शैलेश चतुर्वेदी ( वरिष्ठ पत्रकार )
मिर्ज़ा ग़ालिब के नाम पर लोग न जाने क्या-क्या गढ़ते रहे हैं। आमतौर पर लोग किसी दूसरे की चीज अपने नाम पर कर लेने की कोशिश करते हैं लेकिन कबीर और ग़ालिब के लिए मामला उल्टा है। यहां दूसरों के शेर या दोहे को ग़ालिब या कबीर का बताया जाता है।
इससे शेर को ज्यादा तवज्जो मिले, शायद यह ख्वाहिश होती हो। कई बार अनजाने में गलती हो जाती है। राजनाथ सिंह ने राहुल गांधी को जवाब देते हुए गालिब के नाम का एक शेर ट्वीट किया। उसे थोड़ा बदलकर. यकीनन राजनाथ सिंह या उनकी टीम ने अनजाने में वो ट्वीट किया होगा, जो ग़ालिब का नहीं है।
उन्होंने ट्वीट किया-
मिर्ज़ा ग़ालिब का ही शेर थोड़ा अलग अन्दाज़ में है। ‘
‘हाथ’ में दर्द हो तो दवा कीजै,
‘हाथ’ ही जब दर्द हो तो क्या कीजै.. https://t.co/k1fhnI6K4N— Rajnath Singh (@rajnathsingh) June 8, 2020
मिर्ज़ा ग़ालिब का ही शेर थोड़ा अलग अन्दाज़ में है। ‘
‘हाथ’ में दर्द हो तो दवा कीजै,
‘हाथ’ ही जब दर्द हो तो क्या कीजै..
उन्होंने राहुल गांधी के जिस ट्वीट का जवाब दिया, उसमें एक शेर लिखा गया था, जाहिर है, बदलाव के साथ
राहुल गांधी ने ट्वीट किया था –
सब को मालूम है ‘सीमा’ की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को, ‘शाह-यद’ ये ख़्याल अच्छा है।https://t.co/cxo9mgQx5K— Rahul Gandhi (@RahulGandhi) June 8, 2020
सब को मालूम है ‘सीमा’ की हक़ीक़त लेकिन,
दिल के ख़ुश रखने को, ‘शाह-यद’ ये ख़याल अच्छा है।
अच्छी बात है कि राजनेता एक-दूसरे के विरोध के लिए शेर-ओ शायरी का इस्तेमाल कर रहे हैं। राहुल गांधी ने ग़ालिब के जिस शेर का इस्तेमाल तुकबंदी के तौर पर किया वो ऐसा है-
हमको मालूम है जन्नत की हकीकत लेकिन
दिल के खुश रखने को गालिब ये खयाल अच्छा है…
राजनाथ सिंह के ट्विटर हैंडल से जिस शेर का इस्तेमाल हुआ वो यूं है-
दर्द हो दिल में तो दवा कीजे
और जो दिल ही न हो तो क्या कीजे…
इसे बदलकर दिल की जगह कांग्रेस के ‘हाथ’ को निशाना बनाया गया. बस, इसमें ग़ालिब का जिक्र गलत हो गया. यह शेर मंजर लखनवी का है. जिस शायर का शेर है, उसे ही श्रेय मिलना चाहिए. वैसे भी ग़ालिब ने इतना लिखा है कि उन्हें दूसरों का श्रेय देने की जरूरत नहीं है.