भारतीय मीडिया: हमारा सफ़र #NewsKiMaut से लेकर #humanityKiMaut तक जारी है…

News Tanks Team/ श्रद्धांजली/ भारतीय मीडिया/ योगेन्द्र त्रिपाठी

किसी भी देश की मीडिया में किसी खबर से पैसा कमाने का चलन  आम है लेकिन यह अत्यंत दुखद तब हो जाता है, जब हम किसी के मौत को भी पैसे कमाने का जरिया बना लेते हैं. तीन दिन पहले हमारे रुपहले परदों की ‘चांदनी’ इस दुनिया से चली गयीं. जैसे कि सभी के जीवन में मौत निश्चित है, ठीक उसी तरह सुपरस्टार श्रीदेवी की मौत भी किसी न किसी कारण से और कहीं न कहीं होनी ही थी. लेकिन हमारे देश के मीडिया संस्थान जब अपने ही नियमों को ताक पर रखकर किसी की मौत को भुनाते हैं तो यह बेहद दुखद और शर्मनाक लगता है.

श्रीदेवी की मौत, भारतीय मीडिया, शर्मनाक रिपोर्टिंग, मौत का बाथटब

मीडिया की रिपोर्टिंग पर उठते सवाल

अभिनेत्री श्रीदेवी की मौत के बाद उनके दुखी परिवार को सांत्वना देने के बहाने मीडिया उनके कमरे की पर्सनल जगहों पर तांक-झांक करने लगा है. मीडिया ने श्रीदेवी पर तरह तरह के रिपोर्ट्स की झड़ी लगा डाली. एक दिन में ही लगभग हर संस्थान के खुद को ‘सबसे पहले वाली लाइन’ में खड़ा करने की जद्दोजहद में उस परिवार की सारी तकलीफों को भूलते हुए मीडिया एथिक्स और ह्यूमन एथिक्स की सारी हदें रिपोर्टरों, एंकरों और कंटेंट लेखकों द्वारा पार कर डाली गयीं.

किसी ने मानवता के लहजे से भी नहीं सोचा कि किसी के मौत पर तरह-तरह के सवाल खड़े करने के कारण क्या हम उस परिवार के दुःख को बढ़ा नहीं रहे हैं. क्या हम वह सब कुछ सही है? या क्या हमें ऐसे ही करना चाहिए, जैसे हम कर रहे हैं और सबसे आखरी बात क्या हमारे साथ अगर ऐसा होगा तो हमें अच्छा लगेगा…?

सोशल मीडिया से उठे सवाल

आज हम ख़बरों के आदान-प्रदान के उस दौर में हैं, जब सूचनाएं बहुत ही तेजी से हमारे बीच आकर गुजर रही हैं. इस क्रांतिकारी दौर में काम को सबसे ज्यादा कठिन और आसान किया है, सोशल मीडिया ने. आपने सोशल मीडिया के इस दौर में इसी माध्यम से ‘जनमत की मौत’ के किस्से तो बहुत सुने होंगे लेकिन क्या कभी आपने ‘मौत का जनमत’ पर किस्सा सुना है.

300 फिल्मों में तीन सौ से ज्यादा किरदारों को जीने और मरने वाली दिग्गज अभिनेत्री श्रीदेवी की आत्मा को आज गहरा दुःख जरुर हो रहा होगा. यह दुःख इस बात का नहीं है कि उन्हीं के देश में उन्हीं को महज कुछ पेज व्यू और टीआरपी के बेचा जा रहा है, उन्हें दुःख इस बात का होगा कि पहले दिखने और दिखाने की होड़ ने पत्रकारों की मानवतावादी छवि को धूमिल कर दिया है.

सोशल मीडिया पर अब ‘खाटी मीडिया’ की इसी कार्यशैली पर सवाल खड़े हो रहे हैं. मीडिया की ‘सनसनीखेज’ रिपोर्टिंग की प्रखर आलोचना की जा रही है. लोगों ने लिखा कि मीडिया संस्थान कैसे किसी की मौत को भी बेच सकते हैं.

कुछ ने लिखा कि मीडिया अपने चरित्र की सीमा को भूल कर जज (न्यायधीश) की भूमिका में आ गया है.

https://twitter.com/CapitalistSage/status/968178080153063425

इन ख़बरों के प्रतिशोध में ट्विटर पर कई हैशटैग भी ट्रेंड करने लगे. जिनमें से #NewsKiMaut और #humanityKiMaut टॉप ट्रेंड्स में शामिल हो गया.

मशहूर पत्रकार बरखा दत्त का एक ट्विट बड़े सवाल खड़े करता नज़र आया. उन्होंने लिखा कि  प्रिय टीवी चैनल यहां #newskimaut नाम का हैशटैग हमारी घृणित, अहंकारी, पागल, असभ्य, अपमानित कवरेज के प्रति काउंटर है. चलो हम सब घृणित हैशटैग की इस प्रवत्ति को ख़त्म करते हैं.

कई लोगों ने इस पर प्रतिक्रिया देते हुए लिखा कि हम स्वर्गीय श्रीदेवी जी का सम्मान करते हैं और उनके मौत का नाटकीय रूप से प्रतिनिधित्व नहीं करते हैं और उनके चरित्र के बारे में सवाल उठाने का आपको कोई हक नही हैं.

एक और उपयोगकर्ता ने लिखा कि यह सिर्फ न्यूज की मौत नहीं है, बल्कि यह  मानवता की मौत है. करुणा पूरी तरह इन दिनों लापता है.

एक भारतीय मीडिया चैनल ने ‘मौत का बाथटट’ या ‘बाथटब के कारण मौत’ नाम का एक विशेष एपिसोड भी दिखा डाला. जिसके बाद ट्विटर और फेसबुक जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर मीडिया की खूब आलोचना हुई.

श्रीदेवी के मौत के बाद ही मीडिया भी मर गयी

अभिनेत्री श्रीदेवी के मौत के बाद जिस तरह से हमारे देश की मीडिया ने अपना चेहरा दिखाया. उससे उनके मौत के ठीक बाद हमारे देश में मीडिया पर लोगों के भरोसे की मौत भी हो गयी.

मीडिया संस्थानों ने एक-दूसरे से आगे निकलने की जद्दोजहद में वह सारी सीमाएं लांघ डालीं, जिसको उन्हें नहीं लांघना था. हमारी जिम्मेदारी किसी खबर को दिखाना है या लोगों को बताना है, न कि किसी खबर से ज्यादा कमाने के लिए सारी सीमाओं को लांघ जाना है.

श्रीदेवी अब इन चीज़ों को देखने नहीं आ रही हैं लेकिन उनके परिवार और उनके चाहने वालों को इस बात का बहुत दुःख होगा.

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