हिन्दी दिवस विशेष : तटबंधों को तोड़ती हिंदी

अरविंद जयतिलक ( वरिष्ठ पत्रकार )

 

कभी गोविंदवल्लभ पंत ने कहा था कि हिंदी और नागरी का प्रचार तथा विकास कोई रोक नहीं सकता। उनकी कही बातें आज अक्षरशः सच साबित हो रही है।भाषा के तौर पर हिंदी अपने सभी प्रतिद्वंदियों को पीछे छोड़ लोकप्रियता का आसमान छू रही है और उसकी वैश्विक स्वीकार्यता लगातार बढ़ती जा रही है।

वैश्विक स्तर

वैश्विक स्तर पर यूजर्स के लिहाज से 1952 में हिंदी पांचवे पायदान पर थी, जो अस्सी के दशक में चीनी और अंग्रेजी भाषा के बाद तीसरे स्थान पर आ गयी। 1999 में मशीन ट्रांसलेशन शिखर बैठक में टोकियो विश्वविद्यालय के प्रोफेसर होजुमि तनाका द्वारा पेश नए भाषायी आंकड़ों के मुताबिक अब चीनी भाषा के बाद हिंदी दूसरे स्थान पर है। गौर करें तो विगत कुछ दशकों में हिंदी का उत्तरोतर विकास हुआ है।

अमेरिका में हिंदी 105 फीसद की रफ्तार से आगे बढ़ रही है

यह आश्चर्य नहीं जब आने वाले दिनों में हिंदी चीनी भाषा को पछाड़कर शीर्ष पर पहुंच जाए। एक आंकड़े के मुताबिक आज विश्व में 50 करोड़ से अधिक लोग हिंदी बोलते हैं और इससे कहीं ज्यादा समझते हैं। आज दुनिया के 40 से अधिक देशों के 600 से अधिक विश्वविद्यालयों और स्कूलों में हिंदी की पढ़ाई हो रही है। दुनिया के सबसे ताकतवर देश अमेरिका में हिंदी की धूम मची है। यहां 30 से अधिक विश्वविद्यालयों में भाषायी पाठ्यक्रम में हिंदी को महत्वपूर्ण दर्जा हासिल है। यही नहीं पिछले दिनों ‘लैंग्वेज यूज इन यूनाइटेड स्टेट्स-2011’ की हालिया रिपोर्ट से भी उद्घाटित हुआ कि अमेरिका में बोली जाने वाली टाॅप दस भाषाओं में हिंदी भी है और इसे बोलने वालों की संख्या 6.5 लाख से उपर है। अमेरिकी कम्युनिटी सर्वे की रिपोर्ट बताती है अमेरिका में हिंदी 105 फीसद की रफ्तार से आगे बढ़ रही है।

यूरोपिय देशों में हिंदी का तेजी से विकास

गौरतलब है कि 1815 से ही येन विश्वविद्यालय में हिंदी को पाठ्यक्रम के तौर पर स्वीकारा गया है। अमेरिका में 1875 में ही कैलाग ने हिंदी भाषा का व्याकरण तैयार किया। अमेरिका के अलावा यूरोपिय देशों में भी हिंदी का तेजी से विकास हो रहा है। इंग्लैण्ड के लंदन, कैम्ब्रिज और यार्क विश्वविद्यालयों में हिंदी को चाहने वालों की तादाद लगातार बढ़ रही है। पहले से कहीं ज्यादा पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। आज अगर प्रवासिनी, अमरदीप और भारत भवन पत्र-पत्रिकाएं अपना अस्तित्व बनाए हुए हैं और उसके पाठकों की तादाद बढ़ रही है तो यह हिंदी की बढ़ती स्वीकार्यता और लोकप्रियता का ही कमाल है।

