अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का हुआ लोकार्पण
लखनऊ।
अखिल भारतीय साहित्य परिषद द्वारा प्रकाशित पुस्तकों का लोकार्पण शनिवार को विश्व संवाद केन्द्र जियामऊ के अधीश सभागार में किया गया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दैनिक जागरण के संपादक आशुतोष शुक्ल,जनता टीवी के संपादक कृष्ण कांत उपाध्याय,साहित्य परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ. सुशील चन्द्र त्रिवेदी मधुपेश और पवन पुत्र बादल ने तीन पुस्तकों का विमोचन किया।
कार्यक्रम में अतिथियों ने अखिल भारतीय साहित्य परिषद के राष्ट्रीय संगठन मंत्री पराडकर द्वारा लिखित दो पुस्तकों जिसमें ‘साहित्य का धर्म’ और ‘साहित्य परिषद का इतिहास’ और विजय त्रिपाठी द्वारा लिखित पुस्तक क्या ‘भूल पायेगी अयोध्या’ का विमोचन किया।
इस अवसर पर बोलते हुए कार्यक्रम के मुख्य अतिथि दैनिक जागरण के संपादक आशुतोष शुक्ल ने कहा कि साहित्य वही जो कालजयी वह बोधगम्य और समाज के हित में लिखा जाय वही साहित्य है। उन्होंने कहा कि साहित्यकार को निर्भीक होना चाहिए। जब समय के साथ चले और आगे को देख कर लिखा जाय वही साहित्य है। आजादी के बाद देश की शिक्षा व साहित्य पर कम्युनिस्टों ने कब्जा किया। हम अपने को भूल गये।
आशुतोष शुक्ल ने कहा कि राजनैतिक कारणों को देखते हुए जो लिखा जाय वह साहित्य नहीं है। साहित्यकार वृक्ष की तरह होता है जिसको पता ही नहीं होता कि इसमें कब फल आयेगा।
दैनिक जागरण के संपादक ने कहा कि धर्म कभी अफीम नहीं रहा। साहित्य सत्ता को वशीभूत कर सकता है। मुगलकाल में जब मंदिर तोड़े जा रहे थे हिंदू समाज पर अत्याचार हो रहा था ऐसे समय में गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरित मानस की रचना की। तुलसी का मुकाबला कोई नहीं कर सकता।
राष्ट्रधर्म पत्रिका के प्रबंध संपादक डॉ. पवन पुत्र बादल ने प्रस्तावना भाषण करते हुए कहा कि श्रीधर पराडकर द्वारा लिखित पुस्तक साहित्य परिषद के कार्यकर्ताओं के भाव को पुष्ट करने में उपयोगी साबित होगी। उन्होंने कहा कि संगठन का इतिहास लिखना दुष्कर कार्य है फिर भी श्री धर पराडकर जी ने यह कार्य किया है। जब हमारा वैचारिक अधिष्ठान मजबूत होता है तो हमारा मन मस्तिष्क विचार प्रभावित नहीं होते।
पवन पुत्र बादल ने ‘साहित्य का धर्म’ पुस्तक पर चर्चा करते हुए कहा कि लेखन की दिशा क्या हो । इस पुस्तक में लेखक ने यह दर्शाने का काम किया है। कार्यक्रम के विशिष्ट अतिथि साहित्य परिषद के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष डॉ सुशील चन्द्र त्रिवेदी मधुपेश ने भी अपने विचार रखे।
कार्यक्रम की अध्यक्षता जनता टीवी के संपादक कृष्ण कांत उपाध्याय ने की। उन्होंने कहा कि कम्युनिस्टों ने हमारे साहित्य को नकारने का काम किया। साहित्य परिषद ने साहित्य को बचाने का काम किया। कार्यक्रम का संचालन डॉक्टर शिव मंगल सिंह ने किया।