रमेश पुरती बन रहे हैं साधारण किसानों के लिए मिसाल, देंगे इजरायल में व्याख्यान

एनटी न्यूज़ डेस्क/ खेती-किसानी

झारखंड के पश्चिम सिंहभूम जिले के एक छोटे से गांव का किसान इजरायल में व्याख्यान देगा. नाम है- रमेश पुरती. नोवामुंडी के बुरुबोड़ता गांव के रहने वाले रमेश को इंटीग्रेटेड फामिर्ंग पर अपने विचार रखने के लिए झारखंड सरकार अपना प्रतिनिधि बनाकर विदेश भेजने की तैयारी कर रही है. यह कार्यक्रम अप्रैल में प्रस्तावित है. तिथि का निर्धारण अभी नहीं हुआ है. इस जिले में रमेश की पहचान प्रगतिशील किसान के रूप में है.

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कैसे हासिल किया यह मुकाम

रमेश ने बताया कि इजरायल में ट्रेनिंग सह टूर प्रोग्राम रखा गया है. झारखंड के हर जिले से चयन कर किसानों को वहां भेजा जाएगा.

इसके लिए पिछले साल ही अक्टूबर-नवंबर में साक्षात्कार लिया गया था. विदेश में भारतीय कृषि और दूसरे देश की कृषि पद्धति को एक-दूसरे के साथ साझा करने का यह अच्छा मंच होगा.

इंटीग्रेटेड फामिर्ंग के लिए पिछले साल उसे राज्य स्तर पर सम्मानित भी किया गया था.

रमेश पुरती गणित से स्नातक हैं. 1996 में टाटा कॉलेज से पढ़ाई पूरी करने के बाद वह नौकरी के लिए महाराष्ट्र चले गए थे. वहां पुणो में एक पाव रोटी की फैक्ट्री में उन्होंने प्रति माह 4500 रुपये वेतन पर करीब छह महीने काम किया.

फिर पिता ने जमीन से कर दिया बेदखल

रमेश कहते हैं कि मेरा वहां मन नहीं लग रहा था. इस वजह से गांव लौट आया. यहां पिता जी की करीब 1.5 एकड़ जमीन है.

इस जमीन पर कृषि विज्ञान केंद्र की मदद से 1500 पपीते के पेड़ लगाए गए. करीब 50 फीसद पेड़ ही विकसित हुए.

सालाना आधार पर मात्र 50 हजार रुपये की ही कमाई हुई. पिता मुझसे नौकरी कराना चाहते थे. जब मैं नहीं माना तो पिता ने अपनी जमीन से बेदखल कर दिया.

इसके बाद मैंने गांव में ही चेक डैम के नीचे पिता की एक एकड़ जमीन पर खेती करने की सोची. पत्थर निकालकर जमीन को जैसे ही खेती के लायक बनाया, पिता ने जमीन को समतल करने की बात कह कर यहां खेती करने से मना कर दिया.

बंजर जमीन को किया खेती के लिए तैयार

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प्रतीकात्मक चित्र

रमेश ने बाद में चेक डैम के ऊपर करीब 2.5 एकड़ जमीन को खेती के लिए चुना. यह जमीन बंजर थी. मेहनत से खेती के लिए बनाया. लोगों ने कहा कि इसमें बेकार मेहनत कर रहे हैं. कुछ फायदा नहीं होगा.

पर किसी की नहीं सुनी और साग-सब्जी लगा दी. फायदा नहीं हुआ तो आम के पौधे रोप दिए. पहली बार में करीब तीन क्विंटल आम निकले. बाजार में बेचा तो अच्छा मुनाफा हुआ.

इसके बाद संतरा, केला और लाह की खेती करनी शुरू की. आज तीन लाख रुपये से ऊपर सालाना कमाई हो रही है. कमाई को बढ़ाने के लिए अब तकनीक आधारित खेती पर जोर दे रहे हैं.

उन्होंने तीन एकड़ का नया प्लॉट लिया है. उसमें हाईटेक तरीके से अनार की खेती कर रहे हैं.

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