आधुनिक हिंदी साहित्य को ‘दो मिनट का मौन’ देकर चले गये केदारनाथ सिंह

एनटी न्यूज़ डेस्क/ स्मृति शेष/ केदारनाथ सिंह

“जनकवि तो बहुत बड़ा शब्द है और जनता तक कितना मैं पहुँच पाया हूँ यह नहीं जानता. जनकवि कहलाने लायक हिंदी में कई कवि हो चुके हैं. कई सम्मानित हुए, कई नहीं हुए.

लेकिन जो कुछ मैं लिखता पढ़ता रहा हूं उसमें गांव की स्मृतियों का ही सहारा लिया है, क्योंकि मैं गांव से आया हुआ हूं और ग्रामीण परिवेश की स्मृतियों को संजोए हुए मैं दिल्ली जैसे महानगर में रह रहा हूं.

मेरी जड़ें ही मेरी ताक़त है. मेरी जनता, मेरी भूमि, मेरा परिवेश और उससे संचित स्मृतियां ही मेरी पूंजी है. मैं अपने साहित्य में इन्हीं का प्रयोग करता रहा हूँ और बचे खुचे जीवन में भी जो कुछ कर पाऊंगा उन्हीं के बिना पर कर पाऊँगा.

ज्ञानपीठ पुरस्कार, पूरी भारतीय परंपरा की ओर से आने वाला बड़ा पुरस्कार है और इसे मैं कृतज्ञ भाव से स्वीकार करता हूं.”

किसी भी सर्वसुलभ लेखक और कवि के लिए ज्ञानपीठ जैसा सम्मान भी उसके कद के सामने बहुत अदना सा लगता है. ऊपर लिखी बातें केदारनाथ सिंह से ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित होने के बाद बीबीसी हिंदी से एक ख़ास बातचीत साल 2013 में बोली थी.

और यूँ हमसे दूर चले गये केदारनाथ

कल यानी 19 मार्च 2018 को दुनिया को ‘दो मिनट का मौन’ का मौन सिखाने वाले आधुनिक हिंदी के नागार्जुन के बाद सबसे चहेते कवि केदारनाथ सिंह हमेशा-हमेशा के लिए मौन हो गये. ऐसे बहुत कम ही लेखन या कवि हैं, जिनकी रचनाएं लोगों के बीच दस्तावेज के रूप में सुरक्षित हैं. केदारनाथ सिंह उनमें से एक थे.

केदारनाथ सिंह पिछले कुछ समय से बीमार चल रहे थे. पेट में संक्रमण की शिकायत के बाद इलाज के लिए उन्हें अखिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान (एम्स) में भर्ती किया गया था.

लोकप्रिय कवि केदारनाथ सिंह की ‘जमीन पक रही है’, ‘यहां से देखो’, ‘बाघ’, ‘अकाल में सारस’ आदि कई कविता संग्रह लोगों में काफी चर्चित रही और उनके लेखनी को खूब सराहा गया.

उनका जीवन और साहित्य…

साहित्य के सर्वोच्च सम्मान से ज्ञानपीठ पुरस्कार सम्मानित कवि केदारनाथ सिंह का जन्म उत्तर प्रदेश के बलिया जिले के चकिया गाँव में 7 जुलाई 1934 में हुआ था. केदारनाथ सिंह की कविताओं में आधुनिक भारत की सुधारवादी छवि के साथ-साथ गाँवों से उनका जुड़ाव साफ़-साफ़ देखा जा सकता है.

समाज को सामजिकता का आईना दिखाती उनकी कवितायें किसी न किसी जगह आपने जरुर पढ़ी या सुनी होंगी. केदारनाथ सिंह प्रारंभिक शिक्षा-दीक्षा उनके गाँव के आसपास ही हुई. फिर आगे की पढ़ाई के बनारस का रुख किया और  काशी हिंदू विश्वविद्यालय से 1956 में हिंदी में एमए और 1964 में पीएचडी की उपाधि हासिल की.

इसके बाद बनारस छोड़कर गोरखपुर की ओर रुख किया और कई सालों तक यहाँ दीनदयाल उपाध्याय विश्वविद्यालय हिंदी पढ़ाई फिर आगे दिल्ली के जवाहरलाल नेहरु विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग के अध्यक्ष बने.

यहाँ कुछ अंश हैं, उनकी कविताओं के

केदारनाथ सिंह को याद करने और श्रद्धांजलि देने का सबसे बेहतर तरीका उनकी कविताओं को याद करना ही होगा. आपको यहाँ मैं उनकी कविताओं के कुछ अंश पढ़वा रहा हूँ.

