एनटी न्यूज / साक्षात्कार / योगेश मिश्र
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर हमने एक और महिला का साक्षात्कार किया. इस साक्षात्कार में हमने आज के परिवेश को देखते हुए गांव व शहर में महिलाओं व बेटियों की स्थिति पर तुलनात्मक रूप से प्रश्न पूछे. इन प्रश्नों के जवाब शानदार मीठी भाषा और नए नजरिए के साथ हमें प्रियंका पांडेय उपाध्याय से मिले.
प्रियंका पांडेय उपाध्याय वर्तमान में राजकीय पॉलीटेक्निक लखनऊ में मास कम्युनिकेशन विभाग की व्याख्याता हैं. महिला दिवस पर इनसे खास बातचीत की न्यूज टैंक्स से योगेश मिश्र ने. पढ़िए साक्षात्कार के मुख्य अंश….
सवाल- मैम आपके नाम में दो उपनाम हैं जो बहुत गूढ़ संदेश दे रहे हैं. इसके बारे में कुछ बताएं.
जवाब- ये कहा जाता है कि बेटी दो परिवारों को जोड़ती है, वह दो परिवारों के बीच की कड़ी है. अब यदि हमने शादी के बाद पति का उपनाम अपने नाम के साथ जोड़ लिया और पिता का उपनाम हटा दिया तो ये कैसी कड़ी है. यदि ऐसा कर दिया तो फिर मैं एक कड़ी नहीं रह गई और एक पक्ष में हो गई. चूंकि मेरे रगों में खून मेरे पिता का दौड़ रहा है इसलिए मैंने उनका उपनाम ‘पाण्डेय’ और अपने पति का उपनाम ‘उपाध्याय’ रखकर ये संदेश समाज को दिया है और पिता का उपनाम भी साथ रखने में मेरे पति का पूरा सपोर्ट मिला.
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सवाल- हम बात करें बेटियों को शिक्षा देने पर तो शहर की अपेक्षा गांव अभी भी इस स्तर पर शिक्षा नहीं दी जा रही है. इस पर आपका सुझाव जो ग्रामीण माता-पिता व बेटियों को दिया जा सके?
जवाब- हमें ये सोच खत्म करनी होगी कि बेटा और बेटी के बीच अंतर है. अगर माता-पिता शिक्षित हैं तो यह सोच एक हद तक है ही नहीं. आज के जो युवा मां-बाप हैं उन्होंने एक इस सोच एकदम से खत्म किया है. शहरों में एकल परिवार होते हैं जो अपनी सोच को आगे बढ़ाने में सक्षम होते हैं वहीं ग्रामीण परिवेश की बात करें तो वहां संयुक्त परिवार होते हैं और सामाजिक दबाव अधिक होता है जिसके कारण भी माता-पिता को वहां के सामाजिक स्तर पर ही काम करना पड़ता है. उन्हीं के बीच के लोग बोलते रहते हैं कि बेटी है, इसको क्या पढ़ाना. कुछ दिनों में ये ससुराल चली जाएगी. मेरा मानना है कि माता-पिता के साथ बेटियां भी अपने पढ़ाई पर जोर दें और माता-पिता से आग्रह करें कि वह उन्हें उच्च शिक्षा दिलाएं जिससे वे अपने जीवन में किसी का बोझ न बनें.
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सवाल- आज के समय में एक ओर बेटियां जहां देश का नाम रोशन कर रही हैं वहीं दूसरी ओर किन्हीं मां-बाप की मानसिकता यह भी रहती है कि वो बेटियों को खुलने का मौका नहीं देते हैं?
जवाब- जिन घरों में शिक्षा का अभाव है वहीं ये अंकुश रहते हैं कि तुम घर के बाहर नहीं निकलोगी या ऐसे कपड़े नहीं पहनोगी. जब हम शिक्षित होते हैं तो हमारे सोचने का नजरिया बदल जाता है, हमारी विचारधारा संकुचित नहीं रह जाती और हम अपने बच्चों को, बेटियों को खुले स्तर पर जीने का माहौल प्रदान करते हैं. मैं ये कहूंगी कि मां-बाप को यह पहल करनी होगी कि उनके बच्चों को किस स्तर की आजादी मिलनी चाहिए और यही हमारा कर्तव्य भी है तथा इसी फर्ज़ को निभाते हुए हम संकीर्ण विचारधारा को जड़ से खत्म करेंगे.
