यूपी के इस जिले में मरने से पहले ही किया जा रहा कब्र का इंतजाम, वजह…

एनटी न्यूज़ डेस्क / गोरखपुर / सुनील पाण्डेय

गोरखपुर (यूपी). यहां ईसाई समाज में मौत के बाद भी पति-पत्नी के साथ-साथ रहने की ख्वाहिश ने नए चलन को जन्म दे दिया है। बताया जा रहा है कि इसे पूरा करने के लिए एक ही कब्र में पति-पत्नी दोनों को दफनाया जाए। इसके चलते कब्रिस्तानों में पति या पत्नी जमीन की एडवांस बुकिंग करा रहे हैं। जिस कब्र में पति या पत्नी (जिसकी मौत पहले हो) दफ्न हो, उसी में पार्टनर की डेथ के बाद सुलाया जाए ताकि साथ रहने का सिलसिला सांसो के बाद भी कायम रहे।

कब्रिस्तान

ये है पूरा मामला…

गोरखपुर के पैडलेगंज में अभी तक 5 दंपति इस तरह से एक दूजे के साथ दफनाए जा चुके हैं। हाल में एक और महिला ने पति की कब्र में अपने लिए जगह बुक कराई है। यह कब्रिस्तान करीब 300 साल पुराना है, जिसमें 150 से ज्यादा कब्रें अंग्रेजों की हैं।

साथ में दफनाए जाने के लिए कब्रिस्तान में एडवांस बुकिंग का चलन पिछले कुछ वर्षों में बढ़ा है। असुरन क्षेत्र निवासी एंथोनी साइमन की मृत्यु 27 सितम्बर 2012 में हो गई थी। उनकी पत्नी ने अभी से व्यवस्था कर ली है कि मरने के बाद उन्हें भी पति की कब्र में ही दफन किया जा सके।

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पिता ने बुक कराई कब्र…

कब्र बुक कराने वाले सुनील हर्शल मैथ्यू ने कहा, ”मैंने अपनी पत्नी की कब्र के बगल में अपने लिए जगह बुक कराई है। जब मेरी डेथ हो तो मुझे पत्नी की कब्र के बगल में ही दफनाया जाए।”

”ऐसा मानना है कि सारी जिंदगी साथ रहने के बाद जब वह पल आएगा कि शरीर में सांसे नहीं बचेंगी। उस पल भी हम दोनों साथ रहेंगे।”

”मेरी मां की डेथ के बाद मेरे पिता ने भी कब्र की जगह बुक कराई थी और उनके मरने के बाद उन्हें उसी कब्र में दफनाया गया। मैंनें 10 हजार रुपए में पत्नी की कब्र के बगल में अपने लिए जगह बुक कराई है।”

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रिश्ता रहता है अटूट …

सेंट जोसेफ सिविल लाइन की प्रिंसिपल, सिस्टर मरियम ग्योरो ने कहा, ”हमारे धर्म में ऐसा बोला भी गया है कि पति पत्नी के साथ एक अटूट रिश्ता रहता है, जिसे वह मरते दम तक निभाते हैं।”

”मरने के बाद भी इस पवित्र रिश्ते को निभाने की यह एक अच्छी पहल है मरने के बाद यह कोई नहीं जानता कि अगले जन्म में कहां जाता है। मन की संतुष्टि के कारण हम मरने के बाद अपने जीवनसाथी के साथ ही रहना चाहते हैं।”

कब्रिस्तानों की संख्या है कम…

फादर रिबेल डीआर लाल ने कहा, ”ये कहीं ना कहीं कब्रिस्तानों की संख्या कम होने से इस प्रथा को निभाना एक मजबूरी भी है। मरने के बाद इंसान को कब्रिस्तान में दफनाया जाता है। उस भूमि का दायरा 6/3 का होता है।”

”25 साल बाद फिर से किसी दूसरे मुर्दे को वहां दफनाया जा सकता है लेकिन इस परंपरा के अनुसार लोग जीते जी अपने जीवन साथी के साथ, उनकी कब्र के बगल में कुछ पैसे देकर उस भूमि को आवंटित करा लेते हैं। ताकि जब उनकी मृत्यु हो जाए तो उन्हें अपने जीवनसाथी के बगल में ही दफना दिया जाए।”

कब्रिस्तान के केयरटेकर राहुल प्रजापति ने कहा, ”मेरे पूर्वज पिछले 3 पुश्तों से कब्रिस्तान की देखभाल कर रहें हैं। यहां पर कुछ लोग जीते जी अपने लिए कब्रों की एडवांस बुकिंग करवा रहे हैं।”

”इस प्रथा को निभाने का एक सबसे बड़ा कारण यह भी है कि लगातार लगह सीमित होती जा रही है। लोगों को मरने के बाद 4 गज जमीन नसीब हो इसलिए वह पहले से ही एडवांस बुकिंग कराकर अपने लिए कब्र सुरक्ष‍ित कर रहे हैं।”

वहीं सुनील हलधर का कहना है कि आज के मक्कारी से भरे रिश्तों और बच्चों और माता पिता के बीच बढ़ती दूरियों और माँ बाप से अधिक अपनी बीबी और उनके ससुराल को तबज्जो देने के कारण दिल रोता है तो हम इसलिए जिये भी साथ अपनी पत्नी के साथ।मरने के बाद एक साथ स्थान मिले इसलिए यह निर्णय लिया है।

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