सलाम, जब इस इंस्पेक्टर ने अपने बेडसीट को बना दिया कफ़न

एनटी न्यूज / विशेष डेस्क

थका मांदा रात्रि 2:30 पर थाने की तरफ आ रहा था कि थाने के मुंशी ने फोन पर बताया कि सर फलाने जगह जल्दी जाइए।

अक्सर हम लोग पुलिस को छोटी- छोटी बातों पर दोषी ठहरा देते हैं। लेकिन ऐसा करना अपराध है। क्योंकि अगर पुलिस संवेदनहीन हो जाये तो यकीन मानिए अराजकता व्याप्त हो जाएगी। हमें यह महसूस करना होगा कि पुलिस के भी परिवार है, उनके भी बच्चे टकटकी लगाए अपने पापा के इंतज़ार में बैठे होंगे। पुलिस अपने परिवार से दूर अपने कर्तव्य निर्वाहन में जुटी रहती है। हम आपको एक पुलिस इंस्पेक्टर की आपबीती बताने जा रहे हैं, जो कफ़न न मिलने पर अपनी बेडसीट को कफ़न में बदल देता है, वही बेडसीट जो सकून कि नींद उसको प्रदान करती है। प्रयागराज में तैनात इंस्पेक्टर अरुण चतुर्वेदी की आपबीती। हम जरूर कहेंगे पुलिस तुम पर हमे गर्व है।

इंस्पेक्टर अरुण चतुर्वेदी

क्या कहते हैं इंस्पेक्टर अरुण चतुर्वेदी

इस बार होली का रंग कुछ फीका रहा। दोपहर 2:00 बजे के लगभग वायरलेस सेट ने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र सोरांव पहुंचने को कहा ,वहां जाकर देखा कि 2 मोटरसाइकलो की आमने सामने की टककर में 7 लड़के घायल अवस्था में अस्पताल के बरामदे में बेहोश। डॉक्टर को चिल्लाकर तेजी से घायलों का इलाज शुरू करा कर हॉस्पिटल के बरामदे में आया तो एक 40 वर्षीय महिला मेरे दोनों हाथों को अपने हाथों से पकड़ते हुए बोली -साहब मेरा सोनू कैसा है ,सुनते ही कलेजा मुंह को आ गया ,सोनू को तो अभी मैं हॉस्पिटल के एक बेड की सफेद चादर में लपेट कर ,(होली में कपड़ों की दुकान बंद थी )हॉस्पिटल के एक कोने में रख कर आ रहा था ।मैंने रुखाई से जवाब दिया– सोनू ठीक है, आप 1 घंटे बाद उससे मिल सकती हैं। मैं फिर घायलों के पास पहुंचा तो डॉक्टर ने हाथ खड़े करते हुए घायलों को तत्काल मेडिकल कॉलेज ले जाने को कहा। गाड़ी का प्रबंध करने दुबारा बरामदे में आया तो वहीं महिला असमंजस में दोनों हाथों की हथेलियों को आपस में रगड़ते हुए आंखों में आंसू भरे फिर पूछ बैठी- साहब अब मेरा सोनू कैसा है ?तो मैंने अपनी भावनाओं पर काबू रखते हुए बाएं हाथ से उसके सिर पर सहलाते हुए कोमल आवाज में बोला– सोनू ठीक है, अचानक– हे भगवान –और एक घुटी चीख के साथ वह मेरी बाहों में झूल गई। हक्का-बक्का मैं महिला सिपाही की सहायता से उसे वहीं जमीन पर लिटा कर चेहरे पर पानी के छींटे मार कर होश में लाया।

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अपनी सफेद बेडशीट मंगवा कर उसी में मिश्रा जी को सील सर्व मोहर कर चीरघर भेज दिया।

बाद में मेरी समझ में आया कि मेरी अचानक प्रकट की गई आत्मीयता ने एक असहाय मां की छठी इंद्रिय ने उसे सब कुछ बता दिया था। आखिर वो मां जो थी। घायलों को प्राइवेट गाड़ी बुलाकर मेडिकल कॉलेज और सोनू को उसकी मां के सामनेअस्पताल के बेड की सफेद चादर में सिल कर( कफन नहीं मिला क्योंकि होली पर कपड़ों की दुकान बंद थी )पोस्टमार्टम हाउस भेज कर थाने में आकर खड़ा हुआ की शाम 7:10 पर वायरलेस ने चीखकर मुझे फाफामऊ शांतिपुरम पहुंचने का आदेश दिया ।वहां पर जाकर देखा तो एक मिश्रा जी 7 महीना पहले एक लड़की से प्रेम विवाह करके उसी के दुपट्टे से पंखे से झूलते हुए मिले ।लड़की से कारण पूछा –लड़की ने बताया कि सर आज होली के दिन गुझिया में थोड़ी सूजी भी मिला दी थी इसी बात पर झगड़ा हुआ और मैं किचन में दोबारा खोये की गुझिया बनाने गई और ये यह कांड कर बैठे। मैंने उसकी शारीरिक हालत देखते हुए महिला कांस्टेबल से बोला की पता करो ये कितने महीने की पेट से है? तो महिला कांस्टेबल ने थोड़ी देर बाद बताया कि सर ये 6 महीने की गर्भवती है ।अब रात 10:00 बजे कफन कहां से लाऊं? तो एक सिपाही को भेज कर अपनी सफेद बेडशीट मंगवा कर उसी में मिश्रा जी को सील सर्व मोहर कर चीरघर भेज दिया।

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देर से ही सही- हैप्पी होली

थका मांदा रात्रि 2:30 पर थाने की तरफ आ रहा था कि थाने के मुंशी ने फोन पर बताया कि सर फलाने जगह जल्दी जाइए। बताये पते पर पहुंचा तो देखा कि 45 वर्षीय एक पांडे जी ज्यादा दारू पीने पर बाप की डांट से आहत होकर सल्फास पी बैठे हैं । हे भगवान, सबसे बड़ी समस्या -अब कफन कहां से लाऊं ?अचानक पुलिसिया दिमाग ने देखा कि पांडे जी धोती पहने हैं ,तुरंत उन्ही के घर से उन्ही की सफेद धोती मंगाकर उसी में उन्हें सिल कर सर्व मोहर करके चीरघर भेज दिया। हां एक बात और– इन्हीं घटनाओं के मध्य कुछ लोग अपनी बदतमीजी की वजह से ,मेरे समाज सुधारक यंत्र का शिकार होकर अपने शरीर पर पड़े पट्टों का इलाज करा रहे हैं। यही रही मेरी होली के दिन की 24 घंटे की दिनचर्या ।इतनी घटनाओं के बाद भी मैंने होली के दूसरे दिन ,पुलिस के लिए निर्धारित पुलिस की होली पर अपने चेहरे पर रंग क्यों लगाया??दरअसल हम उत्तर प्रदेश के पुलिस वाले अब आये-दिन ऐसी घटनाओं के आदी हो चुके हैं। मेरा पुलिस विभाग हमारी संवेदनाओं की हत्या कर रहा है, और इस हत्या का असली गुनाहगार हमारा पुलिस विभाग नहीं बल्कि हमारा समाज है। देर से ही सही- हैप्पी होली।

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