सरकार ने बुधवार को सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा कि राजनीतिक दल में पदाधिकारी की नियुक्ति पार्टी की स्वायत्तता का मुद्दा है. चुनाव आयोग द्वारा सिर्फ इस आधार पर पार्टी का पंजीकरण करने से इन्कार कर देना कि पार्टी पदाधिकारी चुनाव लड़ने के अयोग्य है, ठीक नहीं होगा. कोर्ट इस मामले में 26 मार्च को सुनवाई करेगा.
अश्वनी उपाध्याय की जनहित याचिका
केंद्र सरकार ने वकील व भाजपा नेता अश्वनी उपाध्याय की जनहित याचिका का विरोध करते हुए ये हलफनामा दाखिल किया है. कोर्ट ने याचिका पर नोटिस जारी कर सरकार से जवाब मांगा था.
उपाध्याय की याचिका में मांग की गई है कि आपराधिक मुकदमे में अदालत से दोषी करार और चुनाव लड़ने के अयोग्य हो चुके व्यक्ति के राजनीतिक दल बनाने और राजनीतिक दल में पदाधिकारी बनने पर रोक लगाई जाए.
साथ ही चुनाव आयोग को ऐसे लोगों की पार्टी का पंजीकरण न करने और पंजीकरण रद करने का अधिकार दिया जाए.
कोई ऐसी व्यवस्था नहीं है
सरकार ने कहा है कि राजनीतिक दलों के पंजीकरण से संबंधित मौजूदा कानून का आपराधिक मामले में दोषी ठहराए गए व्यक्ति के जनप्रतिनिधि कानून में संसद और विधानसभा का चुनाव लड़ने पर रोक लगाने वाले कानून के बीच कोई संबंध नहीं है.
राजनीतिक दल का पदाधिकारी प्रतिनिधि नहीं होता. राजनीतिक दल में पदाधिकारी की नियुक्ति पार्टी की स्वायत्तता का मामला है. हलफनामे में कहा गया है कि सरकार चुनाव सुधार की जरूरत से वाकिफ है और ये एक जटिल प्रक्रिया है. फिर भी समय-समय पर इस बारे में संशोधन होते रहते हैं.
चुनाव सुधार का मुद्दा
सरकार ने चुनाव सुधार का पूरा मुद्दा विचार के लिए विधि आयोग को भेजा था और आयोग ने उस पर अपनी 255वीं रिपोर्ट दी है जो कि सरकार के समक्ष विचाराधीन है.
उस रिपोर्ट के चैप्टर तीन में राजनीतिक दल और उनके आंतरिक लोकतंत्र का मुद्दा शामिल है लेकिन उसमें आपराधिक पृष्ठभूमि के पार्टी पदाधिकारियों के आधार पर चुनाव आयोग द्वारा धारा 29ए में राजनीतिक दल का पंजीकरण करने से मना करने के बारे में कोई सुझाव नहीं दिया गया है.
रिपोर्ट में कई तरह की सिफारिशें
रिपोर्ट में कई तरह की परिस्थितियों में राजनीतिक दलों का पंजीकरण रद करने का चुनाव आयोग को अधिकार दिये जाने की सिफारिश की गई है लेकिन उसमें पार्टी पदाधिकारी की आपराधिक पृष्ठभूमि का आधार नहीं दिया गया है.
सरकार ने ये भी कहा है कि राजनीतिक दलों के पंजीकरण का चुनाव आयोग को अधिकार देने वाली धारा 29ए निषेधात्मक प्रावधान नहीं करती है. सरकार ने याचिका खारिज करने की मांग की है.