Rohit Ramwapuri
तेहरान/नई दिल्ली | 22 जून 2025 | न्यूज़ टैंक्स ब्यूरो: होर्मुज़ जलडमरूमध्य बंद करने के ईरानी प्रस्ताव से एशिया में गहरा सकता है संकट , भारत समेत कई देश ऊर्जा और शिपिंग आ सकते हैं अस्थिरता की चपेट में!
अमेरिका और इज़राइल के साथ बढ़ते सैन्य तनाव के बीच ईरान की संसद ने एक निर्णायक प्रस्ताव पारित करते हुए होर्मुज़ जलडमरूमध्य को बंद करने की स्वीकृति दी है। यह वही समुद्री मार्ग है जिससे होकर विश्व का लगभग 20% कच्चा तेल और गैस गुजरता है। अंतिम निर्णय अब ईरान की सुप्रीम नेशनल सिक्योरिटी काउंसिल को लेना है।इस निर्णय का सीधा असर भारत और एशिया की ऊर्जा आपूर्ति, शिपिंग उद्योग और वैश्विक आर्थिक स्थिरता पर पड़ने वाला है।
भारत के लिए होर्मुज़ का महत्व:
भारत अपनी कुल कच्चे तेल की ज़रूरतों का करीब 85% आयात करता है, जिसमें से लगभग 60% पश्चिम एशियाई देशों विशेषकर सऊदी अरब, इराक, कुवैत, और यूएई से आता है। इन सभी देशों से भारत आने वाले अधिकांश टैंकर होर्मुज़ जलडमरूमध्य से ही होकर गुजरते हैं। यदि यह रास्ता अवरुद्ध होता है, तो भारत के लिए तेल की आपूर्ति महंगी, जोखिमपूर्ण और अस्थिर हो सकती है।
भारत और एशिया पर संभावित प्रभाव
1. ऊर्जा सुरक्षा पर संकट:
भारत, चीन, जापान, दक्षिण कोरिया, थाईलैंड व सिंगापुर जैसे देशों के लिए यह मार्ग ऊर्जा जीवनरेखा है। इसके बंद होने से कच्चे तेल की लागत और आपूर्ति पर गहरा असर पड़ेगा।
2. भारत पर प्रभाव
कच्चे तेल की आपूर्ति बाधित हो सकती है।
शिपिंग कंपनियों को रूट बदलने पर मजबूर होना पड़ सकता है।
फ्रेट और बीमा लागत में भारी वृद्धि होगी।
घरेलू पेट्रोल-डीजल की कीमतों में उछाल संभव।
विश्व पर व्यापक प्रभाव
वैश्विक तेल बाजार में अस्थिरता।
अंतरराष्ट्रीय मुद्रास्फीति को बढ़ावा।
समुद्री लॉजिस्टिक्स पर दबाव।
समुद्री मार्गों की सैन्य निगरानी में वृद्धि।
उधर से गुजरने वाले जहाज़ों को क्या करना चाहिए?
होर्मुज़ जलडमरूमध्य से होकर गुजरने वाले वाणिज्यिक व टैंकर जहाज़ों के लिए यह समय अत्यधिक संवेदनशील है। सुरक्षा और संचालन की दृष्टि से निम्नलिखित उपाय अपनाने की सलाह दी जाती है:
1. DG Shipping और IMO की एडवायज़री का पालन करें:
भारतीय नौवहन महानिदेशालय (DG Shipping), इंटरनेशनल मैरीटाइम ऑर्गनाइज़ेशन (IMO) और जहाज़रानी कंपनियों की ओर से जारी दिशा-निर्देशों को प्राथमिकता से अपनाएँ।
2. AIS (Automatic Identification System) बंद न करें:
जहाज़ की लोकेशन ट्रैकिंग के लिए AIS हमेशा चालू रखें, जिससे संकट की स्थिति में तुरंत सहायता मिल सके।
3. नजदीकी देशीय जल सीमा से दूरी बनाए रखें:
ईरानी या संघर्षरत जलसीमा में अनावश्यक प्रवेश से बचें। ओमान और UAE की जलसीमाओं के सुरक्षित क्षेत्र में ही नेविगेशन करें।
4. इंडियन नेवी या कोलिशन फोर्सेस से संपर्क बनाए रखें:
भारतीय नौसेना और खाड़ी में तैनात संयुक्त नौसैनिक बलों के साथ संचार बनाए रखें। युद्धपोतों की सुरक्षा छाया में यात्रा करना सबसे सुरक्षित होगा।
5. सुरक्षा उपायों को सक्रिय करें:
जहाज़ों पर सुरक्षात्मक निगरानी (Lookout) बढ़ाएँ।
नाइट विजन, रेडार और CCTV सिस्टम को पूरी तरह सक्रिय रखें।
पाइरेसी और मिसाइल हमले की स्थिति के लिए रिक्रू सिमुलेशन ट्रेनिंग दें।
6. वैकल्पिक मार्गों की योजना बनाएँ:
यदि संभव हो, तो जहाज़ों को अफ्रीका के केप ऑफ गुड होप मार्ग से मोड़ने की योजना तैयार रखें। हालांकि यह मार्ग लंबा और महँगा है, लेकिन अत्यधिक तनाव वाले जलमार्ग से बचना बेहतर होगा।
7. बीमा कंपनियों से विशेष वार्तालाप करें:
उच्च जोखिम क्षेत्र में प्रवेश से पहले जहाज़ के मालिकों को बीमा कंपनियों से रूट क्लियरेंस और सुरक्षा कवर पर पुनः बातचीत करनी चाहिए। ईरान द्वारा होर्मुज़ जलडमरूमध्य को बंद करने का कदम न केवल सैन्य और कूटनीतिक चुनौती है, बल्कि यह एशिया की ऊर्जा सुरक्षा, वैश्विक समुद्री व्यापार और अर्थव्यवस्था पर गहरी चोट है। भारत और एशियाई देशों के लिए अब वक्त आ गया है कि वे न केवल अपने रणनीतिक भंडार और कूटनीतिक प्रयासों को तेज करें, बल्कि शिपिंग सुरक्षा तंत्र को भी तत्काल सशक्त बनाएं।
वहीं शिप पर कार्यरत लोगों ने क्या कुछ कहा आप भी जानिए, ये ख़तरनाक फ़ैसला है ईरान का , ऐसा हुआ तो महायुद्ध पक्का है !
