माओवादी :  हद दर्जे के नीच, गद्दार, देशद्रोही और लोकतंत्र विरोधी 

अरविदं जयतिलक ( वरिष्ठ पत्रकार )

पिछले दिनों भीमा कोरेगांव हिंसा मामले में गिरफ्तार आरोपियों में से एक माओवादी नेता रोना जैकब विल्सन के घर से बरामद पत्र से यह खुलासा हुआ कि माओवादी पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी की तरह प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या की साजिश बुन रहे थे।
रेखांकित करने के लिए पर्याप्त है कि माओवादी व्यवस्था परिवर्तन के नुमांइदे नहीं बल्कि हद दर्जे के नीच, गद्दार, देशद्रोही और लोकतंत्र विरोधी हैं। पत्र से खुलासा हुआ है कि माओवादी आत्मघाती हमले के जरिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की हत्या करना चाहते थे।
अदालत में पेश यह पत्र किसी कामरेड प्रकाश को संबोधित है लेकिन पत्र भेजने वाले ने अपना परिचय सिर्फ ‘आर’ के रुप में दिया है। बहरहाल यह ‘आर’ कौन है यह तो जांच के बाद ही पता चलेगा लेकिन राहत की बात है कि माओवादी अपनी कारस्तानी को अंजाम देने से पहले ही धर-दबोच लिए गए।
माओवादियों ने अपने पत्र में खुलासा किया है कि अगर वे आत्मघाती हमले के जरिए मोदी की हत्या को अंजाम देते हैं तो इसका संदेह संदेह आतंकियों की ओर जाएगा न कि उनकी तरफ। इस तरह वे अपने मकसद में कामयाब हो जाएंगे। माओवादियों के मन- मस्तिष्क में किस कदर विष भरा है. उसका अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि उन्होंने अपने लिखे पत्र में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को फांसीवादी कहा है और देश को अस्थिर करने के लिए आधुनिक हथियार खरीदने की इच्छा जतायी है।

इस साजिश के खुलासे से स्पष्ट है कि माओवादियों का दुस्साहस चरम पर है। साजिश के सूत्रधार जिन पांच देशद्रोही देशद्रोही माओवादियों की गिरफ्तारी हुई है। उसमें रोना जैकब विल्सन के अलावा सुरेंद्र गडलिंग, महेश राउत, प्रोफेसर शोमा सेन और सुधीर धवले शामिल हैं।

