एनटी न्यूज़ डेस्क/ आधार कार्ड
आधार की प्रक्रिया को संचालित करने वाली संस्था यूआइडीएआई द्वारा 2010 से 1016 तक नागरिकों से व्यक्तिगत सूचनाओं को एकत्रित किया जाना अवैध था. जो सूचनाएं एकत्रित की गईं उन्हें नष्ट किया जाना चाहिए. यह बात सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को मामले से संबंधित सुनवाई के दौरान कही. 2016 में आधार को लेकर कानून प्रभावी हो गया, उसके बाद व्यक्तिगत सूचनाओं को एकत्रित करने की प्रक्रिया विधिसम्मत हो गई.
आधार योजना पर कर रही थी सुनवाई
यह बात मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र की अध्यक्षता वाली पांच जजों की संविधान पीठ ने कही. यह पीठ हाई कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश केएस पुट्टास्वामी की आधार योजना और उसके लिए 2016 में बने कानून को चुनौती देने वाली याचिका की सुनवाई कर रही है.
पीठ में जस्टिस एके सीकरी, एएम खानविलकर, डीवाई चंद्रचूड़ और अशोक भूषण शामिल हैं.
मामले में सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा राय की ओर से पेश अधिवक्ता वरिष्ठ अधिवक्ता केवी विश्वनाथन ने कहा, पूरे छह साल सरकार ने आधिकारिक प्रक्रिया पूरी किए बगैर लोगों से उनकी सूचनाएं लीं. इसलिए यह डाटा नष्ट किया जाना चाहिए.
नहीं था कोई स्पष्ट दिशानिर्देश
अधिवक्ता ने कहा कि 2010 से 2016 तक लोगों से एकत्रित व्यक्तिगत सूचनाओं को लेने, उन्हें और उनके इस्तेमाल के बारे में कोई स्पष्ट दिशानिर्देश नहीं थे.
यह नागरिकों के निजता के मूलभूत अधिकार का उल्लंघन था. आशंका है कि सरकारी और निजी एजेंसियों ने इनका अपने हितों के लिए इस्तेमाल किया.
उन्होंने कहा, एकत्रित सूचनाओं के प्रति गोपनीयता की बाध्यता आधार के कार्य में लगी सरकारी और निजी एजेंसियों की है, उसके साथ समझौता हुआ है. पूरे छह साल तक उनकी जवाबदेही नहीं रही.
व्यक्तिगत सूचनाएं साझा करने का हक केवल व्यक्ति को
मामले में पश्चिम बंगाल सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने कहा कि अपनी पहचान और सूचनाएं सार्वजनिक करने या न करने का अधिकार हर नागरिक को होना चाहिए. मामले में बहस गुरुवार को भी जारी रहेगी.
20 मार्च को केंद्र सरकार की ओर से अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल को जवाब देना है.
उल्लेखनीय है कि मंगलवार को सुप्रीम कोर्ट ने कई आवश्यक सेवाओं से आधार को जोड़े जाने की अंतिम तिथि 31 मार्च से आगे बढ़ाने का आदेश दिया था.