अभी दो दिन पहले ही सुप्रीम कोर्ट ने कार्य आवंटन और पीठों के गठन के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) के विशेषाधिकार पर मुहर लगाई थी, लेकिन शुक्रवार को नए सिरे से यही मसला उठाने वाली पूर्व कानून मंत्री और वरिष्ठ वकील शांति भूषण की याचिका पर कोर्ट ने फिर विचार का मन बनाया है.
कोर्ट ने मामले में औपचारिक नोटिस तो जारी नहीं किया, लेकिन याचिका पर विस्तृत सुनवाई के लिए 27 अप्रैल की तिथि तय करते हुए अटॉर्नी जनरल (एजी) केके वेणुगोपाल और एडीशनल सॉलिसिटर जनरल (एएसजी) तुषार मेहता से सुनवाई में कोर्ट की मदद का आग्रह किया है.
शांति भूषण ने सुप्रीम कोर्ट में जनहित याचिका दाखिल कर प्रधान न्यायाधीश के पीठों का गठन करने के विशेषाधिकार को चुनौती दी है. याचिका में कहा गया है कि सीजेआई इस अधिकार का मनमाना इस्तेमाल नहीं कर सकते. सीजेआई पांच वरिष्ठतम न्यायाधीशों जिसे कोलेजियम कहा जाता है, के परामर्श से पीठों का गठन और कार्य आवंटन करें.
कोलेजियम नहीं तय कर सकती रोस्टर
शुक्रवार को मामले की सुनवाई कर रहे न्यायमूर्ति एके सीकरी व अशोक भूषण की पीठ प्रथम दृष्टया शांति भूषण की ओर से दी गई दलीलों से सहमत नहीं हुई.
जस्टिस सीकरी ने शांति भूषण के वकील दुष्यंत दवे से कहा, अगर ऐसा होगा तो कोलेजियम को रोज या फिर सप्ताह में दो से तीन बार बैठक करनी होगी. यह व्यवहारिक नहीं है.
इस पर दवे ने कहा, सामान्यत: मामलों का आवंटन रजिस्ट्रार कंप्यूटराइज प्रणाली से ही करते हैं, लेकिन कुछ संवेदनशील मामलों के आवंटन में यह प्रक्रिया अपनाई जानी चाहिए.
तय हो चुका कि सीजेआई ही मास्टर ऑफ रोस्टर
सुप्रीम कोर्ट ने कहा,यह फैसला आ चुका है कि प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) ही मास्टर ऑफ रोस्टर हैं. मामलों की सळ्नवाई के लिए पीठ गठित करना उनका विशेषाधिकार है.
इस पर दळ्ष्यंत दवे की दलील थी कि यह अधिकार निष्पक्ष और न्यायोचित होना चाहिए. याचिका के साथ कई ऐसे मामलों के उदाहरण दिए गए हैं जिसमें पीठों का गठन सही नहीं है.
कोर्ट ने पूछा, यह कैसे तय होगा कि कौन सा मामला संवेदनशील है और कौन सा नहीं. किसी भी मामले को लेकर अलग-अलग विचार हो सकते हैं.
पीठ ने कहा,रोस्टर तय करने के तरीके के बारे में आप सुझाव दे सकते हैं. यह ठीक है कि कोई भी अधिकार मनमाना नहीं हो सकता इसीलिए हर फैसले की न्यायिक समीक्षा की व्यवस्था है. प्रत्येक जज का कर्तव्य है कि वह संविधान और कानून का संरक्षण करे.
जजों की प्रेस कांफ्रेंस का मामला उठाने से रोका
शांति भूषण के वकील दळ्ष्यंत दवे ने जब सुप्रीम कोर्ट के चार वरिष्ठ जजों की प्रेस कांफ्रेंस का हवाला दिया तो पीठ ने उन्हें बीच में ही रोकते हुए कहा,वह इसकी चर्चा न करें.
कोर्ट इस पर सुनवाई और विचार नहीं करेगा जो मामला सामने है उसी पर बहस करें. दवे के साथ कपिल सिब्बल ने कहा, एक व्यक्ति में शक्ति निहित होना ठीक नहीं है. यह स्वीकार्य नहीं है.