निर्वाचन आयोग की अगर यह सिफारिश लागू की गयी तो बदल जाएगी चुनावी तस्वीर

निर्वाचन आयोग की सिफारिश यदि मान ली गई, तो फिर आने वाले दिनों में कोई प्रत्याशी दो सीटों से चुनाव नहीं लड़ पाएगा. सुप्रीम कोर्ट में दिए गए अपने हलफनामे में चुनाव आयोग ने ‘एक उम्मीदवार, एक सीट’ के सुझाव का समर्थन किया है. आयोग कानून मंत्रालय को अपनी सिफारिश में पहले ही कह चुका है कि एक प्रत्याशी को दो सीटों से चुनाव लड़ने की छूट नहीं होनी चाहिए. फिलहाल उम्मीदवारों को दो सीटों से चुनाव लड़ने की छूट है.

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अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है याचिका

भाजपा नेता अश्विनी उपाध्याय की एक याचिका के संदर्भ में चुनाव आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में हलफनामा दाखिल कर कहा है कि दो जगह से चुनाव लड़कर एक सीट छोड़ देना मतदाताओं के साथ अन्याय है. इससे देश पर आर्थिक बोझ पड़ता है.

इतना ही नहीं आयोग ने सुझाव दिया है कि सीट छोड़ने वाले व्यक्ति से दोबारा होने वाले चुनाव का खर्च वसूला जाना चाहिए. यदि सरकार इस प्रावधान को बनाए ही रखना चाहती है, तो उप चुनाव का खर्च सीट छोड़ने वाले उम्मीदवार पर डाल दिया जाना चाहिए.

क्या कहना है अदालत का…

सुप्रीम कोर्ट ने इस मामले में केंद्र सरकार से भी राय मांगी है. मुख्य न्यायाधीश दीपक मिश्र, जस्टिस एएम खानविलकर और डीवाई चंद्रचूड़ की पीठ ने कहा, ‘हमने अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल से इस मामले में सहयोग मांगा है. उन्होंने सहयोग के लिए सहमति जताई है, लेकिन याचिका के जवाब के लिए कुछ समय मांगा है.’

इसके बाद कोर्ट ने मामले को अगली सुनवाई के लिए जुलाई के पहले सप्ताह में सूचीबद्ध करने को कहा.

एनटी रामाराव का इतिहास

दक्षिण भारतीय सिनेमा की कद्दावर शख्सियत और बाद में राजनेता बने तेलुगु देसम के संस्थापक एनटी रामाराव का लंबा राजनीतिक जीवन रहा. उन्होंने अपने जीवन के चारों विधानसभा चुनाव कई सीटों से लड़े थे.

साल 1983 में वे गुडीवादा और तिरुपति से चुनाव लड़े और दोनों ही सीटों पर विजयी रहे. इसी प्रकार 1985 में वे गुडीवादा, हिंदूपुर और नलगोंडा से लड़े और सभी पर जीत हासिल की. हालांकि, उन्होंने हिंदूपुर को छोड़कर शेष दोनों सीटों पर अपनी दावेदारी छोड़ दी.

प्रत्याशी एक, सीट दो…?

साल 1996 में जनप्रतिनिधित्व कानून, 1951 में संशोधन कर एक प्रत्याशी को अधिकतम दो सीटों पर चुनाव लड़ने की छूट दी गई. इसके पहले कोई भी व्यक्ति कितनी ही सीटों पर चुनाव लड़ सकता था.

ऐसा विभिन्न दलों के बड़े नेता सुरक्षा के लिहाज से करते थे. हालांकि, इस फेर में कई बार चुनाव आयोग पर उप चुनाव कराने का दबाव आ जाता था.

इस पर बढ़ता चुनाव खर्च…

2009 लोकसभा चुनाव के दौरान प्रति सीट चुनाव खर्च करीब 2 से 3 करोड़ था. 2014 में ये बढ़कर पांच करोड़ रुपये हो गया. उप चुनाव का खर्च आम चुनाव से कहीं ज्यादा होता है.

अन्य बड़े नाम

बीजू पटनायक- 1971 में विधानसभा की चार सीटों और लोकसभा की एक सीट पर चुनाव लड़े.

नरेंद्र मोदी- 2014 के लोकसभा चुनाव में वड़ोदरा और वाराणसी से उम्मीदवार बने और जीते भी.

इंदिरा गांधी- 1980 में आंध्र प्रदेश के मेडक और रायबरेली से.

सोनिया गांधी- 1999 में अमेठी और कर्नाटक की बेल्लारी से.

लालू प्रसाद- 2009 में लोकसभा की दो सीटों से.

अखिलेश यादव- 2004 में लोकसभा की दो सीटों से.

याचिका में ये मांगें की गईं

आयोग ने कहा, दो जगह से लड़कर एक सीट छोड़ना मतदाताओं के साथ सीधा-सीधा अन्याय

आयोग ने सुप्रीम कोर्ट में दाखिल किया हलफनामा,सीट छोड़ने वाले से उप चुनाव का खर्च वसूलने का सुझाव

दो जगह से चुनाव लड़ने की इजाजत देने वाले जनप्रतिनिधि कानून की धारा 33 (7) को अवैध घोषित किया जाए.

जब प्रत्याशी दो जगहों से चुनाव जीतता है, तो अनिवार्य है कि वह एक सीट छोड़े. इससे खजाने और शासन तंत्र पर बोझ पड़ता है.

यह उस इलाके (संसदीय/विधानसभा) के मतदाताओं के साथ साफ-साफ नाइंसाफी भी है, जहां से उम्मीदवार हट रहा है.

जुलाई 2004 में देश के तत्कालीन मुख्य चुनाव आयुक्त ने सरकार से जनप्रतिनिधि कानून की धारा 33(7) में संशोधन की मांग की थी.