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सवाल- सबका कोई न कोई आदर्श होती है या होता है. आपके कौन आदर्श हैं और उनसे क्या प्रेरणा मिली?
जवाब- जब मैं माखनलाल चतुर्वेदी पत्रकारिता विश्वविद्यालय से मॉस कम्यूनिकेशन की प्रथम वर्ष की छात्रा थी तो मैंने पहली बार ‘राखी बख्शी मैम’ (तत्कालीन दूरदर्शन की मुख्य एंकर, वर्तमान में लोकसभा टीवी में कार्यरत) को देखा. वह हमारी क्लास अटेंड करने के लिए आईं. उन्होंने जब बोलना शुरू किया तो मैं उनकी आवाज से बहुत प्रभावित हुई. एक कक्षा में उन्होंने मुझे बुलेटिन पढ़ने के लिए कहा और जब मैंने बुलेटिन पढ़ा तो उन्होंने कहा बेटा तुम्हारी आवाज बहुत अच्छी है, तुम अपनी आवाज पर अगर थोड़ा-सा काम करोगे तो बहुत आगे जाओगे. उन्होंने कहा कि बेटा कभी भी घमंड मत करना. मैंने उनका बहुत अनुसरण किया.
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एक और मैम हैं, ‘जयश्री मैम’ (दूरदर्शन समाचार में कैमरापर्सन) उनका भी मैं खूब अनुसरण करती हूं. क्योंकि एक महिला का अपने कंधे पर कैमरा रखकर खबर कवर करने के लिए दौड़ना बहुत बड़ी या कहें महान बात है. मैंने उनसे एक बार प्रश्न किया कि मैम, एक महिला को पत्रकारिता में कैसे अग्रसर होना चाहिए, तो उन्होंने जवाब में कहा कि इस क्षेत्र में दो रास्ते होते हैं, एक गलत दिशा में जाता है जो शॉर्टकट होता है, लेकिन जिंदगी में ऐसे काम करना कि सदैव फक्र से सर उठाकर जिओ. वहीं दूसरा रास्ता कठिन होता है जिसमें मेहनत भले ही ज्यादा हो पर उससे मिली सफलता चिरकालीन होती है. मैं सदैव उनके बताए इसी दूसरे वाले रास्ते पर चली हूं और अब यही अपनी बच्चियों को भी सिखाती रहती हूं सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता.
सवाल- आप भी एक मां हैं. आप अपने सारे कामों के साथ-साथ अपनी बेटी की परवरिश भी साधे हुए हैं, तो उन माता-पिता को क्या संदेश देंगी जो बच्चे की परवरिश के लिए नौकर या आया रख देते हैं?
जवाब- ऊपरवाले ने एक स्त्री को जो सबसे कीमती चीज जो दी है, वह है मां बनने का सौभाग्य. मेरी बेटी के जन्म लेने के छः महीने पहले मैंने अपनी जॉब से अल्पविराम लिया. मैंने निर्णय लिया कि अपने मातृत्व को अच्छे से बिताऊंगी. जब बच्चा गोद में आता है तो उस सुख का, उस आनंद का अनुभव जो होता है वह अतुलनीय, अद्वितीय व अविस्मरणीय होता है. मुझे नहीं लगता कि ऐसे क्षण को छोड़कर हमें पैसे के पीछे भागना चाहिए. पैसा जरूरी है, पैसा बहुत कुछ है और पैसा सबकुछ है भी नहीं कि इसके लिए हम अपने अंश को समय भी न दे पाएं और उसके लिए नौकर या आया की जरूरत पड़े तो फिर उस बच्चे को लाड-प्यार न दे पाना और बड़े होते बच्चे में जो सुविचारों, आचरणों और संस्कारों के बीज न बो पाना सबसे बड़ा दुर्भाग्य है. यदि आप मां-बाप के साथ रहते हैं तो बच्चे को संस्कार और लाड-प्यार तो मिलता ही रहता है साथ ही आप अपनी नौकरी भी कर पाते हैं.
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सवाल- आप अपनी ओर से बेटियों को कोई एक संदेश देना चाहेंगी?
जवाब- बेटियों को यही कहूंगी कि तुम अबला नहीं सबला हो. कोई बेचारी कहे तो उसे नजरअंदाज करो. अधिक से अधिक शिक्षित बनो. इस समाज को आईना दिखाओ और समाज की सोच बदल दो.