एक कांस्टेबल के एसडीएम बनने का रोचक सफर

एनटी न्यूज / विशेष डेस्क / बबिता रमवापुरी

नीली बत्ती लगी चमचमाती गाड़ी देख कर अक्सर मेरे मन में यह खयाल आता कि , काश कभी हम भी इसमें बैठते, लेकिन घर के हालात ऐसे नहीं थे कि इस दिशा में कुछ सोचा जाए, क्योंकि घर की आर्थिक हालात ऐसी नही थी। लेकिन कठिन परिश्रम, दृढ़ संकल्प और पक्का इरादा अगर हो तो कुछ भी सम्भव है। यह कहना है यूपी पीसीएस 2016 में 52 वीं रैंक पाकर एसडीएम बनने वाले श्यामबाबू की। श्यामबाबू मूल रूप से जनपद बलिया के इब्राहिमपुर गांव के निवासी हैं। एक साधारण परिवार से तालुक रखते हैं। श्यामबाबू ने न्यूज़ टैंक्स से खास बातचीत में बताया कि, हम ग्रामीण परिवेश में पले बढ़े हैं, पिता जी गांव में एक छोटी सी परचून की दुकान चलाते हैं और कुछ खेती है जो कि आय का मुख्य साधन वही है। उससे इतना इनकम नही होता जिससे परिवार चल सके। श्यामबाबू ने बताया कि घर के हालात को देखते हुए हमने कुछ आजीविका के लिए प्रयास किया और 2005 में कांस्टेबल के पद पर चयनित हो गया।क्योकि घर का सारा भार पिता जी पर ही था। लेकिन यही मेरा अंतिम पड़ाव नही था, क्योकि मंजिल कुछ और थी।

बड़े भाई को पढ़ने के लिये शहर बुलाया

श्यामबाबू कहते हैं जब मैं कांस्टेबल बन गया तो अपने बड़े भाई उमेश कुमार को शहर में पढ़ने के लिए प्रेरित किया क्योकि अब मैं भी कमाने लगा था, भगवान ने मेरे प्रयास और भैया के मेहनत को सफल किया, भाईसाहब इनकम टैक्स में इंस्पेक्टर के पद पर तैनात हो गए। यह मेरे लिए किसी बड़े सपने से कम नही था। अब थोड़ा बोझ हल्का हुआ था। लेकिन सुबह शाम दफ्तर में वह नीली बत्ती हमेशा दिमाग मे घूमती रहती थी, उससे निकले वाले सायरन के आवाज मानो कह रहे हों श्यामबाबू यह खाकी वर्दी ही तुम्हारा अंतिम लक्ष्य नहीं है।

परिवार के साथ श्यामबाबू

असफलता हाथ लगी लेकिन, जज्बा कम नहीं हुआ

श्यामबाबू बताते हैं, मैंने 2009 और 2010 में भी परीक्षा दिया लेकिन सफलता हासिल नहीं हुई। फिर भी मैं डिगा नही, दोगुने उत्साह से पढ़ाई करता। पीसीएस की परीक्षा के प्रति पूरी तरह एकाग्रचित्त हो गया और फिर इसके अलावा कोई परीक्षा दी ही नहीं।

बाबू जी मैं एसडीएम बन गया!

श्यामबाबू बताते हैं कि, रोज की तरह दफ्तर से घर के लिये निकला तो देखा कि देखा लोकसेवा आयोग (प्रयागराज ) दफ्तर पर भीड़ लगी थी , मैं भी अपनी बाइक से उतरा और रिजल्ट देखने लगा, उसमें मेरा भी नाम था, रिजल्ट देखते ही खुशी का ठिकाना नहीं रहा। तुरंत बाबू जी को फोन किया कि मैं एसडीएम बन गया। पिता जी खुशी से झूम उठे।श्यामबाबू को नही मालूम था कि अब बाइक से नहीं, गाड़ी से चलेंगे जिसमें उनकी सुरक्षा में सिपाही होंगे।

गांव पहुंचने पर श्यामबाबू का भव्य स्वागत किया गया

इन मित्रों का बहुत योगदान रहा

कहते हैं कि जीवन में अगर अच्छे संगत के मित्र हों तो जीवन सुधार देते हैं, ऐसे ही कुछ मित्रों का प्रेम और सहयोग श्यामबाबू को मिला, जिनमें निखिल त्रिपाठी, नीरज और प्रभाकर मणि त्रिपाठी हैं।

सिविल की परीक्षा दे रहे स्टूडेंट्स इन बातों का विशेष ध्यान रखें

श्यामबाबू टिप्स देते हुए कहते हैं कि, जीवन में कुछ भी असंभव नहीं है, मानव ही इस धरती पर है जो चांद पर जा सकता है, जो नमुमकिन को मुमकिन कर सकता है। हम अपने टारगेट को हर समय दिमाग में रखें और उसके प्रति पूरी ईमानदारी और निष्ठा के साथ लगे रहें , परिणाम आपके पक्ष में होंगे।

कोचिंग नहीं, सेल्फ स्टडी से मिली मंजिल

श्यामबाबू बताते हैं कि समय और अर्थ के अभाव में कोचिंग करना सम्भव नहीं था, नौकरी के दौरान ही प्राइवेट पढ़ाई की, और सिविल की तैयारी करता रहा।

अपनी दादी के साथ श्यामबाबू

कुछ लोगों ने सोशल मीडिया पर भ्रामक खबरें फैलाई

श्यामबाबू ने बताया कि , कुछ लोगों ने लिखा कि, श्यामबाबू अपने डिप्टी एसपी के लिये चाय लाने गया था और जब लौटा तो अपने को पीसीएस में चयनित होने की जानकारी दी जिसपर डीएसपी ने सलामी दी, यह निराधार और झूठी खबर है, क्योंकि यह काम चपरासी का है और कभी भी मुझे ऐसी स्थिति का सामना नहीं करना पड़ा।

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