बुंदेलखंड समेत उत्तर प्रदेश के 15 जिलों में औषधीय खेती का खाका किया गया तैयार

बुंदेलखंड में नवयुग दस्तक दे रहा है. सूखी धरा पर जीवन संघर्ष करते आए किसानों को औषधीय खेती के रूप में संजीवनी मिल सकती है. जैव ऊर्जा विकास बोर्ड के नेतृत्व में इसे लेकर तैयारियां चल रही हैं. बुंदेलखंड समेत उत्तरप्रदेश के 15 जिलों में औषधीय खेती के व्यापक विस्तार का खाका तैयार किया गया है. जुलाई से बड़े पैमाने पर इसकी शुरुआत हो जाएगी.

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भरेगी किसान की झोली

बुंदेलखंड में पानी की नितांत कमी और 48 डिग्री तापमान के बावजूद यह युक्ति काम करेगी. इसका हर स्तर पर सफल परीक्षण कर लिया गया है.

अश्वगंधा, सर्पगंधा, सनाय (सोनामुखी), लेमन ग्रास, तुलसी व नीम के पौधे लगाए जाएंगे, जो सूखी जमीन, कम पानी और अधिक तापमान जैसे हालात में भी किसान की झोली भरने में सक्षम हैं.

बोर्ड ने जुलाई से इसके क्रियान्वयन की रूपरेखा तैयार की है. किसानों को समूहों में प्रशिक्षण दिया जा रहा है. किसानों को बीज उपलब्ध कराने से लेकर उनके उत्पाद को बाजार उपलब्ध कराने के तमाम इंतजाम पूरे कर लिए गए हैं.

किसान समूह से होगी शुरुआत

जैव ऊर्जा विकास बोर्ड द्वारा जिलों में प्रशिक्षित किसानों की एक खेप पहले से तैयार की जा चुकी है. अब इन प्रशिक्षित समूहों के जरिये उनके क्षेत्र के अन्य किसानों को प्रशिक्षित किया जा रहा है.

किसान के बीच जागरूकता भी बढ़ाई जा रही है. वे खुद भी जानकारी के लिए संपर्क कर रहे हैं.

इन जनपदों में भी अभियान

उत्तरप्रदेश के हिस्से में आने वाले बुंदेलखंड के चित्रकूट, बांदा, महोबा, हमीरपुर, जालौन, झांसी और ललितपुर जिलों के अलावा मिर्जापुर, सहारनपुर, प्रतापगढ़, सीतापुर, उन्नाव, रायबरेली, फतेहपुर व कासगंज में पहले चरण की शुरुआत होगी. इसके बाद अन्य जिलों में भी इसे विस्तार दिए जाने की योजना है. बुंदेलखंड पर विशेष जोर दिया जा रहा है.

बाजार भी है तैयार

बोर्ड ने किसानो की उपज को बाजार उपलब्ध कराने के लिए जिला स्तर पर व्यापारियों को साथ जोड़ है. समय-समय पर किसान समूहों के मुख्य सदस्यों से इनके साथ बैठकें भी आयोजित कराई जाती रही हैं. जिन प्रशिक्षित किसानों ने शुरुआत कर दी है, उनकी उपज को आसानी से बाजार उपलब्ध हो रहा है.

इन किसानों का अनुभव बताता है कि यह उनके लिए किसी वरदान से कम नहीं है. परंपरागत फसलों की अपेक्षा यह घाटे का सौदा साबित नहीं बल्कि मुनाफे की गारंटी साबित हुआ है.

कम लागत, कम पानी, कम रखरखाव और भरपूर पैदावार तो होती ही है, जानवरों द्वारा फसल चट कर जाने की चिंता भी नहीं रहती. जानवर इन पौधों को नहीं चरते हैं.

नाबार्ड का भी सहयोग

केंद्रीय आयुष मंत्रालय की मदद से राज्य आयुष मिशन व जैव ऊर्जा विकास बोर्ड संयुक्त रूप से इस अभियान में जुटे हुए हैं.

राष्ट्रीय कृषि एवं ग्रामीण विकास बैंक (नाबार्ड) किसानों के समूह का कंपनी एक्ट के तहत रजिस्ट्रेशन का खर्च वहन करेगा. साथ ही किसानों को प्रशिक्षण उपलब्ध कराने की व्यवस्था जैव ऊर्जा विकास बोर्ड के साथ मिलकर करेगा.

हालात से मुकाबला कर आर्थिक मजबूती को बढ़ेंगे कदम

पीएस ओझा, जो जैव ऊर्जा जैव ऊर्जा विकास बोर्ड ने कहा, हैं पूरी तरह तैयारपानी की कमी और अधिक तापमान की समस्या को देखते हुए यह युक्ति यहां काम की साबित हुई है.

वह कहते हैं कि औषधीय खेती के उत्पाद के लिए बाजार भी उपलब्ध कराया जा रहा है. आगे फार्मास्यूटिकल कंपनियों को भी इससे जोड़ने की योजना है. वहीं कृषि अवशेष (बायोमास) को भी बायोकोल के रूप में कंपनियों को बेचा जाएगा.

यहां से भी ले सकते हैं जानकारी

संबंधित जिलों के किसान विभाग की वेबसाइट डब्ल्यूडब्ल्यूडब्ल्यू. बायो-एनर्जी.यूपी.एनआइसी.इन, ईमेल सपोर्ट.बायोएनर्जी-यूपी एट एनआइसी.इन और हेल्पलाइन नंबर 0522-2236213 पर संपर्क कर औषधीय खेती की इस योजना के बारे में विस्तृत जानकारी प्राप्त कर सकते हैं.