जर्मनी के हीडलबर्ग, लोअर सेक्सोनी के लाइपजिंग, बर्लिन के हम्बोलडिट और बाॅन विश्वविद्यालय में भी हिंदी भाषा को पाठ्यक्रम के रुप में शामिल किया गया है। एक दशक से रुस के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी साहित्य पर शोध हो रहे हैं। यहां हिंदी का बोलबाला बढ़ा है। अनेक रुसी विद्वानों ने हिंदी साहित्य का अनुवाद किया है। इनमें से एक तुलसीकृत रामचरित मानस भी है जिसका अनुवाद प्रसिद्ध विद्वान वारान्निकोव द्वारा किया गया है। यह तथ्य है कि रुस में हिंदी गं्रथों का जितना अनुवाद हुआ है उतना शायद ही विश्व में किसी भाषा का हुआ हो।

हिंदी पीठ की स्थापना

जर्मन के लोग भी हिंदी को एशियाई आबादी के एक बड़े तबके से संपर्क साधने का सबसे बड़ा हथियार मानते हैं। यहां जानना जरुरी है कि जर्मनी में भारतीय भाषा संस्कृत को भी गौरव हासिल है। कई संस्कृत ग्रंथों का जर्मन भाषा में अनुवाद हुआ है। हिंदी की बढ़ती लोकप्रियता का ही आलम है कि वेस्टइंडीज के कई विश्वविद्यालयों में हिंदी पीठ की स्थापना की गयी है। एशियाई देश जापान में हिंदी भाषा का बहुत अधिक सम्मान है।

हिंदी साहित्य का अनुवाद

मजेदार बात यह भी कि जापान की यात्रा पर जाने वाले भारतीय राजनेता जापान में हिंदी भाषा में अपने विचार व्यक्त करते हैं। गत वर्ष जापान यात्रा पर गए भारतीय प्रधानमंत्री ने भी अपने विचार हिंदी में व्यक्त किए और उससे न सिर्फ जापान बल्कि विश्व बिरादरी भी प्रभावित दिखी। जापान की दो नेशनल यूनिवर्सिटी ओसाका और टोकियो में स्नातक और परास्नातक स्तर पर हिंदी की पढ़ाई की व्यवस्था है। प्रोफेसर दोई ने टोकियो विश्वविद्यालय में हिंदी विभाग की स्थापना की है। रुस की तरह जापान में भी हिंदी साहित्य का अनुवाद हुआ है।

सेवाग्राम में रहकर हिंदी सीखी

प्रोफेसर तोबियोतनाका ने भीष्म साहनी के उपन्यास तमस का जापानी में अनुवाद किया है। प्रोफेसर कोगा ने ‘जापानी-हिंदी कोष’ की रचना की है। उन्होंने गांधी जी की आत्मकथा का भी जापानी में अनुवाद किया है। प्रोफेसर मोजोकामी हर वर्ष हिंदी का एक नाटक तैयार करते हैं और उसका मंचन भारत में करते हैं। महात्मा गांधी और टैगोर के अनन्य भक्तों में से एक साइजी माकिनो जब भारत आए तो हिंदी के रंग में रंग गए। उन्होंने गांधी जी के सेवाग्राम में रहकर हिंदी सीखी।

जलवा कायम

गौर करने वाली बात यह कि जापान और भारत का लोकसाहित्य समान है। मणिपुर और राजस्थान की लोककथाएं जापान की लोककथाओं जैसी है। गुयाना और माॅरिशस में भी भारतीय मूल के लोगों की संख्या सर्वाधिक है। यहां प्राथमिक स्तर से लेकर स्नातक स्तर पर हिंदी के पठन-पाठन की समुचित व्यवस्था है। मारीशस में अंग्रेजी राजभाषा है। फ्रेंच बोलने वालों की तादात अच्छी है। लेकिन हिंदी की लोकप्रियता में कमी नहीं है। यहां बहुत पहले ही हिंदी सचिवालय की स्थापना हो चुकी है और ढेरों हिंदी पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है। इसी तरह फिजी, नेपाल, भूटान, मालदीव और श्रीलंका में भी हिंदी का जलवा कायम है।