आज ही शाम को एक ऐसी खबर सामने आई है जो न केवल मध्य-पूर्व के तनाव को और गहरा कर सकती है, बल्कि पूरी दुनिया की अर्थव्यवस्था को हिला सकती है।ईरान की संसद ने होर्मुज जलसंधि (Strait of Hormuz) को बंद करने के प्रस्ताव को मंजूरी दे दी है। यह जलसंधि वैश्विक तेल व्यापार का वह संकरा रास्ता है, जो फारस की खाड़ी को ओमान की खाड़ी और हिंद महासागर से जोड़ता है।ये संकरा समुद्री मार्ग जो केवल 33 किलोमीटर चौड़ा है, लेकिन इसका महत्व वैश्विक स्तर पर अपार है।
यह मार्ग ईरान और ओमान के बीच स्थित है और यहाँ से रोजाना लगभग 20 मिलियन बैरल कच्चा तेल और 20% प्राकृतिक गैस (LNG) दुनिया भर में भेजी जाती है।सऊदी अरब, इराक, कुवैत, यूएई, कतर जैसे बड़े तेल उत्पादक देशों का तेल इसी रास्ते से गुजरता है। इसे “दुनिया की ऊर्जा धमनी” कहा जाता है, क्योंकि अगर यह रास्ता बंद हो गया, तो वैश्विक तेल आपूर्ति पर गहरा असर पड़ेगा।
ईरान इस जलसंधि को बंद करने की बात इसलिए उठा रहा है, क्योंकि वह अमेरिका और इस्राइल के साथ बढ़ते तनाव का जवाब देना चाहता है।हाल के दिनों में अमेरिका ने ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमले किए हैं, जिसके बाद ईरान ने चेतावनी दी है कि अगर युद्ध और तेज हुआ, तो वह इस रास्ते को बंद कर देगा।हालांकि, अभी यह प्रस्ताव संसद से पास हुआ है, और अंतिम फैसला ईरान की सर्वोच्च राष्ट्रीय सुरक्षा परिषद करेगी।
अगर होर्मुज जलसंधि बंद हो गई, तो इसका असर हमारी रोजमर्रा की जिंदगी पर सीधे तौर पर पड़ेगा।तेल की आपूर्ति रुकने से पेट्रोल, डीजल और गैस की कीमतें आसमान छू सकती हैं। भारत जैसे देश, जो अपनी तेल जरूरत का 90% आयात करते हैं और उसमें से 40% से ज्यादा होर्मुज के रास्ते आता है, के लिए यह एक बड़ा झटका होगा।इससे महंगाई बढ़ेगी, ट्रांसपोर्ट महंगा होगा, और बाजार में रोजमर्रा की चीजों की कीमतें बढ़ सकती हैं। दुनिया भर में भी इसी तरह का असर देखने को मिलेगा, खासकर यूरोप और एशिया में।
शिपिंग इंडस्ट्री, जो वैश्विक व्यापार की रीढ़ है, इस घटना से सबसे ज्यादा प्रभावित होगी। होर्मुज जलसंधि से हर महीने 3,000 से ज्यादा व्यापारिक जहाज गुजरते हैं, जिनमें तेल टैंकर और मालवाहक जहाज शामिल हैं। अगर यह रास्ता बंद हुआ, तो:
• तेल और गैस की आपूर्ति में रुकावट: तेल कंपनियों को वैकल्पिक रास्ते खोजने पड़ेंगे, जो लंबा और महंगा होगा। इससे शिपिंग लागत दोगुनी या उससे ज्यादा हो सकती है।
• बीमा प्रीमियम में वृद्धि: जहाज मालिकों को अपने जहाजों के लिए बीमा कराना पड़ेगा, क्योंकि युद्ध जैसे हालात में जोखिम बढ़ जाता है। इससे शिपिंग की लागत और बढ़ेगी।
• वैकल्पिक मार्गों की तलाश: कंपनियां अफ्रीका के आसपास के रास्ते (जैसे केप ऑफ गुड होप) का इस्तेमाल कर सकती हैं, लेकिन यह रास्ता लंबा है और ईंधन खपत ज्यादा होगी, जिससे समय और पैसा दोनों बर्बाद होगा।
• व्यापार में देरी: तेल और अन्य वस्तुओं की आपूर्ति में देरी से उद्योग (जैसे विनिर्माण और परिवहन) पर असर पड़ेगा, जिससे उत्पादन रुक सकता है।
भारत के लिए यह और भी चिंता की बात है, क्योंकि यहां की रिफाइनरियां मध्य-पूर्व के तेल पर निर्भर हैं। अगर शिपमेंट में देरी हुई, तो पेट्रोल पंपों पर लंबी कतारें और ऊर्जा संकट की आशंका बढ़ जाएगी।
राहुल गौर (नेविगेटिंग ऑफ़िसर )
बहुत अच्छा विश्लेषणात्मक लेख । बहुत बढ़िया रोहित ऐसे ही लिखते रहिये ।
बहुत धन्यवाद सर, आपकी यह टिप्पणी हमारे लिए उपहार हैँ.