एनटी न्यूज़ डेस्क / त्यौहार विशेष / शिवम् बाजपेई
मुस्लिमों के पवित्र महीने रमजान की शुरुआत हो गयी हैं. इस पाक महीने में सभी मुस्लिम धर्म के अनुयायी रमजान के महीने में रोजा रखकर अल्लाह की इबादत करते है. झूठ बोलने से परहेज करते है. कोई भी गुनाह करने से तौबा करते है. रोज पांच टाइम की नमाज अदा करके अपने गुनाहों की माफ़ी की बात करते है.
अल्लाह से अपनी भूल में हुई गलतियों का गुनाह की माफ़ी के लिए इबादत भी करते है. अल्लाह ताला से अपने परिवार की सलामती की दुआ करते है. अपने समाज की हिफाजत की दुआ करते है. देश में अमन चैन के लिए दुआ करते है. सभी लोग शांति के साथ रमजान के पाक महीने में अल्लाह ताला की इबादत करें और अपनी सलामती की दुआ मांगें. ईमानदारी से दुआ करें और खुश रहे.
रमजान की शुरुआत
रमजान इस्लामी कैलेन्डर का नौवां महीना है. अरबी भाषा में इसे रमदान कहते है. इस्लामी दुनिया इस पूरे माह को पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्ल.) पर पवित्र कुरान के अवतरण के उपलक्ष्य में बड़े ही कठिन उपवास और पूरी श्रद्धा के साथ मनाती है. मान्यता है कि 27वें रमजान को ‘लायलतुल कद्र’ ही वो वक्त था जब कुरान पहली बार पैगम्बर हजरत मोहम्मद (सल्ल.) पर अवतरित हुई.
रमजान की घोषणा करता है चांद…
रमजान का पवित्र महीना नए चांद के आगमन से शुरू होता है. दुनिया भर के जाने-माने मुस्लिम विद्वान आठवें महीने शाअबान के आखिरी दिन आकाश में नए चांद को देखने के लिए जुट जाते हैं. इस बीच आकाश में निकले चांद के दिखते ही पूरी दुनिया में रमजान के पवित्र माह के शुरुआत की घोषणा की जाती है.
Ramzan greetings to everyone. We recall the pious thoughts of Paighambar Mohammad Sahab, who highlighted the importance of harmony, kindness and charity. These are also the virtues the Holy Month of Ramzan stands for. https://t.co/BHnO8AVFL2
— Narendra Modi (@narendramodi) May 17, 2018
इन्हें मिली है छूट
इस्लाम के पांच फर्ज अनिवार्य माने गये हैं यानी हर एक मुसलमान को उस पर ईमान रखना ही होगा. रोजा भी इनमें से एक है. इसे हर मुसलमान को करना जरूरी है. लेकिन, इसमें भी कुछ लोगों को छूट मिली हुई है और वो भी कुछ शर्तों के साथ.
बीमार, यात्री, दूध पिलाने वाली महिला और अबोध बच्चे को इस माह में फर्ज अदायगी से छूट मिली हुई है. लेकिन, ये ध्यान रहे कि साल के आने वाले महीनों में उसकी कज़ा जरूरी है. यानि कि बाद के महीनों में वे रोजे रख सकते हैं.
सिखाता है शिष्टाचार
रमजान के पवित्र माह में रोजा रखने से नसों में खून का दबाव संतुलित रहता है. यह शाईस्ता या सभ्यता और शिष्टता प्रदान करता है. उपवास के दौरान रक्तचाप सामान्य रहने से भलाई, सुव्यवस्था, आज्ञापालन, धैर्य और नि:स्वार्थता का अभ्यास भी होता है.
बराबरी और समानता की भावना
रोजा हर एक मुसलमान के लिए अनिवार्य है इसलिए हर एक रोजेदार को अपने अन्रू रोजेदार भाइयों के बीच बराबरी का एहसास होता है. वह उनके साथ रोजा रखता है और उनके साथ ही रोजा खोलता है.
