प्रयागराज : हौसले अगर बुलंद हों व मन में कुछ बेहतर करने की मंशा हो तो शारीरिक दिव्यांगता आड़े नहीं आ सकती। ऐसा ही कुछ कर दिखाया है सरिता द्विवेदी ने। सरिता की कहानी महिला सशक्तिकरण का एक सशक्त उदाहरण है। चार वर्ष की उम्र में दोनों हाथ व एक पैर गँवा चुकी सरिता ने जिंदगी की जंग में हार नहीं मानी। मुंह में ब्रश को दबाकर दाहिने पैर की उँगलियों के सहारे कैनवास पर रंग भरना शुरू किया तो उनके हुनर को देख लोगों ने दांतों तले उंगलियां दबा ली।
दिव्यांगता को मात देने वाली सरिता को 14 वर्ष की उम्र में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बालश्री’ से नवाजा। इलाहाबाद विश्वविद्यालय से बीएफए की डिग्री हासिल कर चुकी सरिता शिक्षा से लेकर कला क्षेत्र में कई राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त कर चुकी हैं। वर्तमान में सरिता भारतीय कृत्रिम अंग निर्माण निगम (एलिम्को) में नौकरी करती हैं। यह दुनिया के सामने अपनी दृढ़ इच्छाशक्ति का लोहा मनवा चुकी हैं।
प्रयागराज मण्डल के फतेहपुर जनपद की रहने वाली सरिता के पिता विजयकान्त द्विवेदी भूतपूर्व सैनिक व माता विमला द्विवेदी हैं। उनकी शिक्षा प्रयागराज जनपद के केंद्रीय विद्यालय ओल्ड कैंट से हुई। सरिता ने कभी खुद को दिव्यांग नहीं समझा। उसके इसी हौसले ने उसकी जिंदगी में भी रंग भर दिए।
मौत को भी दे चुकी हैं मात
सरिता जब वह चार वर्ष की थीं तभी हार्इटेंशन तार की चपेट में आने से उनका आधा शरीर बुरी तरह झुलस गया था। कर्इ सर्जरी से गुजरने के बाद जान बची पर इस हादसे ने उसके दोनों हाथ व एक पैर हमेशा के लिए छीन लिए। सरिता ने बताया कि ‘मेरे माता-पिता ने उम्मीद व हौसलों के रंग मेरी जिंदगी में भरें। मां ने मुझे एक सामान्य बच्चे की तरह ही पाला व हमेशा आत्मनिर्भर होने की प्रेरणा दी। पिता सेना के उन वीरों की अक्सर सच्ची कहानियाँ सुनाते जिसने विपरीत परिस्थितियों में भी अपने धैर्य व हिम्मत को बनाये रखा।‘ बीएफए करते समय मेरे अध्यापक रहे अजय जेटली को मैं अपना सच्चा मार्गदर्शक मानती हूँ।
सरिता को पहला राष्ट्रीय पुरस्कार ‘बालश्री’ वर्ष 2006 में तत्कालीन राष्ट्रपति डॉ. एपीजे अब्दुल कलाम ने दिया था। वर्ष 2008 में उप राष्ट्रपति हामिद अंसारी ने इन्हें इम्पावरमेंट ऑफ पर्सन विद डिसेबिलिटीज अवार्ड से नवाजा। वर्ष 2009 में मिनिस्ट्री आफ इजिप्ट ने इंटरनेशनल अवॉर्ड व जम्मू-कश्मीर के मुख्यमंत्री फारुक अब्दुल्ला व देश की पहली महिला जस्टिस लीला सेठ ने सरिता को गॉडफ्रे फिलिप्स नेशनल ब्रेवरी अवार्ड से सम्मानित किया है।
देश के अधिकांश धार्मिक स्थलों पर झुका चुकी हैं शीश-
सरिता बताती हैं कि वह देश के अधिकांश धार्मिक स्थलों पर जा चुकी हैं। इसका प्रमुख कारण यह है कि उनको अपनी विरासत, संस्कृति एवं परंपरा से रूबरू होने के साथ ही पेंटिंग,फोटोग्राफी, हस्त एवं शिल्प कला बहुत पसंद है।
Note :यह स्टोरी CFAR में कार्यरत श्रवण कुमार शर्मा ने लिखी है।इस स्टोरी के अंश को कोई भी कहीं भी किसी भी पायदान पर निःसंकोच साझा कर सकता है।इस स्टोरी के कंटेंट या स्टोरी पर किसी प्रकार की कॉपी राईट नहीं लागू होगी।यह सिर्फ इसलिए ताकि सरिता की स्टोरी जनमानस को एक सकारात्मक संदेश दे सके।
स्टोरी सोर्स: श्रवण शर्मा, CFAR जिला समन्वयक प्रयागराज उत्तर प्रदेश॥
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