एक्सक्लूसिव : 1 हजार रुपये महीने न देने पर शोध निर्देशक ने ‘दलित’ छात्र की पीएचडी कर दी निरस्त 

एनटी न्यूज़ डेस्क / वर्धा / महाराष्ट्र 

महाराष्ट्र के वर्धा स्थित महात्मा गांधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय में एक बड़ा ही गंभीर मामला सामने आया है। जिसमें शोध निर्देशक की ओर से एक दलित छात्र की पीएचडी केवल इसलिए निरस्त कर दी गयी कि उसने निर्देशक को एक हजार रुपये महीने देने से मना कर दिया।

एसटी श्रेणी में आने वाले इस छात्र को पढ़ाई में कमजोर बता दिया गया जबकि उसने इसी विश्वविद्यालय के अपने विभाग में एम.फिल. प्रथम स्थान प्राप्त किया था.

दरअसल दलित छात्र ने पिता की मौत के चलते विश्वविद्यालय से कुछ दिन का अवकाश लिया था, जिसके बाद घर से लौटकर आने पर दलित छात्र से शोध निदेशक ने एक हजार रुपये महीने देने के लिए कहा। इस पर दलित छात्र ने आर्थिक स्थिति खराब होने के चलते पैसे देने से मना कर दिया। जिसके बाद निर्देशक की ओर से इस तरह का कदम उठाया गया।

मिला उम्र भर का अवकाश

महात्मा गांधी अन्तरराष्ट्रीय हिंदी विश्वविद्यालय, वर्धा, महाराष्ट्र के दलित एवं जनजाति पाठ्यक्रम के शोधार्थी छात्र  भगत नारायण महतो को उम्र भर का अवकाश दे दिया गया. अनुसूचित जनजाति के पीएचडी शोधार्थी भगत नारायण महतो के साथ विश्वविद्यालय ने जो किया उससे वह उससे बहुत आहत हैं।

भगत नारायण मूल रूप से बिहार के पश्चिमी चम्पारण की थारू जनजाति से ताल्लुक रखते हैं। उनका प्रवेश दिसम्बर 2017 में विश्वविद्यालय में पीएचडी शोधार्थी के रूप में हुआ था और वह इसी केंद्र से एमफिल के टॉपर भी रहें हैं।  उन पर ये आरोप लगाते हुए उन्हें पीएचडी से निकाल दिया गया कि उनकी पीएचडी (अनाधिकृत रूप से अनुपस्थित एवं पंजीयन पूर्व सेमिनार प्रस्तुत न करने के कारण ) केंद्र निर्देशक प्रो. एल कारूण्यकारा की अनुशंसा पर निरस्त कर दी गयी।

अवकाश के लिए दिया था प्रार्थना पत्र

बिना किसी जाँच- परख के शोधार्थी भगत नारायण महतो का पीएचडी प्रवेश निरस्त कर दिया गया. जबकि भगत ने विश्वविद्यालय के लगाए गये आरोपों को निराधार बताते हुए कहा कि प्रवेश की तिथि एवं जब-जब उसका अवकाश स्वीकृत या अस्वीकृत हुआ उसने केंद्र निदेशक से अनुमति ली थी।

साथ ही भगत ने ये भी बताया कि उसे पूर्व सेमिनार प्रस्तुत करने के सम्बन्ध में विभाग की ओर से कोई जानकारी नहीं दी गई. जिसे किसी भी रूप में विश्वविद्यालय के कुलपति मानने को तैयार नहीं हैं।

इसके उलट उसको लापरवाह एवं पढ़ने में कमजोर छात्र के श्रेणी में रखते हुए पीएचडी प्रवेश को निरस्त बताने में लगे हए हैं जबकि कुलपति गिरिश्वर मिश्र को यह पता नहीं है कि उनके ही विश्वविद्यालय के अपने विभाग में भगत ने एमफिल में प्रथम स्थान प्राप्त  किया था।

 दुखों पर विश्वविद्यालय की मार…

भगत नारायण ने बताया कि उसके पिता की मृत्यु के बाद उसके घर की आर्थिक स्थिति लचर हो गयी. घर का बोझ उसके सिर आ गया. इसके चलते वह अलग अलग दिनों में अपने घर बिहार जाता था. जिसके लिए वह विश्वविद्यालय को बाकायदा लिखित में अवकाश के लिए प्रार्थना पत्र भी लिखता रहता था. इस बार उसके अवकाश को स्वीकृति नहीं  दी गयी, किसी कारणवश इसकी जानकारी भगत को नहीं हो पायी। लिहाजा उसका पीएचडी प्रवेश निरस्त कर दिया गया.

कारण यह था…

जिस अवकाश को आधार बनाकर छात्र भगत का प्रवेश निरस्त करने की बात की जा रही है, उस अवकाश लिए भी शोधार्थी ने 20 अप्रैल 2018 को आवेदन किया था. जिसे उसके केन्द्र निदेशक के कार्यालय की ओर से 25 अप्रैल 2018 को ई-मेल के माध्यम से अस्वीकार करने की सूचना दी जाती है। शोधार्थी के अपने गृह स्थान बिहार पहुँच जाने एवं इंटरनेट की सुविधा के अभाव के कारण विलम्ब से अवकाश निरस्त की सूचना प्राप्त होती है.

जब शोधार्थी को अवकाश निरस्त की सूचना प्राप्त होती है तो तत्पश्चात वर्धा (महाराष्ट्र) आने के लिए ट्रेन की सीट का न मिलना, आर्थिक पक्ष कमजोर और पारिवारिक समस्या के कारण विश्वविद्यालय पहुचने में विलम्ब हो जाता है. जिसके लिए शोधार्थी कुलपति से इसके लिए क्षमा मांगता है.