उसे सर्व इस्लामी एकता का अनुभव होता है और उसे जब भूख का एहसास होता है तो वह अपने भूखे और जरूरतमंद भाइयों के तकलीफ से रूबरू होता है और भविष्य में उनकी देख-रेख के लिए आगे आता है. रोजे के दौरान चुगली, गाली, कामुक विचार आदि बुराइयों से मन, कर्म और वचन से दूर रहना होता है.
चिकित्सा की नजर से
रमजान के पवित्र माह में रोजा रखने से पाचन क्रिया और अमाशय को आराम मिलता है. सालों-साल लगातार काम कारने के कष्ट से शरीर की इन मशीनरियों को कुछ दिनों तक आराम मिलता है. इस दौरान आमाशय शरीर के भीतर फालतू चीजों को गला देता है. यह लंबे समय तक रोगों से बचे रहने का एक कारगर नुस्खा है.
यहां बदल जाता है सरकार और लोगों का टाइमटेबल
रमजान के पूरा महीना लोगों के लिए बड़ा ही खास होता है. यह साल का इकलौता महीना है जो लोगों के जीवन को गहरे तक प्रभावित करता है. मिस्र में तो इस दिन घड़ी के कांटों को एक घंटे पीछे कर दिया जाता है ताकि रोजे का वक्त कुछ कम मालूम पड़े और शाम लंबी हो जाए.
कारोबार में चांदी…
मुस्लिम देशों के बैंकर्स और अर्थशास्त्रियों की मानें तो रमजान के पवित्र माह में बाजार पूरी तरह से गुलजार रहते हैं. लोग कपड़े और भोजन सामग्रियों पर अधिक पैसे खर्च करते हैं. रोजेदार शाम को रोजा खोलते वक्त बढ़िया से बढ़िया खाने में अपने पैसे खर्च करते हैं. वहीं कीमतों में भी इस महीने उछाल देखने को मिलता है.
रमजान में जकात
रमजान के पवित्र माह में जकात का बड़ा ही महत्व होता है. अमूमन गैर मुस्लिम लोग रमजान के माह को सिर्फ उपवास से जोड़कर ही देखते हैं जबकि ऐसा नहीं है. रमजान के माह में रोजेदार खुलकर जकात (दान) करते हैं. जकात इस्लाम धर्म के पांच सबसे महत्वपूर्ण फर्ज में से एक है. इस पर ईमान रखना हर मुस्लिम के लिए अनिवार्य है.
वैसे तो जकात किसी भी वक्त किया जा सकता है लेकिन रमजान के पवित्र माह में इसका महत्व कई गुना ज्यादा बढ़ जाता है. जकात हर मुसलमान पर फर्ज है जो उसकी हैसियत रखता है. जकात उन लोगों को दिया जाना अनिवार्य है जो बेहद जरूरतमंद हैं. ताकि, वे भी समाज के अन्य लोगों की तरह खुशियां मना सकें.
ईद से होती है समाप्ति
पवित्र रमजान माह की समाप्ति ईद-उल-फितर त्यौहार के साथ हर्ष और उल्लास के साथ होती है. इस्लामी दुनिया के इस पवित्र त्यौहार के आगमन की सूचना भी आकाश में दिखाई देने वाला नया चांद देता है.
ईद के दौरान मुस्लिम समुदाय नये वस्त्र धारण करता है, एक दूसरे को उपहार भेंट करता है, परिवारजनों के साथ ज्यादा से ज्यादा खुशियों को बांटता है. जकात (दान) का महत्व इस दिन सबसे ज्यादा होता है.
मुस्लिम जगत इस दिन रमजान माह के दौरान हुई भूलों के लिए अल्लाह से माफी मांगता है और इस पवित्र माह में उसके द्वारा किये गये रोजे के सकुशल सम्पन्न होने पर अल्लाह का शुक्रिया अदा करता है.
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