‘आन’ के नाम पर कोई भी नहीं रोक सकता दो बालिगों की शादी : सुप्रीम कोर्ट

एनटी न्यूज़ डेस्क/ सुप्रीम कोर्ट

अंतरजातीय और दूसरे धर्म में शादी करने वाले प्रेमी जोड़ों को सुरक्षा और संरक्षण देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने ऑनर किलिंग पर अहम फैसला सुनाया है. कोर्ट ने कहा,दो वयस्कों की मर्जी से की गई शादी में खाप पंचायत या किसी और का दखल देना गैरकानूनी है. खाप या किसी तरह की भीड़ कानून अपने हाथ में नहीं ले सकती.

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कोर्ट ने ऑनर किलिंग की घटनाएं रोकने के लिए विस्तृत दिशानिर्देश भी जारी किए हैं. ऑनर किलिंग रोकने के लिए कानून बनाने की सिफारिश करते हुए कोर्ट ने कहा, कानून बनन तक कोर्ट के दिशानिर्देश लागू रहेंगे. वहीं, खाप पंचायतों ने कहा है कि उन्हें यह आदेश मंजूर नहीं है.

सबको पसंद से जीने का हक

यह फैसला प्रधान न्यायाधीश दीपक मिश्र, न्यायाधीश एएम खानविल्कर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने ऑनर किलिंग और खाप पंचायतों के प्रेमी जोड़ों के खिलाफ फरमानों का मुद्दा उठाने वाले गैरसरकारी संगठन ‘शक्ति वाहिनी’ की याचिका का निपटारा करते हुए सुनाया.

कुछ 54 पेज के अपने फैसले में अदालत ने कहा कि व्यक्ति की पसंद उसकी आजादी और आत्मसम्मान का अहम हिस्सा है. जब किसी की पसंद को आन के नाम कुचला जाता है और उसे शारीरिक रूप से प्रताड़ित किया जाता है तो समाज सिहर उठता है.

परिवार के बड़े या घराने धारणाओं और आवेश में उनकी पसंद के खिलाफ शादी करने वाले युवाओं का जीवन नहीं छीन सकते. ऐसा करना असंवैधानिक है.

सामाजिक उत्थान के बावजूद ऑनर किलिंग

कोर्ट ने कहा, लगातार सामाजिक उत्थान के बावजूद ऑनर किलिंग की समस्या वैसी ही बनी हुई है जैसा 1750 बीसी में हम्मूराबी कोड में जिक्र है. इस जुर्म में शामिल लोग नैतिक व दार्शनिक तर्को पर कानून तोड़ने को सही नहीं ठहरा सकते.

बेटी, भाई, बहन या बेटे के मानवाधिकार परिवार और घराने की कथित आन के बंधक नहीं हैं. आन के नाम पर किसी पर अत्याचार गैरकानूनी है. इसे एक क्षण भी बर्दाश्त नहीं किया जा सकता.

अगर दो वयस्क पसंद से शादी करते हैं तो उसमें समुदाय, परिवार या घराने की सहमति जरूरी नहीं है. कोई अनौपचारिक संस्था न्याय नहीं कर सकती. खाप या ऐसा कोई संगठन कानून हाथ में नहीं ले सकता.

वे कानून लागू करने वाली एजेंसी की भूमिका में नहीं आ सकतीं. वे सिर्फ पुलिस को सूचित कर सकती हैं. दो वयस्कों को पसंद से जीवनसाथी चुनना संविधान के अनुच्छेद 19 (अभिव्यक्ति की आजादी) और 21 (जीवन का अधिकार) के तहत आता है. इसे क्लास ऑनर पर खत्म नहीं किया जा सकता.

तीन साल में 288 घटनाएं

कोर्ट ने नेशनल क्राइम रिकॉर्ड ब्यूरो के हवाले से ऑनर किलिंग के मामले भी उद्धत किए. इसके मुताबिक 2014 से 2016 के बीच ऑनर किलिंग की 288 घटनाएं हुईं. 2014 में 28, 2015 में 192 और 2016 में 68 घटनाएं हुईं.

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