काश कि सरकार और काले कोट वाले समझ पाते सब इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह ने क्यों चलायी थी गोली

एनटी न्यूज़ डेस्क / लखनऊ 

कानून का रखवाला और समाज की सुरक्षा का दायित्व अपने कंधो पर लिए एक पुलिस कर्मी अहम् भूमिका निभाता है। होली, दीपावली या ईद हो इन पर्वों पर भी उसे सिर्फ और सिर्फ चिंता होती है समाज की सुरक्षा की। लेकिन उसकी सुरक्षा की ज़िम्मेदारी कोई नहीं उठाता, हम बात कर रहे है उत्तर प्रदेश पुलिस के ऐसे सब इंस्पेटर की जिसे सरकार की घोर लापरवाही ने कैदी बना दिया गया।  सब इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह जी हाँ ये वही नाम है जिसने वर्दी की मर्यादा और आत्मरक्षा के लिए गोली चलायी उसकी इस गोली का निशाना बने हमलावर वकील नबी अहमद।  जिसके विरुद्ध मार्च 2015 में  वकालत की दलीलें देने वाले खड़े हो गए और सुलग उठा पूरा उत्तर प्रदेश।

शैलेन्द्र सिंह

अंधा कानून, अंधी सरकार…

उत्तर प्रदेश पुलिस के  सब इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह जो विगत लगभग 3 साल से जेल में बंद हैं। पुलिस सब इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह का नाम तब चर्चा में आया था जब उनके ऊपर आरोप लगा कि उन्होंने इलाहाबाद की जिला अदालत में नबी अहमद नाम के एक हमलावर वकील को गोली मार दी। मामले में नबी अहमद की मौत के बाद  न सिर्फ इलाहाबाद बल्कि पूरे भारत के वकील सड़कों पर आ गए थे।

दिल्ली , बंगलौर तक एक स्वर में शैलेन्द्र सिंह को फांसी की मांग की गयी थी और कई वकीलों ने शैलेन्द्र सिंह का केस न लड़ने तक का फरमान सुना दिया था।    दहशत कुछ यूं बन गयी थी कि  खुद शैलेन्द्र सिंह की रिश्तेदारी में पड़ने वाले वकीलों ने भी नबी के समर्थन वाली लॉबी के आगे घुटने तक दिए थे और केस लड़ने से मना कर दिया था। यहाँ ये जानना जरूरी है की इस देश में वकील अजमल कसाब को भी मिल गए, आतंकी और कई निर्दोषों के क़ातिल याकूब के लिए तो रात दो बजे कोर्ट भी खुलवा देते हैं।

पूरा मामला…

शैलेन्द्र सिंह इलाहाबाद के नारीबारी पुलिस चौकी पर तैनात थे। उस समय इलाके में उनकी ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा का ज़ोर-शोर था। वकील नबी अहमद ने एक केस में उनसे चार्जशीट को अपने मन-मुताबिक दाखिल करने की बात कही लेकिन ईमानदार दारोगा ने जांच में जो पाया वही रिपोर्ट चार्जशीट में दर्ज की। बस यहीं  से वकील और दारोगा की अनबन हो चली। एक रोज जब दारोगा शैलेन्द्र सिंह कचहरी में किसी केस पर गवाही देने पहुंचे (दारोगा के परिजनों के मुताबिक नबी अहमद ने एक षड्यंत्र रच दारोगा को कचहरी बुलाया) जहां उनका टकराव वकील नबी अहमद से हुआ।

इसके बाद अपने मामले पर दारोगा की मनमानी का आरोप लगाते हुए पान खाये नबी अहमद ने पीक उस दारोगा की वर्दी पर थूक दी। इसके बाद दोनों में हाथापाई होने लगी।  साथी वकील की लड़ाई पर परिसर में मौजूद वकील दारोगा पर टूट पड़े।

अपनी आत्मरक्षा के लिए दारोगा ने गोली निकाल ली और चला दी जो जाकर हमलावर वकील नबी के लग गयी। इसके बाद इस घटना का एक वीडियो सामने आया था  जिसमे शैलेन्द्र सिंह को कई वकीलों से अकेले जूझते साफ़ साफ़ देखा जा सकता है और उसमे नबी अहमद नाम के वकील की आवाज साफ़ तेज तेज सुनाई दे रही थी।

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यहां यह भी ध्यान रखना जरूरी है की उस समय अखिलेश यादव की सरकार थी जो घोरतम तुष्टीकरण के चलते अक्सर चर्चा में रहती थी। शैलेन्द्र सिंह को आनन फानन में गिरफ्तार कर लिया गया और मृतक नबी अहमद के परिवार को तत्काल अखिलेश सरकार द्वारा सरकारी सहायता राशि उपलब्ध करवाई गयी।  शैलेन्द्र सिंह बार-बार कहता रहा कि वो राष्ट्रभक्त है और उस की ही जान को खतरा था पर उसकी एक नहीं सुनी गयी और हालात ये हो गए की उसे ना पा कर उसके बदले नबी अहमद के कुछ बहुत ख़ास लोगों द्वारा एक सिपाही नागर को गोली मारी गयी, जिसका विरोध कई राष्ट्रवादी वकीलों ने खुद किया और इस हिंसा को गलत ठहराया।