 ध्यान देना होगा कि सभी पांचों माओवादियों की गिरफ्तारी मुंबई और नागपुर जैसे बड़े महानगरों से हुई है जो रेखांकित करता है कि माओवादियों की पैठ अब गांवों तक सीमित नहीं रह गयी है बल्कि वे शहरों की ओर भी रुख करने लगे हैं। बिडंबना यह कि उन्हें पढ़े-लिखे तथाकथित बुद्धिजीवी कहलाने वाले लोगों का उन्हें समर्थन मिल रहा है जो बेहद ही चिंताजनक है।
याद होगा अभी गत वर्ष ही दिल्ली विश्वविद्यालय में अंग्रेजी के प्रोफेसर जेएन साईबाबा समेत छः लोगों को उम्र कैद की सजा सुनायी गयी। उन सभी पर माओवादियों को मदद पहुंचाने का आरोप लगा और अदालत ने भी पाया कि प्रोफेसर साईबाबा का वरिष्ठ माओवादी नेताओं से संपर्क था और वे माओवादियों को गुप्त सूचनाएं देते थे।
देश-विदेश में घूमकर माओवाद की वकालत और सुरक्षा बलों के खिलाफ दुष्प्रचार करते थे। उचित होगा कि ऐसे लोगों को कतई बख्शा न जाए जो देश विरोधी खतरनाक विचारधारा के समर्थक हैं और देश को अस्थिर करने में लगे हैं।
यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के कुछ सियासी दल अभी भी माओवादियों की पैरोकारी में जुटे हैं और गिरफ्तार किए गए पांचों माओवादियों को निर्दोष बता रहे हैं। ऐसी ही पैरोकारी उस समय भी कर रहे थे जब दिल्ली विश्वविद्यालय के प्रोफेसर जेएन साईबाबा की गिरफ्तारी हुई। सियासी दलों का यह रवैया उचित नहीं है। उन्हें समझना होगा कि उनके इस रवैये से से देश की संप्रभुता कमजोर होगी और लोकतंत्र को आघात पहुंचेगा। साथ ही देश के शीर्ष नेताओं पर खतरा मंडराता रहेगा।
दुर्भाग्यपूर्ण है कि देश के प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस द्वारा माओवादियों से बरामद पत्र को शिगूफा करार दिया जा रहा है जबकि उसे ध्यान रखने की जरुरत है कि गत वर्ष पहले माओवादियों ने छत्तीसगढ़ राज्य के सुकमा में हमला बोल उसके कई नेताओं को मौत की नींद सुला दिया था।
उचित होगा कि कांग्रेस सकारात्मक रुख दिखाए न कि ओछी सियासत करे। ऐसा संभव है कि इन माओवादियों का संबंध अंतर्राष्ट्रीय माफियाओं से जुड़ा हो। यह भी संभव है कि अंतर्राष्ट्रीय तत्व सशक्त भारत से भयभीत और विचलित हों और वे माओवादियों के जरिए सशक्त प्रधानमंत्री मोदी की हत्या  करा देश को अस्थिर और कमजोर करना चाहते हों। जो सबसे खतरनाक बात है वह यह कि अब माओवादियों का संबंध आतंकियों से भी जुड़ने लगा है।
पूर्वोत्तर के आतंकियों से उनके रिश्ते-नाते पहले ही उजागर हो चुके हैं। पूर्वोत्तर के आतंकी संगठन पीएलए द्वारा माओवादियों के प्रशिक्षण की बात देश के सामने उजागर हो चुकी है। गौरतलब है कि पीएलए पूर्वोत्तर का एक हथियार बंद आतंकी संगठन है जिसका उद्देश्य संघर्ष के माध्यम से मणिपुर को स्वतंत्र कराना है।
माओवादियों से उनकी निकटता से साफ है कि उनका उद्देश्य महज मणिपुर की स्वतंत्रता तक सीमित नहीं है। वे माओवादियों से हाथ मिलाकर देश में अराजकता कायम करना चाहते हैं। आपको याद होगा कि गत वर्ष पहले आंध्र प्रदेश पुलिस बल और केंद्रीय सुरक्षा एजेंसियों ने एक संयुक्त कार्रवाई में आधा दर्जन ऐसे लोगों की गिरफ्तारी हुई थी जो माओवादियों को लाखों रुपए दिए थे।
खबर तो यहां तक थी कि पाकिस्तान की खुफिया एजेंसी आइएसआइ माओवादियों तक अपनी पहुंच बनाने के लिए अंडरवर्ल्ड की मदद से उन्हें आर्थिक मदद दे रही है। यह भी साबित हो चुका है कि  माओवादियों के राष्ट्रविरोधी कृत्यों में नेपाली माओवादियों से लेकर पाकिस्तान प्रायोजित आतंकी संगठन भी रुचि ले रहे हैं।
ध्यान रखना होगा कि गत वर्ष पहले भी आईएसआई और माओवादियों का नागपुर कनेक्शन देश के सामने उजागर हो चुका है। उचित होगा कि जांच एजेंसियां इस बात की पड़ताल करें कि नागपुर से गिरफ्तार माओवादी नेता रोना जैकब विल्सन का रिश्ता-नाता पाकिस्तान की खुफिया एजेसी आईएसआई से तो नहीं हैं? चूंकि माओवादियों के पास बड़ी मात्रा में चीन व पाकिस्तान निर्मित हथियार उपलब्ध हैं, ऐसे में इस संभावना को बल मिलता है कि ये उनके मोहरे बने हों।
यहां ध्यान रखना होगा कि माओवादियों की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी से चिढ़ यों ही नहीं है। दरअसल माओवादी नहीं चाहते हैं कि प्रधानमंत्री मोदी आदिवासी समाज को राष्ट्र की मुख्य धारा से जोड़ें। याद होगा गत माह पहले प्रधानमंत्री ने छत्तीसगढ़ राज्य में माओवादियों के गढ़ दंतेवाड़ा में जाकर यहां के लोगों को विकास की मुख्य धारा में सम्मिलित करने का आवाह्न किया था।
उनके इस कदम की आम आदिवासी जन ने भूरि-भूरि प्रशंसा की थी जबकि माओवादी आगबबूला हुए थे। प्रधानमंत्री ने माओवादियों की संवेदनाओं को झकझोरते हुए कहा था कि वे हिंसा का रास्ता त्यागकर शांति की राह अपनाएं। उन्होंने माओवादियों के पत्थर दिल पर वार करते हुए उन बच्चों का वास्ता दिलाया जो माओवादी हिंसा में अपने मां-बाप को गंवा चुके हैं।
उन्होंने माओवादियों को चुनौती देते हुए कहा कि अगर माओवादी ऐसे बच्चों के बीच सिर्फ पांच दिन गुजारें तो उन्हें पता चल जाएगा कि हिंसा से किसी समस्या का हल निकलने वाला नहीं है। यहां ध्यान रखना होगा कि माओवाद के केंद्र बन चुके छत्तीसगढ़ राज्य में विकास की गंगा बहने से भी माओवादी भन्नाए हुए हैं।
गौरतलब है कि इस इलाके के विकास के लिए 24 हजार करोड़ रुपए की परियोजनाओं पर काम चल रहा है। ये समझौत छत्तीसगढ़ सरकार, केंद्र सरकार, स्टील अथाॅरिटी आॅफ इंडिया और नेशनल मिनरल डेवलपमेंट के बीच हुए हैं। इन समझौते के तहत बस्तर में एक अल्ट्रा मेगा स्टील प्लाट, रावघाट से जगदलपुर तक रेललाइन का निर्माण, किरंदुल से नगरनार में पैलेट प्लांट का निर्माण प्रस्तावित है।
माओवादियों के मन में डर समा गया है कि अगर परियोजनाएं परवान चढ़ी तो तो रोजगार के अवसर बढेंगे और स्थानीय युवाओं का माओवाद से मोहभंग होगा। यह तथ्य है कि माओवादी इस क्षेत्र में रह रहे आदिवासी लोगों एवं काम करने वाली कंपनियों से रंगदारी वसूलते हैं।
तथ्य यह भी है कि माओवादी नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में चलने वाली कल्याणकारी योजनाओं का बड़ा हिस्सा अपनी जेब में डाल रहे हैं और वे इस धनराशि से हथियार व गोला-बारुद खरीदकर राष्ट्र के खिलाफ युद्ध छेड़े हुए हैं। कहना गलत नहीं होगा कि नक्सली सामाजिक परिवर्तन के नुमाइंदे और आार्थिक समानता के पैरोकार नहीं बल्कि हद दर्जे के लूटेरे और मातृभूमि के साथ घात करने वाले देशद्रोही हैं जिन्हें सख्त से सख्त सजा मिलनी चाहिए।
चूंकि माओवादी पहले ही कह चुके हैं कि उनका संविधान व शासन में विश्वास नहीं है लिहाजा सरकार को यह बात अच्छी तरह से समझ में आ जाना चाहिए कि माओवाद के फन को सिर्फ ताकत के बल पर ही कुचला जा सकता है।
Advertisements