एससी-एसटी एक्ट पर तत्काल गिरफ्तारी पर रोक संबंधी सुप्रीम कोर्ट के फैसले से गरमाई राजनीति को थामने की पूरी तैयारी हो गई है. सरकार ने फैसला किया है कि वह इस फैसले पर पुनर्विचार के आग्रह के साथ सुप्रीम कोर्ट जाएगी. हालांकि इसकी आहट पहले दिन ही मिल गई थी, लेकिन सभी कानूनी पहलुओं को आंकने के बाद गुरुवार को केंद्रीय कानून मंत्री रविशंकर प्रसाद ने सार्वजनिक रूप से इसकी घोषणा भी कर दी. यह बात खैर, पहले ही साफ थी कि सरकार इसी तरह का कदम उठाएगी.
सरकार को विपक्ष ने कटघरे में किया खड़ा
मालूम हो कि पिछले एक सप्ताह विपक्ष की ओर से जहां इसका ठीकरा सरकार के सिर फोड़ा गया था, वहीं खुद भाजपा के भी एक सांसद ने राजनीतिक कारणों से सरकार को कठघरे में खड़ा कर दिया था.
चुनावी मौसम में विपक्ष इसे बड़े हथियार के रूप में देख रहा था. ध्यान रहे कि बिहार विधानसभा चुनाव से पहले भी आरक्षण का एक ऐसा ही संवेदनशील मुद्दा आया था, जिसे विपक्ष ने हाथों हाथ लिया था.
कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्षी प्रतिनिधिमंडल ने राष्ट्रपति का दरवाजा भी खटखटाया था.
विपक्ष नहीं ले पाएगा इसका श्रेय
इसी वजह से इस बात की पूरी तैयारी की जा रही थी कि विपक्ष इसका श्रेय न ले पाए. इसीलिए राजग गठबंधन में शामिल पार्टियों, केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा एससी मोर्चे ने इसकी कमान संभाल रखी थी.
उनकी ओर से सार्वजनिक तौर पर पुनर्विचार याचिका की मांग हो रही थी और प्रधानमंत्री से मिलकर औपचारिक तौर पर आग्रह भी किया जा रहा था.
साथ ही वे यह स्पष्ट करने से भी नहीं चूक रहे थे कि मोदी सरकार के काल में ही दलितों के विकास के लिए कई कदम उठाए गए हैं. खुद एससी-एसटी एक्ट में मोदी काल के दौरान ही संशोधन कर इसे मजबूत बनाया गया था.
यह था फैसला…
सुप्रीम कोर्ट के फैसले को लेकर इसलिए विरोध हो रहा है क्योंकि फैसले में एक्ट के तहत गिरफ्तारी के नियमों को शिथिल कर दिया गया था.
यानि किसी के खिलाफ केस दर्ज होने के बाद उसे तुंरत गिरफ्तार नहीं किया जाएगा, बल्कि पुलिस का कोई वरिष्ठ अधिकारी इस मामले की पहले जांच करेगा. यदि उसमें वह पहली नजर में दोषी पाया जाएगा तो ही गिरफ्तारी होगी.