फिर परिस्थितियां इतनी विषम हो गयीं कि शैलेन्द्र सिंह को इलाहाबाद जेल में भी रखना उनकी जान के लिए खतरा माना जाने लगा। मृतक नबी अहमद दुर्दांत अपराधी अशरफ का बेहद ख़ास था। शैलेन्द्र सिंह को उनकी जान के खतरे को देखते हुए इलाहाबाद से बहुत दूर रायबरेली जेल में रखा गया। उनका साथ देने जो भी सामने आया उसको अदालत परिसर में बेइज्जत किया गया, जिसमें आईजी अमिताभ ठाकुर की धर्मपत्नी  नूतन ठाकुर तक शामिल हैं।  शैलेन्द्र सिंह के परिवार का कहना है कि यदि उनके पक्ष को विधिपूर्वक, न्यायपूर्वक और निष्पक्षता से सुना जाय तो निश्चित तौर पर शैलेन्द्र सिंह मुक्त करने योग्य पाए जाएंगे।

सब इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह के परिवार के हालात देखें तो अब बेहद दयनीय हालात में पहुंच गया है। उनकी दो बेटियां कभी अपने पिता से मिलने जब जेल में जाती हैं तो वो पुलिस अधिकारी चाहकर भी इसलिए नहीं रो पाता क्योंकि उसको पता है कि उसके बाद उसकी बेटियां रोयेंगी तब उन्हें बाहर कोई चुप करवाने वाला भी नहीं है।  एक बेटी तो ठीक से जानती भी नहीं कि पिता का प्रेम क्या होता है? क्योंकि जब वो महज तीन माह की थी तब से ही उनका पिता जेल में है।

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ख़ास कर तथाकथित अल्पसंख्यकों के खिलाफ पुलिस विभाग के हाथ पैर बांध कर रखने वाली पिछली अखिलेश सरकार में हुई इस घटना के समय सब इंस्पेक्टर शैलेन्द्र सिंह इलाहाबाद के शंकरगढ़ थाने के अंतर्गत आने वाली नारीबारी पुलिस चौकी के प्रभारी थे।  शैलेन्द्र सिंह के माता-पिता की मृत्य हो चुकी है और उनका एक भाई इसी ग़म में विक्षिप्त हो गया है।  इस प्रकार कभी अपने जिले के सबसे जांबाज़ और तेज तर्रार पुलिस सब इंस्पेक्टरों में से गिना जाने वाले शैलेन्द्र सिंह का पूरा परिवार अब बेहद ही डांवाडोल हालत में है।

हालात इतने विषम हैं कि उनकी पत्नी सपना सिंह को अपने तीन मासूम बच्चो के साथ अपने पिता के घर रहना पड़ रहा है, जहाँ जैसे तैसे इस परिवार का गुजारा हो रहा है। हालात ये भी हैं कि अब तीनों बच्चों की पढ़ाई आदि भी खतरे में पड़ती जा रही है क्योंकि अपने पति का मुकदमा लड़ते-लड़ते इस परिवार का सब कुछ बिक चुका है और यही हाल रहा तो कल खाने के लिए भी दिक्कत पैदा हो जायेगी। एक पुलिस वाले जो कानून और समाज की रक्षा के लिए वर्दी पहना हो उसकी व उसके परिवार की ये दुर्दशा किसी पत्थरदिल का भी कलेजा पिघलाने के लिए काफी है।

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इस पूरी ख़बर की तहकीकात की योगेश मिश्र ने शैलेन्द्र के ससुर शिवकुमार से बात की तो  व्यथित स्वर में बोले कि मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में चल रहा है, जुलाई में बेल मिल सकती है। शुरू से ही लग रहा है कि अगले महीने ही बेल मिलने वाली है।  अब तो आर्थिक स्थिति भी सही नहीं है। उन्होंने बताया कि उक्त जितनी भी जानकारी है सब सत्य है। बता दें कि उनको यह सांत्वना दी गई है कि आपकी पूरी खबर हम अपने पोर्टल के माध्यम से चलाएंगे।

इस पूरी मामले पर जब  ससुर शिवकुमार से फोन पर बात की तो  व्यथित स्वर में बोले कि मामला इलाहाबाद हाईकोर्ट के लखनऊ बेंच में चल रहा है। घर की आर्थिक स्थिति बहुत खराब हो गयी है। सरकार से आस है कि वह हमारे मामले मे निष्पक्षता से जांच करवा दामाद को न्याय दिलवाए।

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