क्या होता है अविश्वास प्रस्ताव, जिसका ‘मोदी सरकार’ सोमवार को सामना करेगी ?

एनटी न्यूज़ डेस्क/ इतिहास/ राजनीति

केंद्र की मोदी सरकार के सिर फूलपुर और गोरखपुर उपचुनाव में मिली करारी के बाद कई खतरे मडराने लगे हैं. भाजपा नीत राजग गठबंधन में शामिल कई सहयोगी दलों के इस हार के बाद तेवर कुछ चढ़े नज़र आ रहे हैं और हौसले बुलंद हैं. इसीलिए टीडीपी जो कल तक मोदी सरकार में सहयोगी वह इस सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव ला रही है. भाजपा के शीर्ष नेतृत्व को आज यानी शुक्रवार सुबह ही टीडीपी ने शीर्ष नेतृत्व ने एक पत्र लिख कर यह जानकारी दी.

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पहली बार मोदी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव

मोदी सरकार के खिलाफ पहला अविश्वास प्रस्ताव लाने की तैयारी हो रही है. टीडीपी सोमवार को लोकसभा में यह प्रस्ताव ला सकती है, शुक्रवार को टीडीपी ने सरकार से समर्थन वापस लेने का फैसला किया है.

संसद सदन में वाईएसआर कांग्रेस की ओर से आज भी प्रस्ताव लाने की कोशिश की गई लेकिन हंगामे की वजह से यह पेश नहीं हो सका.

लोकसभा में टीडीपी अकेले यह प्रस्ताव नहीं ला सकती क्योंकि इस पेश करने के लिए कम के कम 50 सासंदों का समर्थन जरूरी होता है.

लोकसभा में टीडीपी के पास सिर्फ 16 सांसद है. ऐसे में विपक्षी दलों के सहयोग के बिना यह प्रस्वाव सदन में पेश भी नहीं किया जा सकता.

क्या है प्रस्ताव लाने की प्रक्रिया

सदन में जो भी दल अविश्वास प्रस्ताव लाना चाहता है, उसे सबसे पहले सभापति को इसकी लिखित सूचना देनी होती है.

इसके बाद सभापति उस दल के किसी सांसद से इसे पेश करने के लिए कहते हैं. लेकिन यह तभी स्वीकार किया जाता है जब प्रस्ताव को कम से कम 50 सांसदों का समर्थन हासिल हो.

सदन इस पर चर्चा हो सकती है और फिर वोटिंग कराई जा सकती है या समर्थन करने वाले सांसदों को खड़ा कर उनकी गिनती की जाती है.

आमतौर में यह प्रस्ताव सरकार को गिराने के मकसद से लाया जाता है जब कोई सरकार अल्पमत में आ जाती है. लेकिन इसका इस्तेमाल सरकारों को घेरने और चेतावनी स्वरूप भी किया जाने लगा है.

बीते दिनों में कई प्रस्ताव ऐसे भी आए जब सरकार के पास पर्याप्त आंकड़े थे और उसे कोई खतरा नहीं था. मोदी सरकार के मौजूदा आंकड़ों से भी जाहिर है कि उसे इस प्रस्ताव से कोई खतरा नहीं है.

बीजेपी अकेले ही बहुमत के आंकड़े (272) को पार कर रही है. अगर इसमें एनडीए के साझीदारों को शामिल कर लिया जाए तो यह संख्या काफी हो जाती है.

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लोकसभा में दलवार स्थिति

लोकसभा में बीजेपी के पास 274 सांसद हैं. वहीं कांग्रेस के 48, एआईएडीएमके के 37, टीएमसी के 34, बीजेडी के 20, शिवसेना के 18, टीडीपी के 16, टीआरएस के 11, सीपीएम के 9, वाईएसआर कांग्रेस के 9, समाजवादी पार्टी के 7, इनके अलावा 25 अन्य पार्टियों के 56 सांसद है. लोकसभा में 5 सीटें खाली हैं.

ऐसे में टीडीपी के एनडीए से बाहर आने के बाद भी शिवसेना, एलजेपी (6), अपना दल (2), आरएलएसपी (3) , जेडीयू (2) और अकाली (4) जैसे दलों का समर्थन सरकार को हासिल है.

क्या है अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास

अविश्वास प्रस्ताव का इतिहास का इतिहास अगर देखा जाए तो इसका उपयोग तब तब किया गया जब किसी सरकार को गिराना होता है. पहली बार अगस्त 1963 में जे बी कृपलानी ने अविश्वास प्रस्ताव रखा था.

तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू की सरकार के खिलाफ रखे गए इस प्रस्ताव के पक्ष में सिर्फ 62 वोट पड़े और विरोध में 347 वोट पड़े थे.

तब से लेकर अबतक 26 से ज्यादा बार अविश्वास प्रस्ताव रखे जा चुके हैं. लेकिन ज्यादातर प्रस्ताव सदन में गिरते आए हैं.

गिर गई थी मोरारजी सरकार

पहले गैर कांग्रेसी प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई की सरकार के 1978 में लाए गए अविश्वास प्रस्ताव की वजह से गिर गई थी.

हालांकि देसाई सरकार के खिलाफ 2 अविश्वास प्रस्ताव रखे गए थे, पहले प्रस्ताव से सरकार को कोई दिक्कत नहीं हुई, लेकिन दूसरे प्रस्ताव के वक्त घटक दलों ने साथ नहीं दिया था.

इंदिरा सरकार का रिकॉर्ड

संसद के इतिहास में सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव इंदिरा गांधी सरकार के खिलाफ पेश किए गए. उनकी सरकार को ऐसे 15 प्रस्तावों का सामना करना पड़ा था.

इस क्रम में लाल बहादुर शास्त्री और नरसिम्हा राव की सरकारों ने 3-3 बार अविश्वास प्रस्ताव का सामना किया था.

अविश्वास प्रस्ताव पेश करने का रिकॉर्ड सीपीएम के सांसद ज्योतिर्मय बसु के नाम है. इंदिरा सरकार के खिलाफ उन्होंने 4 अविश्वास प्रस्ताव रखे थे.

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