषणा की थी। इससे पहले, सरकार ने वर्ष 2019 में आईडीबीआई बैंक में अपनी बहुलांश हिस्सेदारी एलआईसी को बेचकर उसका निजीकरण कर चुकी है और इसके साथ ही पिछले चार वर्षो में सार्वजनिक क्षेत्र के 14 बैंकों का विलय किया गया है। हड़ताल के शुरुआती कुछ घंटों में सार्वजनिक क्षेत्रों के बैंकों की कई शाखाओं में बैंकिंग सेवाएं पूरी तरह से प्रभावित होती दिखाई दी।