श्रीलंका के बौद्ध और मुस्लिम समुदाय में टकराव की कहानी पुरानी है

एनटी न्यूज़ डेस्क/ विश्व समाचार

श्रीलंका के कैंडी जिले में मंगलवार को सांप्रदायिक संघर्षों के शुरू होने के बाद राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना ने 10 दिनों के लिए आपातकाल की घोषणा की है. श्रीलंका के राष्ट्रीय संवाद मंत्री मानो गणेशन ने समाचार एजेंसी सिन्हुआ को बताया कि मंगलवार सुबह कैबिनेट की विशेष बैठक के बाद यह फैसला लिया गया है. गणेशन ने कहा कि आपातकाल सिरिसेना को पूरे देश में सशस्त्र बलों को तैनात करने की शक्ति प्रदान करेगा.

राष्ट्रपति मैत्रीपाला सिरिसेना, जातीय हिंसा, बौद्ध समुदाय, मुस्लिम समुदाय, निदास ट्रॉफी टूर्नामेंट, राष्ट्रीय संवाद मंत्री
photos by twitter Aman Ashraff

कैसे भड़की यह हिंसा

हाल ही में द्वीप देश में भड़की सांप्रदायिक हिंसा में भीड़ ने सोमवार रात को सड़कों पर निकलकर घरों और दुकानों में आग लगा दी जिसके बाद मंगलवार सुबह पुलिस ने जिले के कई हिस्सों में दोबारा से कर्फ्यू लागू कर दिया.

सरकार ने हिंसा की कड़ी निंदा की है और अपराधियों के खिलाफ सख्त कदम उठाने की बात कही है.  उधर, मस्जिदों और मुसलमानों की दुकानों पर सिलसिलेवार हमलों के बाद श्रीलंका की कैबिनेट ने देश में आपातकाल लागू करने की घोषणा कर दी है.

कैंडी शहर के कुछ इलाकों में कर्फ़्यू लगा दिया गया है. कैंडी से मिल रही रिपोर्टों के मुताबिक़ बौद्ध धर्म को मानने वाले सिंहला लोगों ने मुसलमानों की दुकानों पर हमले किए और उन्हें आग के हवाले कर दिया.

एक जली हुई इमारत से एक मुस्लिम व्यक्ति की लाश बरामद होने के बाद श्रीलंका में पुलिस को बदले की कार्रवाई का अंदेशा है.

22 फरवरी को दो वाहनों के बीच की घटना में लोगों के समूह द्वारा एक 41 वर्षीय व्यक्ति की पिटाई की गई थी. इस व्यक्ति की बाद में अस्पताल में मौत हो गई जिसके बाद रविवार रात को शहर के डिगाना इलाके में झड़प शुरू हो गई.  पुलिस के मुताबिक, अभी तक 24 लोगों को गिरफ्तार किया जा चुका है.

आज है पहला टी-20 मैच

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वहीं, कोलंबो के प्रेमदासा स्टेडियम में निदास कप का पहला टी-ट्वेंटी मैच भारत और श्रीलंका के बीच मंगलवार को ही खेला जाना है.

इसे लेकर भी अभी अनिश्चितता बनी हुई है. इंडियन प्रीमियर लीग के कमिश्नर राजीव शुक्ला ने भारत सरकार से टीम इंडिया की सुरक्षा सुनिश्चित करने की मांग की है.

लेकिन निदास ट्रॉफी टूर्नामेंट के मुख्य कार्यकारी अधिकारी एश्ले डी सिल्वा ने कहा कि श्रीलंका में अपातकाल के अलावा कर्फ्यू भी लगा है. हालांकि, कर्फ्यू कैंडी शहर में लगा है न कि कोलंबो में.

उन्होंने कहा कि सभी को यह जानकारी दी जाती है कि संबंधित सुरक्षा कर्मियों चर्चा के बाद हमने यह जाना है कि कोलंबो में हालात सामान्य हैं. इस संबंध में अन्य जानकारियां दी जाएंगी.

क्या है तनाव की मुख्य वजह…?

