राहों में काटें हो अगर रुकना नही चलते जाना- आईपीएस अजय पाल शर्मा
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एनकाउंटर सिर्फ बुलेट प्रूफ जैकेट पहनने से उतारने तक का ही सफर नही होता
अपराधियों का सामना करते हुए किए गए एनकाउंटर पर कई बार लोगों के सुझाव सोशल मीडिया के माध्यम से पहुंचते रहते हैं ।कई बार ऐसा हुआ कि किसी अपराधी के पैरों में गोली लगी तो लोगों ने सलाह दी सर उड़ा देते ,भेजा उड़ा देते ,वही मार देते, फैसला ऑन द स्पॉट कर देते और कई बार कुछ लोग उस पर असलियत को अच्छाई को बिल्कुल नज़र अंदाज़ कर ऐसे टिप्पणी व विश्लेषण करते है जब कि उन में कुछ एक पटाखे की आवाज़ पर भी 5 कदम पीछे हट जाए। बहुत आसान होता है इस तरह की टिप्पणियां करना ,लेकिन इतना आसान नहीं होता किसी अपराधी के सामने गोली का जवाब गोली से देना।
कोई नहीं चाहता कि वह एनकाउंटर स्पेशलिस्ट कहलाए या एनकाउंटर मैन कहलाए। हम उसी समाज से आते हैं जिस समाज से आप सभी सभ्य लोग संबंधित हैं। हर जगह शांति चाहते हैं। हर किसी को अच्छी नजर से देखते हैं। हर किसी से अच्छा होने की उम्मीद करते हैं ।हम भी आप जैसे हैं यह हालात होते हैं जो किसी पर वार करने को मजबूर करते हैं जो असलह को हाथ में लेकर उसको चलाने के लिए मजबूर करते हैं ।इतना ही नहीं इन अपराधियों पर कार्यवाही करना इतना आसान नहीं ।राह में बहुत से कांटे आते हैं ।इन अपराधियों चाहे वह हत्या करने वाले अपराधी हों चाहे वह देश की छवि को बिगाड़ने वाले कॉल सेंटर हों ,चाहे वह नशीले पदार्थों के तस्कर हो चाहे ,वह बहनों बेटियों की इज्जत लूटने वाले दुर्दांत अपराधी हो या सफेदपोश रंगदारी मांगने वाले । इन सभी पर वार करने के बाद कहानी उतनी आसान नहीं रहती जितना फिल्मों या कहानियों में बताया या सुनाया जाता है। कहानी तो बल्कि उसके बाद शुरू होती है…… वह कहानी जो कई बार असहनीय हो जाती हैं अपराधी को खत्म करने वाले या अपराध को खत्म करने वाले व्यक्ति को अपराध बोध कराने लगते हैं यह कहानी बहुत लंबी और उलझी हुई होती है । अपराधी और अपराध के साथ लड़ने वाले पुलिस अधिकारी कभी इस जंग में कामयाब होते हैं तो कभी कामयाब नहीं भी हो पाते, लेकिन दोनों ही सूरत में अच्छी और बुरी टिप्पणियां अलग-अलग प्रतिशत में सुनने और पढ़ने को मिलती रहती हैं । बहुत कठिन होती है यह डगर जब हम किसी अपराधी से लड़ते हैं और विशेष रूप से उस अपराध से जो अपनी जड़ें बहुत गहरी तरीके से फैलाए बैठा है।हम लड़े पलायन से,हम लड़े अपने देश की साख के लिए। हम लड़ते हैं सिर्फ इस उम्मीद के साथ कि खुद को जवाब दे सके कि हमने वह किया जो समाज में बैठे हर आदमी को करना चाहिए ,समाज के बुराई से लड़ने का समाज से बुराई को खत्म करने का वह संदेश जो हर किसी को देना चाहिए ।अगर हम अपनी छोटी-छोटी जिम्मेदारियां निभाएं तो अपराध बहुत हद तक अपने आप ही खत्म हो जाएगा ।यह अपराधी कहीं बाहर से नहीं आते बल्कि हमारे ही आस-पास दिखते और घूमते रहते हैं। उम्मीद करता हूं कि जो कदम समाज को साफ करने के लिए बुराई को खत्म करने के लिए लगातार उठाए जा रहे हैं यह इसी तरह कामयाबी के पथ पर बढ़ते रहेंगे।