एनटी न्यूज / मथुरा / शिव प्रकाश शर्मा
● बडा सवालः असल मुद्दों से नजर चुराते जिम्मेदार!
● विश्व पर्यावरण दिवस पर बडे पैमाने पर हुए हवन यज्ञ के कार्यक्रम ।
● एक दिन की कवायद से कितना हुआ लाभ, मूल समस्या से हट गया ध्यान ।
● जल भंडारण तंत्र और जल श्रोतों को बचाना बडी चुनौती ।
मथुरा। विश्व पर्यावरण दिवस पर जनपद में जगह जगह हवन कार्यक्रम हुए। एक दिन की इस कावायद से वातावरण को लाभ कितना हुआ यह समझना और समझाना मुश्किल है। निश्चित ही हवन कार्यक्रमों से लाभ हुआ है। जो नुकसान हुआ वह यह कि जिम्मेदारों को इस कावायद की आड में उन तमाम सवालों से बच निकलने का मौका मिल गया, जिनके जबाव इस अवसर पर दिये जाने चाहिए थे। अलस मुद्दों से न केवल प्रशासन भाग रहा है। जनप्रतिनिधि और राजनीतिक दल भी कन्नी काट रहे हैं। जनपद के अधिकांश तालाबा पौखर खत्म हो चले हैं। जल भंडारण का पूरा सिस्टम फेल हो गया है। वृक्षारोपण से लेकर खाद्यपदार्थों के प्रदूषण तक, तो आस्था से लेकर कृषि प्रदूषण तक कोई कुछ बोलने को तैयार नहीं है।
फोटो परिचय – अडींग में पौधा रोपड करते ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा।
तीन साल में रोपे गये 70 लाख पौधे, 70 हजार भी नहीं बचा पाये
पिछले तीन साल में सरकार की ओर से जनपद में पौधा रोपण कार्यक्रम के तहत सात लाख से अधिक पौधे रोपये गये हैं। यह काम सरकारी विभागों के जिम्मे रहा है। विगत वर्ष से सरकारी विभागों को ही रोपे गये पौधों की देखभाल की जिम्मेदारी भी सौंप दी गई। इससे पहले महकमे पौधा रोपते थे और देखभाल की जिम्मेदारी वन विभाग की थी। सरकारी विभाग को अपने कुल बजट का दो प्रतिशत पौधों की देखरेख पर खर्च करने की छूट दी गई है। बावजूद इसके तीन साल में रोपे गये 70 लाख मंे से 70 हजार पौधे भी विभाग बचा नहीं पाया है। हालांकि सरकारी आंकडों की गवाही हकीकत से बिल्कुल जुदा है।
जल श्रोतों पर कब्जे के लिए हो रहे खूनी संघर्ष
शनिवार को थाना बल्देव क्षेत्र के गांव नगला वरी में पोखर खुदाई को लेकर दो पक्षों में खुनी संघर्ष हो गया। विवाद के दौरान जमकर पथराव हुआ। गोली कांड में राशन डीलर धर्म सिंह की मौत हो गई। वहीं दूसरे पक्ष की एक महिला सहित करीब आधा दर्जन लोग घायल हो गये। नवनिर्वाचित ग्राम प्रधान गांव में एक पोखर की खुदाई करा था। पोखर के अधिकांश हिस्से पर कब्जा हो गया है।
जनपद का जल भंडारण तंत्र हुआ ध्वस्त
जनपद में सरकार की ओर से नये तालाब खुदवाये जा रहा है। तालाबों का संरक्षण हो रहा है। कागजी आंकडे बेहद लुभावने हैं लेकिन धरातल पर हालात बेहद खराब हैं। मथुरा के 11 ब्लाॅक मंे से चार डार्क जोन में चले गये हैं। जबकि दो ब्लाॅक डार्क जोन के करीब है। भूगर्भीय जलस्तर लगातार गिर रहा है। धार्मिक महत्व के कुछ कुंड और तालाबों पर करोडों रूपये खर्च कर प्रशासन जल संरक्षण का दियत्वि निभाता रहा है। इसके उलट हकीकत यह है कि पिछले एक दशक में गांवों में बने आधे से ज्यादा तालाब अपना अस्तित्व खो चुके हैं। जो जल भंडारण का मूल श्रोत थे।
