Saturday , 20 April 2024

पहली बार प्रयागराज की धरती पर किन्नरों का अद्भुद समाज देखने मौका मिलेगा

प्रयागराज डेस्क/एनटी न्यूज

इस बार प्रयागराज का कुम्भ ऐतिहासिक इसलिए भी हो सकता है क्योंकि पहली बार प्रयाग की धरती पर किन्नरों का एक अद्भुद समाज को जानने व समझने का आप सभी को मौका मिलेगा। इस बार कुम्भ में किन्नर अखाड़े के लिए भी सरकार ने जमीन मुहैया कराई है जहां किन्नर समाज अपने समाज के तमाम पहलुओं को प्रदर्शित करेगा।

 

अखाड़े को मान्यता नहीं

हालांकि भारतीय आखाड़ा परिषद ने अभी तक किन्नरो के द्वाया बनाए गए इस अखाड़े को परंपरागत मान्यता नहीं दी है। कुंभ में किन्नर अखाड़े ने 6 जनवरी को पेशवाई निकालने की घोषणा की है। यह किन्नर अखाड़े का दूसरा कुंभ प्रवेश है, जिसमें पेशवाई निकालेगे। इसके पहले 2016 के उज्जैन कुंभ मेले में किन्नर अखाड़े ने अपनी पहली पेशवाई यात्रा निकाली थी।

किन्नरों का संसार

किन्नरों के संसार से तात्पर्य यह है की इस बार प्रयागराज के कुम्भ में किन्नर समाज अपने रीति-रिवारों से दुनिया को अवगत कराएगा। इसमें राष्ट्रीय, अंतरराष्ट्रीय स्तर पर किन्नर कलाकार भाग लेंगे। जिसमें उनके खान-पान वास्तुकला, हस्तशिल्प कला, इतिहास, फिल्में, साहित्य, नृत्य, पेंटिंग, अध्यात्म, आदि के मिश्रण का अद्भुद स्वरूप देखने को मिलेगा। जिसमें दुनिया को यह जानने का मौका मिलेगा की इन सभी क्षेत्र में किन्नर क्या योगदान दे रहे हैं। इसके लिए वह फेसबुक, इंस्टाग्राम सहित सोशल मीडिया के विभिन्न साधनों के माध्यम से अपने इस प्रयाश को जन जन तक पहुंचाने में लगे हैं।

रामायण-महाभारत में किन्नरों का योगदान

इसमें दुनिया किन्नरों के आध्यात्मिक ज्ञान व इतिहास में उनके अनगिनत योगदान भी देखेगी। जिसमें रामायण, महाभारत काल में किन्नरों की भूमिका उनका योगदान उनका त्याग व उनके भक्ति आदि से संबन्धित इतिहास भी लोगों को जानने का मौका मिलेगा। इसलिए प्रयागराज के इस कुम्भ में किन्नर आखाडा के महामंडलेश्वर स्वामी लक्ष्मी नारायण त्रिपाठी महराज किन्नर महापुराण का लोकार्पण भी करेंगे। जिससे दुनिया यह जान सके की किन्नर की उत्पत्ति का आखिर वजूद क्या था। इंका हमारे वर्तमान परिवेश व इतिहास में कितना महत्व है। इन्हीं उद्देश्य के मद्देनजर इस बार कुम्भ में देश के तमाम बड़े प्रसिद्ध वक्ता व शोधकर्ता जो किन्नरों के समाज पर कई किताबें लिख चुके हैं। ऐसे लोगों को भी बुलाया जाएगा। ताकि हमारा समाज किन्नरों को समझे व उनकी भावनाओं का सम्मान करे।