हर योजना पर, हर विकास पर,

दो मिनट का मौन…

इस महान शताब्दी पर,

महान शताब्दी के महान इरादों पर,

महान शब्दों और महान वादों पर,

दो मिनट का मौन…

भाइयों और बहनों, इस महान विश्लेषण पर,

दो मिनट का मौन…

भाइयों और बहनों यह दिन डूब रहा है,

इस डूबते हुए दिन पर दो मिनट का मौन…

जाते हुए पक्षियों पर,

रुके हुए जल पर,

घिरती हुई रात पर,

दो मिनट का मौन…

जो है उसपर, जो नहीं है उस पर,

जो हो सकता था उसपर, दो मिनट का मौन…

ये लाइनें केदारनाथ की लेखनी को पूरी तरह से परिभाषित कर देती हैं. सिंह ने ऐसी तमाम कविताएं लिखी, जो आने वाले कई सालों तक हमारे दस्तावेजों के रूप में उपयोग की जायेंगी.

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फोटो साभार : कविशाला डॉट इन

केदारनाथ सिंह से बढ़िया किसी ने बरनारस के बारे में नहीं लिखा. बनारस जिसके बारे में बहुत कुछ लिखा गया है और लिखा जा रहा है लेकिन उनकी वह एक कविता लोगों में आज भी प्रभाव पैदा करती है.

“जो है वह सुगबुगाता है
जो नहीं है वह फेंकने लगता है पचखियाँ
आदमी दशाश्‍वमेध पर जाता है
और पाता है घाट का आखिरी पत्‍थर
कुछ और मुलायम हो गया है
सीढि़यों पर बैठे बंदरों की आँखों में
एक अजीब सी नमी है
और एक अजीब सी चमक से भर उठा है
भिखारियों के कटरों का निचाट खालीपन”

बनारस का यह अंश इस कविता की ख़ासियत बताने के लिए काफी है.

इसी तरह दिल्ली के बारे में उनकी एक कविता देखिए-

‘बारिश शुरू हो रही है, बिजली गिरने का डर है, वे क्यों भागे जाते हैं जिनके घर हैं.’

राजनीतिक टिप्पण्णियां भी केदारनाथ सिंह की कविता में बखूबी मिलती हैं. उनकी लिखी एक गजल है-

‘एक शख्स वहां जेल में है, सबकी ओर से

हंसना भी यहां जुर्म है क्या, पूछ लीजिए

अब गिर गई जंजीर, बजाएं तो क्या भला’

ये दिया है उन्होंने ने हमें…

कविता संग्रह :  अभी बिल्कुल अभी, जमीन पक रही है, यहाँ से देखो, बाघ, अकाल में सारस, उत्तर कबीर और अन्य कविताएँ, तालस्ताय और साइकिल
आलोचना : कल्पना और छायावाद, आधुनिक हिंदी कविता में बिंबविधान, मेरे समय के शब्द, मेरे साक्षात्कार
संपादन : ताना-बाना (आधुनिक भारतीय कविता से एक चयन), समकालीन रूसी कविताएँ, कविता दशक, साखी (अनियतकालिक पत्रिका), शब्द (अनियतकालिक पत्रिका)

ये सम्मान उन्हें मिले

मैथिलीशरण गुप्त सम्मान, कुमारन आशान पुरस्कार, जीवन भारती सम्मान, दिनकर पुरस्कार, साहित्य अकादमी पुरस्कार, व्यास सम्मान

उनका हिंदी के लिए विशेष सहयोग

केदारनाथ सिंह चर्चित कविता संकलन ‘तीसरा सप्तक’ के सहयोगी कवियों में से एक हैं. इनकी कविताओं के अनुवाद लगभग सभी प्रमुख भारतीय भाषाओं के अलावा अंग्रेजी, स्पेनिश, रूसी, जर्मन और हंगेरियन आदि विदेशी भाषाओं में भी हुए हैं. कविता पाठ के लिए दुनिया के अनेक देशों की यात्राएँ की हैं.

केदारनाथ सिंह के द्वारा हिंदी के लिए किये गये योगदान को हमेशा याद किया जायेगा. वह हमेशा अपनी लेखनी से हिंदी साहित्य  क्षेत्र के आधुनिक पीढ़ी को प्रेरित करते रहेंगे. वह देश के ऐसे कवि हैं, जिनके लिए कोई भी सम्मान बहुत छोटा है. न्यूज़ टैंक्स परिवार उन्हें श्रद्धांजली देते हुए नमन करता है.

(यह लेख योगेन्द्र त्रिपाठी ने न्यूज़ टैंक्स के लिए लिखा है)