करीब एक हफ़्ते पहले कैंडी जिले के ट्रैफिक रेड लाइट पर हुए झगड़े के बाद कुछ मुसलमानों ने एक बौद्ध युवक की पिटाई की थी और तभी से वहां तनाव बना हुआ है. इसके अलावा पिछले हफ़्ते ही श्रीलंका के पूर्वी शहर अमपारा में मुस्लिम विरोधी हिंसा हुई थी.

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द्विपीय देश श्रीलंका में बौद्ध और मुस्लिम समुदाय में साल 2012 से ही सांप्रदायिक तनाव की स्थिति बनी हुई है. कहा जाता है कि एक कट्टरपंथी बौद्ध संगठन (बीबीएस) इस तनाव को हवा देता रहता है, जिसमें कुछ मुस्लिम संगठन भी अहम् रोल निभाते हैं.

बौद्धों का है संगीन आरोप

श्रीलंका के कुछ बौद्ध समूहों ने मुसलमानों पर जबरन धर्म परिवर्तन कराने और बौद्ध मठों को नुक़सान पहुंचाने का आरोप लगाते हैं.

वहीँ, असल तस्वीर में कुछ और ही नज़र आता है. पिछले दो महीने के भीतर गॉल में मुसलमानों की कंपनियों और मस्जिदों पर हमले की 20 से ज़्यादा घटनाएं हो चुकी हैं.

अगर इस हिंसा का पिछला इतिहास देखें तो साल दर साल श्रीलंकाई अल्पसंख्यकों यानी मुसलमानों पर हमले बढ़ते जा रहे हैं. इसी के उदहारण में, साल 2014 में कट्टरपंथी बौद्ध गुटों ने तीन मुसलमानों की हत्या कर दी थी, जिसके बाद गॉल में दंगे भड़क गए.

इसके अलावा, साल 2013 में कोलंबो में बौद्ध गुरुओं के नेतृत्व में एक भीड़ ने कपड़े के एक स्टोर पर हमला कर दिया था. कपड़े की ये दुकान एक मुस्लिम की थी और हमले में कम से कम सात लोग घायल हो गए थे.

यहाँ अल्पसंख्यक हैं मुसलमान

इस देश की आबादी करीब दो करोड़ दस लाख के है. जिसमें 70 फ़ीसदी बौद्ध हैं और 9 फ़ीसदी मुसलमान हैं. साल 2009 में सेना के हाथों तमिल विद्रोहियों की हार के बाद से श्रीलंका का मुस्लिम समुदाय एक तरह से सियासी फ़लक से दूर ही है.

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लेकिन हाल के सालों में मुस्लिम समुदाय के ख़िलाफ़ धर्म के नाम पर हिंसा की घटनाएं बढ़ी हैं. इस हिंसा के लिए मुस्लिमों द्वारा बौद्ध गुरुओं को ज़िम्मेदार ठहराया जाता रहा है.

लेकिन मुसलमानों को क्यों निशाना बना रहे हैं बौद्ध ?

बौद्ध धर्म को दुनिया में शांति और अहिंसा के प्रतीक के तौर पर देखा जाता है. अहिंसा के प्रति बौद्ध मान्यताएं उसे अन्य धर्मों से अलग बनाती है. फिर सवाल उठता है कि मुसलमानों के ख़िलाफ़ बौद्ध हिंसा का सहारा क्यों ले रहे हैं.

इसके पीछे तर्क यह दिया जा रहा है कि श्रीलंका में मुसलमानों का मुस्लिम परंपरा के तहत मांसाहार या पालतू पशुओं को मारना बौद्ध समुदाय के लिए एक विवाद का मुद्दा काफी समय से रहा है.

यहाँ के कट्टरपंथी बौद्धों ने एक बोडु बला सेना भी बना रखी है. जो सिंहली बौद्धों का राष्ट्रवादी संगठन है. ये संगठन मुसलमानों के ख़िलाफ़ मार्च निकालता है और विरोध प्रदर्शन करता है.

यह संगठन मुस्लिमों के ख़िलाफ़ सीधी कार्रवाई की बात करता है और मुसलमानों द्वारा चलाए जा रहे कारोबार के बहिष्कार का वकालत करता है. इस संगठन को मुसलमानों की बढ़ती आबादी से भी शिकायत है.

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