द्रविण राजनीति के एक युग का अंत, नहीं रहे…..कलाईनार

एनटी न्यूज़ / लखनऊ डेस्क / योगेश मिश्र

तमिलनाडु के पांच बार मुख्यमंत्री रहे एम करुणानिधि का आज 6 बजकर 10 मिनट पर चेन्नई के कावेरी अस्पताल में निधन हो गया. करुणानिधि एक अजेय राजनेता माने जाते रहे हैं. वो 94 साल के थे. उनकी सेहत पर विशेषज्ञ डॉक्टरों का पैनल लगातार नजर बनाए हुए थे.

इकट्ठा हो गए थे भारी संख्या में समर्थक

इस बीच भारी संख्या में करुणानिधि के समर्थक और पार्टी के कार्यकर्ता कावेरी अस्पताल के बाहर इकट्ठा हो गए थे. एम. मात्र 14 साल की उम्र में राजनीति के मैदान में उतरे करुणानिधि को आज तक सियासत की पिच पर कोई भी हरा नहीं पाया था. द्रविड़ आंदोलन से अपनी पहचान बनाने वाले करुणानिधि ने तमिल फिल्म इंडस्ट्री में खास मुकाम हासिल किया था.

पूरी तमिलना़डु डूबा शोक में

करुणानिधि के पार्थिव शरीर को गोपालपुरम ले जाया जाएगा. बुधवार सुबह राजाजी हॉल में अंतिम दर्शन के लिए रखा जाएगा शव..

डीएमके समर्थकों की संख्या को देखते हुए तमिलनाडु में पुलिस हाई अलर्ट पर…

तमिलनाडु में बुधवार को छुट्टी घोषित कर दी गई है. थिएटर बंद कर दिए गए हैं.

तमिल सुपरस्टार रजनीकांत ने करुणानिधि के निधन पर जताया शोक. कहा, यह उनके जीवन का सबसे काला दिन…

पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी चेन्नै के लिए रवाना होने वाली हैं…

करुणानिधि ने 1969 में पहली बार राज्य के मुख्यमंत्री का पद संभाला था, इसके बाद 2003 में आखिरी बार मुख्यमंत्री बने थे…

करुणानिधि के नाम हर चुनाव में अपनी सीट न हारने का रिकॉर्ड भी है,उन्होंने जिस भी सीट पर चुनाव लड़ा हमेशा जीत हासिल की…

3 जून को करुणानिधि ने अपना 94वां जन्मदिन मनाया था. 50 साल पहले 26 जुलाई, 1969 को उन्होंने डीएमके की कमान अपने हाथों में ली और तब से लेकर पार्टी के मुखिया बने रहे..

रोकने की कोशिश होती गई और वो…

उनकी फिल्मों और नाटकों पर ज्यों-ज्यों प्रतिबंध लगे उनकी लोकप्रियता और बढ़ती गई. सिने प्रेमियों ने उन्हें दिल में जगह दी, तो मतदाताओं ने सत्ता की कुर्सी पर बैठाया. करुणानिधि के जीवन से जुड़ी 5 खास बातें:

  1. एम करुणानिधिराजनीतिज्ञ, फिल्म पटकथा लेखक, पत्रकार के साथ-साथ तमिल साहित्यकार के रूप भी प्रसिद्ध हैं. उन्होंने कविताएं,  उपन्यास, जीवनी, निबंध, गीत आदि भी रचे हैं. उनकी लिखी हुई किताबों की संख्या सौ से अधिक है. उनके घर में भी एक लाइब्रेरी है जिसमें 10,000 से ज्यादा किताबें हैं.
  2. वर्ष 1957 में डीएमके पहली बार चुनावी मैदान में उतरी और विधानसभा चुनाव लड़ी. उस चुनाव में पार्टी के कुल 13 विधायक चुने गए. जिसमें करुणानिधि भी शामिल थे. इस चुनाव के बाद डीएमके की लोकप्रियता बढ़ती गई और सिर्फ 10 वर्षों के अंदर पार्टी ने पूरी राजनीति पलट दी. वर्ष 1967 के विधानसभा चुनावों में डीएमके ने पूर्ण बहुमत हासिल किया और अन्नादुराई राज्य के पहले गैर कांग्रेसी मुख्यमंत्री बने. हालांकि सत्ता संभालने के दो ही साल बाद ही वर्ष 1969 में अन्नादुराई का देहांत हो गया.
  3. करुणानिधि 14 साल की उम्र में ही राजनीति के मैदान पर उतर गए थे. इसकी शुरुआत हुई ‘हिंदी-हटाओ आंदोलन’ से.  वर्ष 1937 में हिन्दी भाषा को स्कूलों में अनिवार्य भाषा की तरह लाया गया और दक्षिण में इसका विरोध शुरू हो गया. करुणानिधि ने भी इसकी खिलाफत शुरू कर दी. कलम को हथियार बनाते हुए हिंदी को अनिवार्य बनाए जाने के विरोध में जमकर लिखा. हिंदी के विरोध में और लोगों के साथ रेल की पटरियों पर लेट गए और यहीं से उन्हें पहचान मिली.
  4. हिंदी विरोधी आंदोलन के बाद करुणानिधि का लिखना-पढ़ना जारी रहा और 20 वर्ष की उम्र में उन्होंने तमिल फिल्म उद्योग की कंपनी ‘ज्यूपिटर पिक्चर्स’ में पटकथा लेखक के रूप में अपना करियर शुरू किया था. अपनी पहली फिल्म ‘राजकुमारी’ से ही वे लोकप्रिय हो गए. उनकी लिखीं 75 से अधिक पटकथाएं काफी लोकप्रिय हुईं. यही वजह है कि भाषा पर महारत रखने वाले करुणानिधि को उनके समर्थक ‘कलाईनार’ यानी कि “कला का विद्वान” भी कहते हैं.
  5. एम. करुणानिधि कोयंबटूर में रहकर व्यावसायिक नाटकों और फिल्मों के लिए स्क्रिप्ट लिख रहे थे. कहा जाता है कि इसी दौरान पेरियार और अन्नादुराई की नजर उन पर पड़ी. उनकी ओजस्वी भाषण कला और लेखन शैली को देखकर उन्हें पार्टी की पत्रिका ‘कुदियारासु’ का संपादक बना दिया गया. हालांकि इसके बाद 1947 में पेरियार और उनके दाहिने हाथ माने जाने वाले अन्नादुराई के बीच मतभेद हो गए और 1949 में नई पार्टी ‘द्रविड़ मुनेत्र कड़गम’यानी डीएमके की स्थापना हुई. यहां से पेरियार और अन्नादुराई के रास्ते अलग हो गए.

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संपादनः योगेश मिश्र

साभार- एनडीटीवी इंडिया

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