पीएचडी प्रवेश निरस्त दूसरे कारण में देखे तो पंजीयन पूर्व सेमिनार प्रस्तुति को आधार बनाया गया है. छात्र की जानकारी के अनुसार इस इससे सम्बन्धित किसी भी प्रकार की सूचना विश्वविद्यालय की वेबसाइट, ई-मेल के माध्यम एवं अन्य किसी भी प्रकार के संचार माध्यम से छात्र सूचना नहीं दी गई है.

विश्वविद्यालय पहुचने के उपरांत छात्र के द्वारा पंजीयन पूर्व सेमीनार प्रस्तुति के विषय में केंद्र सहायक से पता करने पर पता चला कि 2017 बैच के पीएचडी शोधार्थी का पंजीयन पूर्व सेमीनार हुआ ही नहीं है.

इस विषय को लेकर विश्वविद्यालय के छात्र पीड़ित शोधार्थी भगत नारायण महतो को लेकर दिनांक 25 मई 2018 को कुलपति से मिले तथा समस्त घटना क्रम से अवगत कराया एवं इससे सम्बंधित अपना पक्ष रखते हुए आवेदन पत्र दिया और आवश्यक कार्यवाही करने का आग्रह किया.

वसूली का मामला…

विश्वविद्यालय के इस केंद्र के निर्देशक प्रो0 एल0 कारुण्यकारा के ऊपर अवैध वसूली का आरोप लगा. जो पीडीपी (पवित्र दलित परिवार) के नाम पर प्रत्येक एम0फिल0 के छात्र से 500 रूपए प्रति माह, पीएचडी छात्र से 1000 रूपये प्रति माह एवं नेशनल फेलोशिप, आर.जी.एन.एफ. एवं जे.आर.एफ. पाने वाले छात्र से 3000 रूपये प्रति माह की अवैध वसूली करते है. जिसके बारे में विभाग में पढ़ने वाले छात्रों से नाम न बताने की शर्त पर खुलासा किया. इन सभी बातों को बेमन से कुलपति ने पूरे प्रकरण को सुना और कहा कि हम इस विषय पर 28 मई 2018 को जवाब देंगे.

कुलपति पक्षधर…

इसी क्रम में फिर से छात्र राजेश सारथी, राजू कुमार, राम सुन्दर शर्मा और अनुपम राय पीड़ित शोधार्थी के साथ कुलपति से मिलने गये तथा कार्रवाई के बारे में जानना चाहा तो कुलपति उल्टे ही छात्र को लापरवाह बता दिया और प्रो0 एल0 कारुण्यकारा की पीएचडी प्रवेश निरस्त निर्णय को सही बताने में लगे रहे.

अंततः छात्रों ने पूरे पीएचडी निरस्त की प्रक्रिया को कुलपति के समक्ष असंवैधानिक पहलू से अवगत कराया कि किसी भी छात्र की पीएचडी निरस्त करने का अधिकार बीओएस (बोर्ड ऑफ़ स्टडीज़) के क्षेत्र में नहीं आता है. उसे सिर्फ छात्र के विषय से सम्बंधित एवं उसके शोध निर्देशक उपलब्ध कराने का अधिकार है. छात्र को पीएचडी में रखना या न रखना विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद् के अधिकार क्षेत्र में आता है.

आश्चर्य की बात ये भी है की विश्वविद्यालय के अकादमिक परिषद के किसी भी सदस्य को पीएचडी निरस्त से सम्बंधित किसी प्रकार की बैठक तक नहीं किया गया जिसमे छात्र के पक्ष को जाना जा सके. छात्र के केंद्र निर्देशक प्रो0 एल0 कारूण्यकारा ने सभी नियमों को ताक पर रखते हुए गलत तरीके छात्र के पीएचडी प्रवेश को निरस्त किया है तथा छात्र को अकादमिक परिषद के सामने अपना पक्ष रखने का मौका नहीं दिया गया.

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दिनांक 28.05.2018 को विश्वविद्यालय प्रशासन द्वारा इस सन्दर्भ में प्रो0 मनोज कुमार की अध्यक्षता में प्रो0 हनुमान प्रसाद शुक्ल, प्रो0 प्रीति सागर एवं डॉ0 सुरजीत कुमार सिंह की चार सदस्यीय जाँच समिति का गणन किया जाता है एवं एक सप्ताह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करने को कहा जाता है, लेकिन जानकार सूत्रों की माने तो प्रो0 मनोज कुमार और प्रो0 प्रीति सागर अधिकारिक रूप से छुट्टी पर हैं तो ऐसी जाँच समिति क्या रिपोर्ट प्रस्तुत करेगी इसका अन्दाजा लगाया जा सकता है.

इस घटना के सन्दर्भ में जब हमने प्रो0 एल0 कारूण्यकारा का पक्ष जानना चाहा तो उनके द्वारा फोन रीसिव नहीं किया गया एवं कार्यकारी कुलसचिव कादर नवाज़ खान का फोन स्विच ऑफ़ मिला.

इस विषय को ध्यान में रखते हुए विश्वविद्यालय के छात्र संगठन, विद्यार्थी, शोधार्थियों ने कुलपति के समक्ष एक सप्ताह का वक्त दिया है कि इस विषय पर जाँच कर सही कार्यवाही कर निर्णय लिया जाये अन्यथा छात्र के पक्ष में विद्यार्थी समूह आन्दोलन के साथ-साथ न्यायपालिका के शरण में जाने से भी परहेज नहीं किया जायेगा.

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