प्रचार-प्रसार

विगत वर्षों में खाड़ी देशों में हिंदी का तेजी से प्रचार-प्रसार हुआ है। वहां के सोशल मीडिया में हिंदी का दखल बढ़ा है और कई पत्र-पत्रिकाओं को आॅनलाइन पढ़ा जा रहा है। संयुक्त अरब अमीरात में हिंदी एफएम चैनल लोगों का मनोरंजन कर रहे हैं। नए-पुराने हिंदी गीतों को चाव से सुना जा रहा है। हिंदी फिल्मों ने भी यहां धूम मचा रखी है। बालीवुड स्टार अपनी फिल्मों के प्रचार-प्रसार के लिए अकसर इन देशों में शो आयोजित करते हैं। पिछले कुछ वर्षों से दुबई में लगातार हिंदी कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है जो अपने-आप में एक बड़ी उपलब्धि है।

उपलब्धि

हिंदी भाषा की यह असाधारण उपलब्धि कही जाएगी कि जिन देशों में भाषा को विचारों की पोषाक और राष्ट्र का जीवन समझा जाता है वहां भी हिंदी तेजी से अपना पांव पसार रही है। गौरतलब है कि हंगरी, बुल्गारिया, रोमानिया स्विटजरलैंड, स्वीडन, फ्रांस, नार्वे, जापान, इटली, मिस्र, कजाकिस्तान, तुर्केमेनिस्तान, कतर और अफगानिस्तान, रुस और जर्मनी अपनी भाषा को लेकर बेहद संवेदनशील हैं। वे इसे अपनी सांस्कृतिक अस्मिता से जोड़कर देखते हैं। लेकिन इन दशों में हिंदी को भरपूर स्नेह और सम्मान मिल रहा है। यह हिंदी भाषा के लिए बड़ी उपलब्धि है।

सार्वभौमिक सच

आज दुनिया का कोई ऐसा कोना नहीं जहां भारतीयों की उपस्थिति न हो और वहां हिंदी का तेजी विस्तार न हो रहा हो। एक आंकड़ें के मुताबिक दुनिया भर में ढ़ाई करोड़ से अधिक अप्रवासी भारतीय 160 से अधिक देशों में रहते हैं। यह सुखद है कि वह अपनी भाषा व संस्कृति से जुड़े हैं और हिंदी के फैलाव में योगदान कर रहे हैं। गौर करें तो बहुराष्ट्रीय देशों की कंपनियां भी अपने-अपने देशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए सरकारों पर दबाव बना रही हैं। दरअसल उनका मकसद हिंदी के जरिए एशियाई देशों में अपनी व्यपारिक गतिविधियों को बढ़ाना है। यह स्वीकारने में हिचक नहीं कि बाजार ने भी हिंदी की स्वीकार्यता को नई उंचाई दी है। यह सार्वभौमिक सच है कि जो भाषाएं रोजगार और संवादपरक नहीं बन पाती उनका अस्तित्व खत्म हो जाता है।

दुनिया भर में तकरीबन 6900 मातृभाषाएं बोली जाती हैं

एक अनुमान के मुताबिक दुनिया भर में तकरीबन 6900 मातृभाषाएं बोली जाती हैं। इनमें से तकरीबन 2500 मातृभाषाएं अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं। इनमें से कुछ को ‘भाषाओं की चिंताजनक स्थिति वाली भाषाओं की सूची’ में रख दिया गया है। दुनिया भर में तकरीबन दो सैकड़ा ऐसी मातृभाषाएं हैं जिनके बोलने वालों की तादाद महज दस-बारह है। आज अगर मैक्सिकों की अयापनेको, उक्रेन की कैरेम, ओकलाहामा की विचिता, इंडोनेशिया की लेंगिलू भाषा अपने अस्तित्व के संकट से गुजर रही हैं तो इसका मूलकारण यही है कि वह रोजगारपरक तथा संवाद की भाषा नहीं बन सकी हैं। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर हिंदी की चमक प्रमाणित करती है कि संसार में उसकी प्रतिष्ठा और उपादेयता बढ़ी है और वह तेजी से वैश्विक भाषा बन रही है।

 

                                                                                                    (लेखक स्वतंत्र टिप्पणीकार है । यह लेखक के निजी विचार है) 

 

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