एनटी न्यूज़ / योगेश मिश्र / लखनऊ
योगी सरकार द्वारा पेश हुए तीसरे बजट को राष्ट्रीय किसान मंच ने किसानों को छलने वाला बताया है. राष्ट्रीय किसान मंच के राष्ट्रीय अध्यक्ष शेखर दीक्षित ने इस बजट को सरकार द्वारा पेश आंकड़ों की बाजीगरी करार दिया है.
किसानों की हालत खस्ता, सरकार ने मजाक किया…
उन्होंने कहा कि जहां एक तरफ़ 500 करोड़ रुपए किसानों के चीनी मिल दबाए बैठी हैं वहीं सरकारी मिलों की हालत ख़स्ता है. योगी जी को फिर से याद दिलवाना चाहेंगे कि 14 दिनों में गन्ना भुगतान का वायदा किया गया था परन्तु किसानों की हालत अभी भी खस्ता है. किसान जगह-जगह आत्महत्या करने को मज़बूर है. बिजनौर में ऐसा कुछ दिन पहले ही देखने को मिला और 50 करोड़ में बन्द चीनी मिलों मे यह क्या करेंगे जबकि देनदारियाँ बहुत ज़्यादा है. बन्द चीनी मिलें पी पी पी प्रोजेक्ट पर 25 करोड़ शायद मज़ाक़ जैसा है. जब तक सरकार ज़मीन पर किसानों के लिए रोड मैप नहीं तैयार करवा पाएगी गन्ना किसानों के लिए ऐसे बजट छलावा जैसे ही होंगे.
टाटा या रिलायंस का होगा लाभ…
शेखर दीक्षित ने आगे कहा कि इंश्योरेंस के लिए 450 करोड़ टाटा को ईनाम के रूप मे देंगे या फिर रिलायंस को. जब कि फ़सल बीमा पर इतना रुपया ख़र्चा होने के बावजूद आम किसान लाभ से दूर है और कंपनियों की बल्ले-बल्ले है.
सरकार विज्ञापन करके खुद का करेगी महिमामंडन
सरकार के विज्ञापन करने के तरीके को आड़े हाथों लेते हुए दीक्षित ने कहा, कृषि विकास में भी 892 करोड़ विज्ञापन में ख़र्चा करके बतलाते हैं कि हमने क्या किया. सिर्फ़ सरकार ख़ुद का महिमा मंडन करती है और किसानों से काफ़ी दूर, उर्वरकों के 50 किलो की बोरी हो 45 किलो में बदलकर पहले ही किसानों को बेवक़ूफ़ और आंकड़ों से संतुष्ट करने में सरकारी तंत्र व्यस्त है ऐसे में आम किसान को लाभ कम हो रहा है और किसानी अब घाटे का सौदा ज़्यादा होती जा रही है.
योगी जी! बंद करवाइए बंदरबांट…
उन्होंने कहा कि गेहूं की ख़रीद पर मंच पहले ही कई सबूत दे चुका है कि किस तरीक़े से बन्दर बांट बिचौलियों और सरकारी तन्त्र में फंसकर किसान को सिर्फ़ 1400 से 1450 तक का मूल्य मिल पाता है. सत्ता में आने से पहले भाजपा ने वायदा किया था कि सर्वप्रथम बिचौलिया तन्त्र का ख़ात्मा करेगी परंतु ख़ुद के नेताओं के संलिप्त होने के कारण यह सम्भव नहीं हो पाता.
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शेखर दीक्षित ने बीज के मानकों को हवाबाजी बताते हुए कहा कि बीज के मानक भी बहुत ही ख़राब हैं और समय पर कभी किसानों को प्राप्त नहीं होते, ये जगज़ाहिर है परन्तु फिर भी 77.26 लाख मैट्रिक टन की बात हवा में किए गए वायदों की तरह नज़र आती है.
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अंत में दीक्षित ने कहा कि यह बजट भी किसानों के साथ आंकड़ों की बाज़ीगरी से ज़्यादा कुछ नहीं है. जब तक सरकार ज़मीनी तन्त्र सही नहीं करेगी बिचौलियों और कम्पनीतंत्र पर लगाम नहीं लगाएगी तब तक पूर्व की सरकारों की तरह विपक्ष में जाने के बाद पछताएगी. अब किसान अपने हक़ों को समझने लगा है. ज्यादा दिनों तक उसको बेवक़ूफ़ नहीं बना पाएंगी.