Saturday , 20 April 2024

प्रयागराज को संगठित होकर बचाएंगे कोरोना से: सिटीजन जर्नलिस्ट

प्रयागराज: वैश्विक महामारी कोविड-19 का संक्रमण अभी भी थमा नहीं है। संक्रमण के मामले कुछ हद तक कम जरूर हुए हैं। जिसके चलते सरकार ने लॉकडाउन में जनता को बहुत सी रियायतें अब दे दी हैं। लॉकडाउन खत्म होने के बाद हमारे सामने जो दुनिया होगी बहुत कुछ बदली हुई होगी। ऐसे में जनता के मन-मस्तिष्क में कैसे सवाल सुझाव व विचार आ रहे हैं यह जानना बेहद जरूरी है।

वायरस का फैलाव वैश्विक हो जाना भयावह

प्रयागराज के अल्लापुर क्षेत्र निवासी अल्का पाल (41) जो एक गृहणी हैं और साथ ही प्राथमिक विद्यालय रामगढ़, होलागढ़ प्रयागराज में सहायक अध्यापिका के पद पर कार्यरत हैं। कोरोना काल में हुए सामाजिक परिवर्तन व भविष्य की संभावनाओं पर अपना अनुभाव साझा करते हुए अल्का कहती हैं की कोरोना संक्रमण के बीच हमने जो दौर देखा उसने हमारी जीवनशैली के मायने पूरी तरह बदल दिए हैं। जीवन का हर पहलू इससे प्रभावित हुआ है। आज संक्रमण की जो गति है, उसे देखकर भविष्य की कल्पना करें तो डर लगता है। दुनियाभर में 2002-03 में सार्स की वजह से 700 से ज्यादा लोगों की मौत हुई थी। दुनिया में हजारों लोग इससे संक्रमित हुए थे। पर कोरोना वायरस का फैलाव वैश्विक हो जाना भयावह है।

घर बैठे बच्चों में चिढ़चिढ़ापन, गुस्सा

अल्का कहती हैं कि महीनों लॉकडाउन होने के कारण बच्चों की मनोदशा पर इसका सबसे ज्यादा नकारात्मक असर पड़ा है। इस दौरान बच्चे मोबाइल एडिक्शन के शिकार भी हुए हैं। कई महीनों से घर बैठे बच्चों में चिढ़चिढ़ापन, गुस्सा व जिद्दी प्रवृति पनपते भी हमने देखी है। इसके लिए जरूरी है बच्चों के मनोरंजन के लिए अभिभावक उनके साथ अपना लंबा वक्त बिताएँ। बच्चों के साथ खेलें व इन्हें कहानियाँ चुट्कुले सुनाएँ। उनके साथ एक दोस्त की तरह पेश आएँ। बच्चों के व्यवहार में किसी प्रकार की नकारात्मक देखें तो उसे एक दोस्त की तरह समझाएँ अगर उसके व्यवहार में बदलाव ना आए तो किसी मनोचिकित्सक से सलाह लें।

समाज में जागरूकता की अलख जगायें

शहर हमारा है संगठित होकर इसे हमें ही बचाना है। जिसके लिए निरंतर हमें सतर्क रहना होगा, ढिलाई की कोई गुंजाइश नहीं है। हमने जागरूकता व धैर्य के साथ इसका सामना किया है। हम भविष्य में महामारी के किसी दौर से निपटने को तैयार रहें इसके लिए सरकार को राष्ट्रीय स्तर पर स्वास्थ क्षेत्र में अत्याधुनिक बदलाव की आवश्यकता है। हमारी छोटी सी लापरवाही सैकड़ों जीवन को अब भी संकट में डाल सकती है। इसलिए हम रिश्तेदारों से लेकर पड़ोसियों तक सकारात्मक माहौल तैयार करें। उनसे फोन पर बात करें उन्हें संक्रमण के जोखिम से अवगत कराएं। भय का माहौल नहीं बल्कि सबको भरोसे में लेकर समाज में जागरूकता की अलख जगायें।

नमस्ते-नमस्कार करना ही उचित रहेगा

ध्यान रहे की इस संक्रमण के चलते मनुष्य के रूप में अपनी मानवीय संवेदनाओं को जिंदा रखें और सबका हाल खबर लेते रहें।
हमें इस बात का भी ध्यान रखना होगा की सबसे ज्यादा संक्रमण हाथों से ही फैलता है। नाक, आँख व मुँह से ही यह हमारे शरीर में प्रवेश करता है। कोरोना की सफाई व हमेशा के लिए विदाई के लिए हमें अपने अंदर आमूलचूक परिवर्तन लाने होंगे। पश्चिमी सभ्यता को भूलकर भारतीय प्राचीन सभ्यता पर ध्यान देना ही होगा। जिसके लिए किसी से मिलने पर हमें उनसे नमस्ते-नमस्कार करना ही उचित रहेगा।