फोटो परिचय – पर्यावरण दिवस पर अपने निवास पर हवन करते पूर्व ऊर्जा मंत्री मंत्री एवं व्यापारी कल्याण बोर्ड के अध्यक्ष रविकांत गर्ग।
वाटर बाॅडीज को निगल गईं सरकारी योजनाएं
वाटर बाॅडीज को खुद सरकारी योजनाएं ही निगल गई हैं। तो सरकारी मशीनरी के साथ मिल कर माफिया ने इनका अस्तित्व खत्म कर दिया है। शहर के आसपास और शहर के अंदर के सभी तालाब खत्म हो गये हैं। कई एकड में फैली शहर की सबसे बडी पन्ना पौखर का अस्तित्व भी पूरी तरह खत्म कर दिया गया है।
दूध के नाम पर जहर पी रहा शहर
मथुरा, वृंदावन, गोवर्धान, गोकुल, बल्देव आदि तीर्थ स्थलों पर साल भर तीर्थ यात्रियों की आवाजाही रहती है। यह संख्या करोडों होती है। गोवर्धन के मुडिया मेला में ही 70 से 80 लाख लोगों के परिक्रमा करने के दावे जिला प्रशासन विगत वर्षों में करता रहा है। कोरोनाकाल में लाॅकडाउन और मंदिरों के बंद रहने से श्रद्धालुओं की आवाक कम रही है। श्राद्धालुओं की संख्या लाखों में हो या करोडों में उनके दूध और दूसरे दुग्ध उत्पदों की पूर्ती जनपद में उत्पादित दूध से ही होती रही। यहां दूध की न कभी कमी पडती है और न बहुतायत होती है। दूध हर वक्त जरूरत के मुताबिक उपलब्ध रहता है। यानी यहां बडे पैमाने पर सिंथेटिक दूध बाजार में हमेशां रहता है।
यमुना प्रदूष्ण पर बोलने वाले साध गये मौन
यमुना प्रदूषण पर पिछले करीब दो दशक से हायतौबा मची है। पिछली सरकारांे में यमुना को प्रदूषण मुक्त करने के लिए कई योजनाओं पर करोडों रूपये बहाये जा चुके हैं। वर्तमान में नमामि गंगे योजना के तहत पैसा बहाया जा रहा है। यमुना की हालत बद से बदतर होती चली गई है। पिछले कुछ सालों में अंतर यह आया है कि यमुना प्रदूषण मुक्ति को लेकर चीखने वाले मौन साध गये हैं।
रसायनों से जहरीली हुई खेती
प्रदूषण में खेती में उपयोग हो रहे रसायनों का मुद्दा बडा हो चला है। चिंता का सबब यह है कि रासायनिक पदार्थों का उपयोग लगातार बढ रहा है। कृषि विशेषज्ञ दिलीप यादव कहते हैं कि खरपतवार नष्ट करने के लिए उपयोग किये जा रहे रसायन जैव विविधता को कम कर रहे हैं, साथ ही खेती को जहरीला भी बना रहे हैं। जिन समस्याओं से मानव श्रम के जरिये निपटा जा सकता है उनके लिए भी जहरीले रसायनों का उपयोग किया जा रहा है।
जल से जमीन तक के सहेत बिगडी
जनपद में भूगर्भीय जल लगातार नीचे जा रहा है।
फ्लोराइड युक्त पानी बडी समस्या बन गया है। यानी पानी में फ्लोराइड की मात्रा बढी है। इससे कई क्षेत्रों में लोग गंभीर बीमारियों की चपेट मेें आये हैं। अभी तक खारे पानी की समस्या थी जो अब जहरीले पानी की समस्या से लोग जूझ रहे हैं।